गोडावण कन्जर्वेशन में जब कैप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम शुरू हुआ तो लगने लगा गोडावण के संरक्षण में अब गति आएगी,  परन्तु यह काम यही तक सिमित रह गया और पिछले दिनों हुई ब्रीडिंग सेंटर पर हुई गोडावण के बच्चों  की मौत ने चिंता और भी बढ़ा दी है । पोकरण में जिस अंदाज से परमाणु परीक्षण चुपचाप किया गया लगभग उसी अंदाज में सरकार ने पोकरण के पास ही इस गोडावण कैप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम को चलाया, किसी से कोई चर्चा नहीं और किसी को उसकी प्रोग्रेस से अवगत भी नहीं किया गया। इसके बावजूद टाइम्स ऑफ़ इंडिया के तेज तर्रार पत्रकार श्री अजय उग्रा ने एक स्थानीय गोडावण प्रेमी के माध्यम से एक तथ्य पूर्ण चौंकाने वाली खबर प्रकाशित कि जिसके अनुसार ६-७ गोडावण के बच्चे काफी बड़ी उम्र पाकर मारे गए और अभी तक कोई उसके उचित कारण जान नहीं पाया है।   तो लगने लगा सब कुछ ठीक नहीं है।  गोडावण की वर्तमान हालत पर चर्चा करने के लिए तीन महानुभावों से वार्ता करते है ताकि हम गोडावण संरक्षण की दशा और दिशा पर जानकारी प्राप्त कर सके। पहले उनका परिचय

श्री माल सिंह जामडा : आप जैसलमेर के मूल निवासी है और सेना में सेवा देने के पश्चात आर्गेनिक कृषि कार्य में संलग्न है।  स्थानीय सामाजिक मुद्दों और गोडावण के मसलो पर गहरी समझ रखते है।  राष्ट्रीय स्तर पर गोडावण संरक्षण के लिए सम्मानित किया जा चुका है एवं विभिन्न स्तरों पर गोडावण संरक्षण की मुहिम को आगे बढ़ा रहे है।

डॉ सुमित डूकिया- राजस्थान के मरुस्थल क्षेत्र में जन्मे है वर्तमान में दिल्ली में उच्च शिक्षा से जुड़े है एवं गोडावण संरक्षण के लिए कई प्रकार के कार्यक्रमों का संचालन कर चुके है। शिक्षक होने के नाते कन्जर्वेशन के विज्ञान और लोगों तक बात पहुँचाने में महारत रखते है। आपने उनके युवा लोगों को मरुस्थल के संरक्षण की मुहिम से जोड़ा है।

डॉ दाऊ लाल बोहरा – मरुस्थल निवासी है, आप लम्बे समय से गिद्ध संरक्षण से जुड़े है, एवं उच्च शिक्षा से जुड़ाव ने आप को विषय से निरंतर जोड़े रखा है। आप गोडावण संरक्षण पर कार्य करने वाले लोगों से निरंतर जुड़े है और उनकी कार्य प्रणाली को निरंतर देख रहे है।

प्रत्येक से धर्मेंद्र खांडल ने परिचर्चा की

  1. श्री माल सिंह जामडा

१ सरकार ने गोडावण ब्रीडिंग सेंटर शुरू किया।  वन विभाग के अधिकारियों एवं वन्यजीव संस्थान (WII) के वैज्ञानिकों के मध्य क्या कोई तालमेल में कमी नजर आती है ?

उत्तर : हाँ ऐसा लगता है।  शुरुआती दौर की तुलना में भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक आजकल यहाँ कम आते है एवं वन अधिकारियों से किसी सहज सवाल का जवाब उनके द्वारा अक्सर यही कह कर दिया जाता है की यह जानकारी हमें नहीं है WII के लोग ही जाने।  वन रक्षक भी अक्सर इनके द्वारा अंडे आदि उठाने पर पूरी जानकारी नहीं देने की बाते करते है। WII के वरिष्ठ लोगों को यहाँ और अधिक समय देना चाहिए। वन विभाग के लोग भी यह स्वीकारते है की की अब तक मरे हुए गोडावण के बच्चों की मौत का मुख्य कारण का पता करना अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा यह सिलसिला चलते ही रहेगा।

२ क्या इस कार्यक्रम में धनाभाव कोई कारण है ?

उत्तर : धनाभाव कारण नहीं लगता है, यद्यपि एक वरिष्ठ संरक्षणकर्ता जो WII के वैज्ञानिकों के नजदीक है, उनके अनुसार सरकार ने बड़े बाड़े बनाने के लिए अभी तक पैसे नहीं दिए है। परन्तु दैनंदिन के लिए खर्च एवं सैलरी आदि के किसी प्रकार से अभाव नहीं है। शायद बड़े बाड़े में बढ़ते बच्चों को रखना उचित होगा।

३ अब तक लग रहा था सब ठीक है अचानक से 6-7 बच्चों के मारे जाने की खबर कितनी चिंता की बात है ? अथवा यह कार्यक्रम शुरुआती दौर में है और यह प्रक्रिया का सामान्य हिस्सा है।

उत्तर : हाँ यह चिंता की बात है।  आप इन्हे बच्चे नहीं समझे यह लगभग वयस्क या अल्पवयस्क अवस्था के पक्षी थे। कुछ नर तो गूलर पाउच भी निकालने लगे थे जो प्रदर्शित करता है की वह कोई चिक अवस्था नहीं थी।

4  वन विभाग अक्सर बाहरी सहयोग नहीं लेती है, परंतु विभाग के सबसे अधिक वैज्ञानिक सोच रखने वाले मरुस्थल विशेषज्ञ डॉ गोबिंद सागर भारद्वाज जैसे लोगों को भी इस कार्यक्रम से दूर रखा गया क्या कारण है ?

उत्तर : शायद कोई ऐसा व्यक्ति विभाग में वर्चस्व रखता जो स्वयं सत्ता के नजदीक है परन्तु विषय से दूर है।  ऐसे व्यक्ति सरकार द्वारा गलत फैसले लेने के कारक  बनते है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारद्वाज जी को इस से दूर रखा गया एवं उनको राज्य से बाहर सेवा देनी  पड़ रही है।

5 आपने गोडावण के बच्चों के मरने का यह मुद्दा उठाया, शायद कई लोग नाराज होंगे, आप उन्हें किस प्रकार का सन्देश देना चाहेंगे ?

उत्तर : उनकी नाराज होने की वजह जायज नहीं है मैंने गोडावण संरक्षण को हरदम सहयोग देने का प्रयास किया है।  मेरा व्यक्तिगत किसी से कोई द्वेष नहीं है।  हमारे सभी कर्मचारी एवं वन अधिकारी कड़ी मेहनत कर रहे है। उन्हें गोडावण पर ध्यान देने की ज़रूरत है एवं खुल कर समस्याओं पर चर्चा कर उचित हल ढूंढने के आवश्यक है।

6 गोडावण संरक्षण के सम्बन्ध में आप का कोई सुझाव ?

हमारा मरु प्रदेश थार मरुस्थल का एक भाग है इसमें थार डेजर्ट की बहुतायत में वन्यजीवो की प्रजातियां एवं वनस्पति विद्यमान है तत्कालीन सरकार द्वारा इस डेजर्ट की वनस्पति एवं वन्य जीवों के संरक्षण संवर्धन के लिए थ 4 अगस्त 1980 को डेजर्ट नेशनल पार्क का प्रथम नोटिफिकेशन 3162 वर्ग किलोमीटर का जारी हुआ लेकिन फाइनल नोटिफिकेशन इस अभ्यारण का आज दिनांक तक जारी नहीं हो रखा है गोडावण डेजर्ट में पक्षी जगत की सबसे महत्वपूर्ण प्रजाति है जो धीरे धीरे विलुप्त की कगार की ओर जा रही हैं गोडावण सक्षण के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है बहुत सारे समाज सेवी संस्थाएं एव वन्यजीव में सरक्षण को समझ रखने वाले लोग लगातार कार्य कर रहे हैं अपने  सुझावों के माध्यम से इस कार्य को प्रगति दे रहे हैं मेरा एक सुझाव था गोडावण प्रजनन क्रेन्द्र से तीसरी जनरेशन तैयार होगी और उसको हम कहां पर छोड़ेंगे उसके लिए हमें चिंता करने की जरूरत है उसके लिए सबसे उपयुक्त अगर कोई जगह है तो वह डेजर्ट नेशनल पार्क का सुदासरी क्षेत्र है पिछले दस वर्षो से लगातार अतिक्रमण की भेंट चढ़ता जा रहा है इसको रोकने के लिए विभाग द्वारा क्लोजर बनाए गए लेकिन यह कार्य कुछ समय के लिए बिमार व्यक्ति को ऑक्सीजन देने बराबर है इसके लिए जरूरी है  200-300 वर्ग किलोमीटर का कोर एरिया बना करके गोडावण को हम स्वच्छंद विचरण करने के लिए जगह दे दे यह कार्य अति आवश्यक है

 

श्री सुमित डूकिया

१ गोडावण विलुप्ति के कगार पर है, इसका मुख्य कारण क्या है ? क्या सोलर और पवन ऊर्जा के तारों का जाल ही इसकी विलुप्ति की और जाने का  का मुख्य कारण है ?  क्या हम 5 कारणों को उनकी प्रभाव के क्रम में रख सकते है,  मुख्य कारण पहले और दूसरे कारण बाद में ?

उत्तर : इस प्रश्न का मैं आपको विस्तृत उत्तर देना चाहता हूँ – कालांतर में गोडावण भारत के ११ राज्यों में मिलता था जो आज मात्र ५ में ही बचा रह गया है। ऐसा माना जाता है कि 5 में से 4 राज्यों में तो मात्र 10 के आस पास ही गोडावण होंगे और राजस्थान में इनकी अनुमानित संख्या लगभग 100 से भी कम होंगी। शायद कर्नाटक, आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र के पक्षी एक ही समूह से सम्बन्ध रखते हो और उनमें 1-2 अल्पवयस्क है और 2-3 प्रौढ़ पक्षी है। गुजरात में माना जाता है सिर्फ 4 मादा गोडावण पक्षी बचे है जो बिना नर की उपस्थिति के धीरे धीरे विलुप्ति की और बढ़ रहे है। गोडावण का विस्तार पूर्व में 11 राज्यों में माना जाता था परन्तु अब इसके अतिरिक्त मान ने लगे है की ओडिशा भी एक राज्य था जहां यह पक्षी मिलता था। खैर इतिहास होते जा रहे इस पक्षी के लिए राजस्थान ही एकमात्र आशा का केंद्र है, क्योंकि यहाँ आज भी ये प्रजनन करता हैं।

राजस्थान में इसके दो समूह है एक जैसलमेर के पश्चिम में सम-सुदासरी है और दूसरा समूह पूर्व में पोकरण-रामदेवरा के पास मिलता है। रामदेवरा के पास मिलने वाला समूह सेना के युद्धाभ्यास किये जाने वाले क्षेत्र में भी मिलता है।

अब में अपने मूल प्रश्न पर आता हूँ – राजस्थान के संदर्भ में इनकी विलुप्ति के अथवा संख्या में गिरावट को यदि देखे तो यह कहना सही होगा की गोडावण के लिए अक्षय ऊर्जा के लिए लगाए गए बिजली के तार एक जाल के रूप में कार्य कर रहे है एवं पक्षी निरंतर मारे जा रहे है। और सरकार इनको कम करने की बजाय और अधिक बढ़ावा ही दे रही है।  जिस ऊंचाई पर पक्षी उड़ान भरता है अक्सर तार भी उसी ऊंचाई पर लगायी जाती है।  आज के सन्दर्भ में यही कारण इनकी संख्या में गिरावट के लिए मुख्य तौर पर उभरा है।

अब में आपको ४ अन्य कारण भी विस्तार से बताता हूँ-

दूसरा सबसे बड़ा कारण: जो मुझे लगता है वह है कृषि में आये बदलाव, देखिये पारम्परिक कृषि किसी भी तौर पर हानिकारक नहीं थी बल्कि लाभकारी थी- क्योंकि गोडावण को कई प्रकार के भोजन उसमें मिलते थे, परन्तु नए तौर तरीकों ने सब उलट कर रख दिया है। जैसे ट्रैक्टर के कारण कृषि आसान हो गयी है जिसके के कारण कृषि क्षेत्र बढ़ गया है।  प्राकृतिक आवास घटा है। ज़माने पहले खेत मालिक अपने खेत का कुछ क्षेत्र बिना उपयोग के भी रखता था, आप जानते हो शेखावाटी में उसे अडावा कहते है, आज यह परंपरा ख़त्म  हो गयी है और अब खेत के हर कोने में बुआई होती है। अडावा किसान स्वयं के पशुओं के लिए चरागाह स्थल के रूप में काम लेता था। गत दशकों में किसानो ने कीटनाशक का उपयोग बढ़ा दिया है। किसान फसल की सुरक्षा के लिए खेतों में अधिक समय देने लगा है जिस से कृषि क्षेत्र में इंसानी उपस्थिति बढ़ गई है।

तीसरा बड़ा कारण  : पर्यावास का प्रबंधन, सरकार ने जिसे डेजर्ट नेशनल पार्क माना है उसकी अधिकांश भूमि 4 दशक बाद भी राजस्व विभाग और व्यक्तिगत लोगों के पास है अथवा कु-प्रबंधन की शिकार है। आज भी वास्तविक  सीमाज्ञान के अभाव में उपयोगी भूमि को संरक्षित नहीं किया जा रहा है।जहाँ गोडावण मिलता है और जहाँ डेजर्ट नेशनल पार्क के सुरक्षित बाड़े (Enclosure) है उनमें बहुत फर्क है। गोडावण के दो समूह रामदेवरा और सुदासरी के मध्य तारों का गहन जाल बन गया है एवं अब यह समूह मिल नहीं पाते है।  इनके दोनों स्थलो के मध्य की अधिकतर जमीन की मालिक सरकार है परन्तु शायद वह इन्हे गोडावण के लिए सुरक्षित करना नहीं चाहते है।

चौथा बड़ा कारण : कचरे आदि के कुप्रबंधन के कारण कुत्तों एवं कौओं की संख्या में बढ़ोतरी भी एक मुख्य वजह है।  देखिये कौओं की और प्रजाति है रैवेन जो पहले माइग्रेट कर यहाँ से चला जाता था परन्तु आज कल यह बारह महीने यह यहीं पर रहने लगे है।  यह अत्यंत घातक है। सुदासरी के आस पास चारो और अनेक होटल आदि है जिनमें मानव गतिविधि बढ़ने से इस तरह के प्राणियों का अनुपात भी बढ़ा है एवं उनके समूह में भी विस्तार हुआ है।रैवेन गोडावण के अण्डों को नुक्सान पहुंचाते हैं।

पांचवा बड़ा कारण : देखिये अधिकांश गोडावण लोगों की जमीन पर है और यही वह अधिकांश समय व्यतीत करते है।  प्रबंधक लगभग संवाद हीनता का माहौल रखते है और बगैर लोगों से संवाद करे हम इनके संरक्षण का कार्य राष्ट्रीय मरू उद्यान के बाहर नहीं कर पाएंगे।

२ गोडावण संरक्षण के लिए कोई ५ कदम जिन पर सरकार को तुरंत कार्य करने की आवश्यकता है।

उत्तर : देखिये मेरे पहले सवाल के उत्तर में इनके उपाय और कदम भी छुपे थे परन्तु हम पुनः चर्चा करते है –

पहला कदम : पक्षी के हिसाब से जमीन का प्रबंधन।  आज हमारे डेजर्ट नेशनल पार्क का बहुत कम हिस्सा गोडावण वास्तविक रूप से इस्तेमाल करता है परन्तु जो इलाका ये अति संकटग्रस्त  पक्षी उपयोग कर रहा है उसके लिए हम चिंतित नहीं है।  वन विभाग डेजर्ट नेशनल पार्क में ही अपनी संपूर्ण ऊर्जा और संसाधन लगा देता है और गोडावण किसी और जमीन को इस्तेमाल करता है। जैसे आज कल हर वर्ष भूटेवाला से  3-4 पक्षी की सूचना आती है परन्तु आज भी उस तरफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

दूसरा कदम : अक्षय ऊर्जा के लिए स्थानों को निर्धारित करना चाहिए एवं पक्षी के क्षेत्रों से उन्हें निकालने की सख्त आवश्यकता है। यह शायद आज के दौर में सबसे महत्वपूर्ण कदम अथवा उपाय होगा।

तीसरा कदम : विभाग स्वयं के तीन DFOs – सोशल फॉरेस्ट्री , डेजर्ट नेशनल पार्क और IGNP में सामंजस्य पैदा करे।  ताकि वह एक मिशन पर काम कर सके।  डेजर्ट नेशनल पार्क से अधिक गोडावण अन्य दो DFO के क्षेत्र में रहते है, जबकि उनके ऑब्जेक्टिव में गोडावण संरक्षण प्राथमिकता में नहीं है।

चौथा कदम : चूँकि अनेक सामाजिक संगठन और संरक्षणवादी इस पक्षी को बचाना चाहते है परन्तु वन विभाग उनके साथ तिरस्कार भाव रखता है और यह बदलाव मात्र एक व्यक्ति ला पाया वे थे डॉ गोबिंद सागर भरद्वाज।  आज आवश्यकता है उस तरह से सबके साथ सामंजस्य बैठा कर कार्य करने की।

पांचवा कदम : आस पास के लोगों को वन से जुड़े सस्टेनेबल रोजगार से जोड़ना और उनको इस पक्षी और मरुस्थल बचने के लिए प्रेरित करना।

 

३ क्या पूर्व संरक्षणकर्ता सही रास्ते पर चले और उनके काम से किसी प्रकार का सकारात्मक प्रभाव इन पक्षियों के संरक्षण पर पड़ा ?

उत्तर : अच्छा सवाल हैं, आज हमारे पास गोडावण से सम्बंधित लगभग सभी वैज्ञानिक आंकड़े मौजूद हैं। इनको जुटाने में सभी पूर्व संरक्षणकर्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं और वो वैज्ञानिक जानकारी आज हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं। अब परिस्थितियाँ और वस्तुस्तिथि बदल चुकी हैं। आज गोडावण साल के अधिकांश समय स्थानीय समाज की व्यक्तिगत या राजस्व भूभाग में विचरण करता हुआ देखा जा रहा हैं। इस स्थिति में हमें अब समाज के साथ ही संरक्षण का काम करना होगा और उनको इस महत्वपूर्ण संरक्षण के कार्य में बराबर का भागीदार बना कर साथ लाना होगा।

4. सुमित जी आप इतना अनुभव रखते है परन्तु फिर भी वन विभाग की गोडावण संरक्षण के नीति निर्धारण से दूर रखा जाता है, आप उन कुछ लोगों के नाम बताएं जिन्होंने इस पक्षी के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई अथवा आज भी उनकी सलाह हमें सही दिशा दिखाने में सक्षम है ?

उत्तर : आप सही कह रहे है, सरकार हर प्रश्न कर्ता को दूर रखती है। सरकार अपनी असक्षमता और काम करने के तरीके पर प्रश्न करने वाले से बात करना पसंद नहीं करती है। खुद विभाग ने श्री गोबिंद सागर भारद्वाज को दरकिनार कर के रखा है और आज वो चंडीगढ़ में सेवा दे रहे है। अन्य IFS श्री अनूप के. आर. आज राज्य से दूर कार्य कर रहे है। जबकि आज भी इन दोनों अफसरों को स्थानीय जनता एवं कर्मचारी उनके कार्यकाल में किये गये काम और काम करने के तरीके की वजह से दिल से चाहते है। स्थानीय निवासी माल सिंह जी जामडा एक और नाम है जो सुदासरी और उसके आस पास के इलाके में गोडावण संरक्षण के लिए अति महत्वपूर्ण है। उनकी पहुँच समाज के हर तबके में है और सरकार के उच्च स्तर तक जा कर गोडावण  की बात रखने का दम रखते है। इन्हीं नामों में श्री विक्रम सिंह जी नाचना का नाम रखना चाहूँगा जिन्हे इस पक्षी की चिंता है। यदि नव जवान लोगों में देखा जाये तो जैसलमेर निवासी श्री पार्थ जगाणी और धोलिया निवासी श्री राधेश्याम बिश्नोई भी कम नहीं है आने वाला समय इन्हे और अधिक परिमार्जित कर निखारेगा और इसका गोडावण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। यदि महारावल साहब चैतन्य राज जी जैसलमेर से बात की जाए तो उनका प्रभाव आम जनता पर आज भी बहुत है और उन्हें इस पक्षी के संरक्षण की अत्यंत चिंता भी है, उनसे मेरी और पार्थ जगाणी जी की इस विषय पर चर्चा हुई है।

परन्तु यदि आपने मुझे और अधिक स्वतंत्रता दी होती तो और अधिक नाम भी जोड़े जा सकते है। परन्तु इन सबमें अगर आप मुझे एक व्यक्ति चुनने का कहते तो मैं निसंदेह श्री गोबिंद सागर भरद्वाज का नाम लेता उन्होंने सभी समाज वर्ग के साथ और संरक्षण विज्ञान को आधार मानते हुए समसामयिक परिस्थितियों के हिसाब से रास्ते बनाए थे। आज उनकी अनुपस्थिति यहाँ बेहद खलती है।

5 आप जैसे लोगों को संरक्षण की मुहिम में शामिल किया जाता है ?

उत्तर : मैं स्वयं मरुस्थल में जन्मा और पला बढ़ा हूँ और गोडावण के भूभाग से पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से विभिन्न प्रकार के शोध कार्यों में अनवरत लगा हुआ हूँ और मैंने अपने स्थानीय नागरिक होने और स्थानीय समाज में अच्छे से काम करने के अनुभव के कारण खुद को गोडावण संरक्षण के कार्य में उतारा हैं। प्रशासन अपने ढंग से काम करता है और मैं स्थानीय समाज के समन्वय और सामंजस्य के साथ काम कर रहा हूँ। जब भी हमें प्रशासन से सहयोग के लिए कहा जाता है, मैं खुद जाता हूँ या मेरी बात उन तक पहुँचता हूँ। मुझे किसी के निमंत्रण का इंतज़ार नहीं है परन्तु सरकार यदि हमें किसी योग्य पाती है और उन्हें आवश्यकता लगती है तो उनकी संरक्षण की मुहिम में हम भी अवश्य शामिल होंगे।

 

श्री दाऊ लाल बोहरा

१ क्या गोडावण ब्रीडिंग प्रोग्राम के बारे में पर सरकार शिथिल हो गयी है ?

उत्तर : नहीं बिलकुल ऐसा नहीं लगता है, ब्रीडिंग प्रोग्राम को एक अत्यंत संवेदनशील वेटरनरी डॉक्टर श्रवण सिंह राठौड़ ठीक से संचालित कर रहे है।  उनका पूर्ण समर्पण के साथ 24×7 घंटे यही कार्यक्रम रहता है।  और हाँ उन्हें यदि आप मुझे 100 नंबर में से मार्क्स देने को बोलते तो में उनका एक भी नंबर नहीं काटता।

२ क्या सक्षम लोग इसका नेतृत्व कर रहे है और अपना पर्याप्त समय दे रहे है ?

उत्तर: जी आज इस देश के सबसे महान जीव वैज्ञानिक डॉ झाला और डॉ दत्ता इसको देख रहे है, और उनकी क्षमता पर बिरला ही सवाल उठाएगा। कितना समय वह दे पा रहे है यह मुझे नहीं पता परन्तु उतर चढाव सभी के जीवन का हिस्सा है।  इनको मैंने महान इसी लिए बताया है की यह अपने सभी कामों को पूर्ण समर्पण से करते है। मुझे पूर्ण विश्वास है वह इसे भी पर्याप्त समय दे रहे होंगे।

३ अभी हुई गोडावण के बच्चों की मृत्यु चिंताजनक है या यह एक सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है ? कोई बड़ी चूक आप देख पा रहे है ? क्या कारण रहे होंगे ?

उत्तर : यह बेहद चिंताजनक है।  यह कतई सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है। दो वर्ष तक के पले पलाये गोडावण का मरना बेहद दुखद है। देखिये इसका पता लगाना अत्यंत जरुरी है की उनके मरने के क्या कारण रहे है। यह जानकारी निकालना इस देश में संभव नहीं है। यह घटना सांभर झील में मरे पक्षियों के अनुरूप होगी, जिनका सटीक पता आज भी नहीं लगा है।  सटीक जानकारी अत्यंत आवश्यक है। कयास लगाने से काम नहीं होगा।  यदि आज देखा जाए तो समस्या इनके खाने से संबंधित लगती है। परन्तु बिना कारण जाने हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे।  इनके नमूने IVRI की बजाय विदेशी प्रयोगशाला भेजने चाहिए।  यहाँ WII और वन विभाग अक्सर दोनों पूरी तरह विफल होंगे और देखना सटीक जवाब कभी नहीं मिलेगा।

४ किस प्रकार के संरक्षण के उपाय सरकार / स्वयं सेवी संस्था / व्यक्ति/ समाज ने किये है ?

उत्तर :कैप्टिव ब्रीडिंग किसी भी तरह से अकेला उपाय नहीं है इसके विफल होने की पूरी सम्भावना है।  असल उपाय गोडावण के पर्यावास क्षेत्रों में करना होगा।

BNHS को सरकार ने पर्यावास के संरक्षण के लिए कार्य करने के लिए कहा था परंतु यह मात्र प्रतीकात्मक रूप से कार्य कर पा रहे है। अभी तक  असल उपाय नहीं दे पाये शायद आगे अपने काम को बढ़ा सके। उनके नए डायरेक्टर से बड़ी आशा है जबसे उन्होंने चम्बल के पानी पर बोले की किस प्रकार स्किमर के अंडे डूब रहे है। यहाँ सकारात्मक बदलाव के संकेत है।  वर्ना आप जानते हो यह पुराना  जहाज कितना मुश्किल से चलता है।

इसी तरह WCS को स्थानीय समुदायों के लिए कार्य करना था परन्तु वह एक दिशाहीन रूप से आगे बढ़े और अपनी टीम के प्रबंधन में ही विफल होते नजर आते रहे है। उनकी अधिक बाते नहीं करे तो ठीक है क्योंकि वह तो असल में इस ग्रह के लोग भी नहीं लगते है।

सरकार के कैप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम ने उनके पूरे ध्यान को उसी और केंद्रित कर लिया है एवं अन्य हैबिटैट डेवलपमेंट आदि के कार्य से पिछड़ते जा रहे है। असल रस्ते सरकार को संवाद के माध्यम से निकालने होंगे। डॉ भरद्वाज जैसे लोगों को कमान देनी होगी एवं वर्तमान DFO अत्यंत उत्साही एवं काबिल इंसान है उन्हें और अनुभवी बना कर अच्छा काम लिया जा सकता है। पानी बिजली जैसे समस्या का निपटारा एक कुशल रेंजर मिनटों में कर सकता है अथवा माल सिंह जी जैसे लोगों को साथ लेकर किया जा सकता है।  यह सब वन विभाग के अलग थलग रहने का ठोस उदाहरण है।

५ कोई आशा है की इस स्थिति में गोडावण का संरक्षण किया जा सकता है ? 

उत्तर:  समय बताएगा, वन विभाग को अपने स्तर पर कई नीति बदलनी होगी, लोगों को शामिल करना होगा पहले खुद के घर से फिर बाहर से।