आजकल यह विषय चर्चा में रहता है कि, मानव और वन्यजीवन के मध्य संघर्ष तेजी से बढ़ रहा है। आये दिन मीडिया में बाघ बघेरे के हमलो के हैरान करने वाले वीडियो और तस्वीरें देखने को मिलती हैं। सभी इस बात पर हामी भरते हैं, कि मानव और वन्य जीवन के मध्य संघर्ष तेजी से बढ़ते ही चले जा रहे है। परन्तु कभी कोई यह प्रश्न नहीं पूछता की जब बाघ और बघेरो की संख्या लाखो हजारों से घट कर अब मात्र 5 -10 % रह गयी ही तो फिर संघर्ष कम क्यों नहीं हो रहा है? कुछ इसका जवाब भी दे देते हैं कि, मानव संख्या भी कई गुना बढ़ गयी और शायद बाघ बघेरो का आहार भी कई गुना घट गया अतः वे सब अब इंसानो पर अधिक हमले करते हैं।

रुडयार्ड किपलिंग, जॉन कोलियर द्वारा, सीए.1891। बदलते समय और दृष्टिकोण के बावजूद, द जंगल बुक पुस्तक की लोकप्रियता के परिणामस्वरूप किपलिंग नाम अभी भी भारतीय जंगल का पर्यायवाची है।

पढ़िए रिकॉर्ड क्या कहते हैं।

मानव और वन्यजीव के संघर्ष का सबसे अनोखा रिकॉर्ड बूंदी शहर से मिला और जिसे महान लेखक रुडयार्ड किपलिंग ने अपने मजाकिया अंदाज में बखूबी अपनी एक पुस्तक में लिखा है। रुडयार्ड किपलिंग कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे, वह एक ब्रिटिश भारतीय थे जो भारत में ही जन्मे थे। उन्हें 41 वर्ष की उम्र में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला था। आज भी उन्हें सबसे छोटी उम्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाला माना जाता है। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “जंगल बुक” से हम सब भली भांति वाकिफ है। इस पुस्तक में एक मोगली नामक किरदार है और उसके साथी विभिन्न वन्यजीव है जो कई प्रकार की कहानियों के माध्यम से पाठकों का मनोरंजन करते हैं।

वर्तमान में बूंदी शहर (फोटो: डॉ धर्मेंद्र खांडल)

रुडयार्ड किपलिंग ने लिखा है कि, वह 1887 -1889 के वर्षों में भारत के कई हिस्सों में घूमने निकले थे, तभी उन्हें राजस्थान की एक लम्बी यात्रा का मौका भी मिला। एक दोपहर जब वह बूंदी के आम रास्ते पर टहल रहे थे, तो अकस्मात पीछे से किसी ने आवाज दी “Come and see my discrepancy “। यह उनके लिए चौकानेवाला बुलावा था कि, कोई उन्हें अंग्रेजी में बुला रहा है, जबकि पूरी बूंदी में उस ज़माने में दो लोग ही अंग्रेजी बोलते थे एक वहां की स्कूल के प्रमुख अध्यापक और दूसरे थे एक अंग्रेजी के अध्यापक। तीसरे व्यक्ति किपलिंग को यही मिले जो लाहौर मेडिकल कॉलेज से 20 वर्ष पूर्व पढ़ कर आये थे और अब एक चिकित्शालय के प्रमुख्झ थे। यदपि इनको भी अंग्रेजी के कुछ यहाँ वहां के शब्द ही आते थे। उन्होंने चर्चा के दौरान बताया की किस प्रकार के रोगी उनके पास आते है और किस तरह उनका 16 बिस्तर का अस्पताल कार्य करता है। उस समय वहां कोई 25 -30 लोगों की भीड़ रही होगी और उन्हें यह एक अच्छी भली डिस्पेंसरी लग रही थी। रिकॉर्ड को भी अंग्रेजी में दर्ज किया गया था, जिसमें एक भी स्पेलिंग सही नहीं थी। खैर उसमें एक आंकड़ा दर्ज था लोइन-बाईट (loin-bite)। जब उनसे पूछा गया की इसका क्या मतलब तो उन्होंने बताया की “शेर से मारा” हुआ। किपलिंग लिखते हैं कि, loin नहीं lion से मतलब था प्राणी शास्त्र के अनुसार सही भाषा टाइगर लिखना सही होगा। खैर वह टाइगर एवं पैंथर दोनों हो सकते है लायन की सम्भावना तो क्षीण ही है। इस दर्ज आंकड़े के अनुसार लगभग 3 -4 लोग हर सप्ताह इस चिकित्शालय में बाघ बघेरो के घायल वहां आते थे। आज यह आंकड़ा पुरे राज्य के लिए भी बहुत ज्यादा है, जो कभी मात्र एक छोटी बूंदी शहर के आस पास के क्षेत्र का था।

शायद मानव और वन्यजीव के मध्य सघर्ष सदैव ही रहा है परन्तु आजकल लोगों के पास कैमरे की आसानी से उपलब्धता के कारण मीडिया में वन्य जीव और मानव के मध्य होने वाले संघर्ष के वीडियो और फोटोग्राफ्स की संख्या अत्यंत बढ़ती जा रही है। जहाँ वन्य जीव और इंसान रहेंगे तो वहां इनके मध्य संघर्ष भी रहेगा ही, जरुरत है इसके साथ जीने की कला सिखने की, भारतीयों को तुलनात्मक रूप से यह कला भली भांति जानता भी कौन है। तभी तो हमारे देश में इतने संघर्ष के बाद वन्य जीव मिलते है एशिया के और कई देशों में तो अच्छे भले वन खाली पड़े है।

आज बूंदी के जंगल बाघ विहीन हो गये है परन्तु सरकार अब इसे पुनः विकसित करने की तरफ ध्यान देने लगी है। रणथम्भोर की अभूतपूर्व पर्यटन सफलता को देख बूंदी के लोग भी अब जागरूक हुए है और बाघों के स्वागत के लिए तत्पर है।

सन्दर्भ:
  • Rudyard Kipling. (1899).“The Comedy of Errors and the Exploitation of Boondi,” in From Sea to Sea; Letters of Travel, vol. 1 (New York: Doubleday & McClure Company), 151.
लेखक:

Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.

Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.

 

Cover photo caption & credit: मानव-वन्यजीव संघर्ष उतना ही पुराना है जितनी स्वयं मानव जाति तथा इसका प्रमाण देती हुई बूंदी से एक गुफा चित्र। (फोटो: डॉ धर्मेंद्र खांडल)