राजस्थान के मुख्य वन्यजीव संरक्षक ने रणथम्भौर से 25 बाघों के लापता होने की जांच के लिए एक जांच समिति का गठन किया है। प्रारंभिक निष्कर्षों के अनुसार, ये बाघ दो चरणों में गायब हुए: 2024 से पहले 11 बाघों का पता नहीं चला था, और पिछले 12 महीनों में 14 बाघ गायब हो गए। जांच शुरू होने के बाद, अधिकारियों ने रिपोर्ट किया कि इनमें से 10 बाघों को खोज लिया गया है जबकि 15 अभी भी लापता हैं।
तो, बाकी 15 बाघों का क्या हुआ?
टाइगर वॉच के विस्तृत डेटाबेस पर आधारित यह लेख इन लापता बाघों के प्रोफाइल और अंतिम ज्ञात रिकॉर्ड का विश्लेषण करता है, ताकि उनके गायब होने के संभावित कारणों को उजागर किया जा सके।
बाघों की जानकारी और गायब होने के संभावित कारण
बाघ ID
लिंग
अंतिम रिपोर्टेड
जन्म वर्ष
उम्र (गायब होने के समय)
गायब होने का संभावित कारण
T3
नर
03-08-2022
2004
18-19 वर्ष
वृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T13
मादा
17-05-2023
2005
19-20 वर्ष
वृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T38
नर
04-12-2022
2008
14-15 वर्ष
वृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T41
मादा
15-06-2024
2007
17-18 वर्ष
वृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T48
मादा
12-09-2022
2007
15-16 वर्ष
वृद्धावस्था के कारण मरा हो सकता है
T54
मादा
अक्टूबर-22
2011
13-14 वर्ष
उम्र के कारण प्रमुख बाघ द्वारा बाहर किया गया
T63
मादा
जुलाई-23
2011
13-14 वर्ष
उम्र और प्रतिस्पर्धा के कारण मरा हो सकता है
T74
नर
14-06-2023
2012
12-13 वर्ष
प्रमुख बाघ T121 और T112 द्वारा बाहर किया गया
T79
मादा
16-06-2023
2013
11-12 वर्ष
संदिग्ध मृत्यु; पार्क के बाहर रहती थी
T99
मादा
26-07-2024
2016
9 वर्ष
गर्भावस्था में जटिलताएं, फरवरी 2024 में गर्भपात
T128
नर
05-07-2023
2020
4 वर्ष
क्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T131
नर
30-11-2022
2019
4 वर्ष
क्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T138
मादा
20-06-2022
2020
3 वर्ष
क्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T139
नर
17-07-2024
2021
4 वर्ष
क्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
T2401
नर
04-05-2024
2022
3 वर्ष
क्षेत्रीय संघर्ष / मानव संघर्ष के कारण मरा हो सकता है
निरीक्षण और तार्किक अनुमान
यह 15 बाघ अब तक गायब हैं, और उनके गायब होने के संभावित कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:
वृद्ध बाघ: इन बाघों में से पांच—T3, T13, T38, T41, और T48—15 साल से ऊपर के हैं, जिनकी उम्र 19-20 साल तक पहुंच चुकी है।
दूसरे दो, T54 और T63, 13-14 साल के हैं और संभवतः अपने प्राकृतिक रूप से जीवन के अंतिम दौर के करीब हैं।
मादा बाघ T99 को फरवरी 2024 में गर्भावस्था में जटिलताएं आई थीं, जिससे उनका गर्भपात हो गया था। उन्हें व्यापक चिकित्सा देखभाल दी गई थी और वे जीवित रही थीं। हाल ही में रिपोर्ट आई थी कि वे फिर से गर्भवती हो सकती हैं, हालांकि यह पुष्टि नहीं हो पाई है। संभव है कि इसी प्रकार की जटिलताएं फिर से उत्पन्न हुई हों, जिसके कारण उनका वर्तमान स्थिति समझी जा सकती है।
फोटो: बाघिन T99 के गर्भपात के दौरान लिया गया चित्र
बाघ T74, जो 12 साल से अधिक उम्र की है, को डोमिनेंट बाघ T121 और T112 द्वारा उनके क्षेत्र से बाहर किया जा सकता है।
बाघिन T79 अजीब परिस्थितियों में गायब हो गई, जिसके बाद वन विभाग ने उसकी खोज शुरू की और उसकी दो शावकों को पाया। वह रणथम्भौर के बाहर कंडुली नदी क्षेत्र में रहती थी, और ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में उसका अब तक जीवित रहना आश्चर्यजनक था।
सबसे महत्वपूर्ण नुकसान पांच युवा नर बाघों का है, जो रणथम्भौर के प्रमुख बाघों के मध्य प्रतिस्पर्धा का शिकार हो गए। वन्य जीवन में, नर बाघों को क्षेत्रीय संघर्षों का सामना करना पड़ता है, जो अक्सर घातक मुठभेड़ों की ओर ले जाता है, जिनमें केवल सबसे मजबूत जीवित रहते हैं। वन विभाग के विस्तृत विश्लेषण के अनुसार, युवा नर बाघों जैसे T128, T131, T139, और T2401 को अक्सर अप्रयुक्त क्षेत्रों की तलाश करते हुए देखा गया था।प्रमुख बाघों के साथ क्षेत्रीय संघर्ष उनकी गायब होने का एक संभावित कारण हो सकता है।
बाघिन (T138) का गायब होना चिंता का विषय है, तथा 15 लापता बाघों में से इस अल्प-वयस्क बाघिन की अनुपस्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है।
प्राकृतिक प्रतिस्पर्धा के अतिरिक्त, मानव से संबंधित संघर्ष को भी ध्यान में रखना चाहिए। ये युवा बाघ स्थानीय समुदायों के साथ संघर्षों का शिकार भी हो सकते हैं, जैसे कि जहर देना या अन्य मानव जनित खतरों का सामना करना। क्षेत्र में पहले के घटनाएं, जैसे कि T114 और उसकी शावक, और T57 की जहर से मौत, मानव-बाघ संघर्ष के जोखिम को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं।
सारांश
रणथम्भोर से बाघों के गायब होने के कारणों में बढ़ती आयु, स्वास्थ्य समस्याएं, क्षेत्रीय संघर्ष और अन्य मानवजनित कारण शामिल हो सकते हैं। उम्रदराज बाघ, जैसे T3, T13, T38, T41, और T48, अपनी उम्र के कारण स्वाभाविक रूप से मरे हो सकते हैं। बाघ सामान्यतः 15 साल तक जीवित रहते हैं, और उसके बाद उनका जीवित रहना मुश्किल हो जाता है। 15 साल की उम्र के बाद, उन्हें स्वास्थ्य और क्षेत्रीय संघर्षों का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके जीवित रहने की संभावना घट जाती है।
T54, T63, T74, और T79 जैसे बाघ, जो अपनी उम्र के कारण कमजोर हो चुके थे, शायद युवा और प्रमुख बाघों से अपने क्षेत्रों की रक्षा करने में असमर्थ भी। इस कारण उनके जीवन का संकट में पड़ना स्वाभाविक है, खासकर जब वे पार्क के बाहरी इलाकों में रह रहे होते हैं, जैसे कि T54 जो तालरा रेंज के बाहरी इलाके में रहता था।
जब परिपक्व बाघिन T63, जिसने पहले तीन बार शावकों को जन्म दिया था और खंडार घाटी में पार्क के केंद्र में रहती थी, को औदी खो क्षेत्र में वन अधिकारी द्वारा लगभग मृत घोषित कर दिया गया था, तो अधिकारियों ने उसे शिकार भी उपलब्ध कराया था, यहाँ तक कि एक समय कहा गया कि वह जीवित नहीं बचेगी। अउ समय यह बाघिन अत्यंत दुर्बल अवस्था में मिली थी।
सबसे महत्वपूर्ण नुकसान युवा चार नर एवं एक मादा बाघ (T128, T131, T139, T2401 और T138) का है, जिनका सामना डोमिनेंट बाघों से क्षेत्रीय संघर्षों में हुआ। ये युवा बाघ अक्सर नए क्षेत्रों की तलाश में रहते है, और ऐसे संघर्षों के कारण उनकी मौत हो सकती है।
हालांकि, मानव जनित कारणों पर भी विचार करना जरूरी है। इन युवा बाघों ने स्थानीय समुदायों से भी खतरों का सामना किया हो सकता है, जैसे कि जहर देना या अन्य मानव जनित खतरों से मुठभेड़।
अंततः, बाघिन T99, जो गर्भावस्था की जटिलताओं से जूझ रही थी, शायद इन समस्याओं के कारण गायब हो गईं।
यह समीक्षा यह रेखांकित करती है कि रणथम्भौर में बाघों की स्थिति को लेकर लगातार निगरानी और सक्रिय उपायों की आवश्यकता है, ताकि हम इन खतरों को समझ सकें और अधिक प्रभावी रणनीतियाँ तैयार कर सकें, जिससे इस सुंदर प्रजाति का दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित हो सके।
वैज्ञानिकों और बाघ प्रेमियों में हमेशा से यह एक चर्चा का विषय रहा है कि, आखिर बाघ का इलाका औसतन कितना बड़ा होता है? इस विषय पर प्रकाश डालते हुए राजस्थान के वन अधिकारियों द्वारा सरिस्का के सभी बाघों की क्षेत्र सीमाओं का एक अध्यन्न कर कई महत्वपूर्ण तथ्यों को उजागर किया है आइये जानते हैं…
हाल ही में राजस्थान के कुछ वन अधिकारीयों द्वारा बाघों पर एक अध्ययन किया गया है जिसमें अलवर जिले में स्थित “सरिस्का बाघ परियोजना” के बाघ मूवमेंट क्षेत्र (Territory) को मानचित्र पर दर्शाकर तुलना करने का प्रयास किया गया। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य बाघों की गतिविधियों और वितरण सीमा को प्रभावित करने वाले संभावित कारणों को समझना था ताकि बाघों की बढ़ती आबादी के फैलाव और उसके साथ मानव-बाघ संघर्ष की घटनाओं को कम करने के लिए बेहतर योजनाए भी बनाई जा सके (Bhardwaj et al 2021)।
दअरसल सरिस्का अभयारण्य में विभाग द्वारा अधिकतर बाघों को रेडियो कॉलर किया हुआ है तथा इनकी नियमित रूप से निगरानी की जाती है। निगरानी के सभी आंकड़ों को सुरक्षित ढंग से समय-समय पर विश्लेषण किया जाता है ताकि बदलती परिस्थितियों के साथ नीतियों में भी उचित बदलाव किये जा सके। नियमित रूप से निगरानी और वैज्ञानिक तरीकों से एकत्रित आंकड़ों की मदद से यहाँ बाघों के स्वभाव एवं पारिस्थितिकी को समझने के लिए विभिन्न प्रकार के शोध भी किये जाते हैं।
सरिस्का अभयारण्य में विभाग द्वारा अधिकतर बाघों को रेडियो कॉलर किया हुआ है तथा इनकी नियमित रूप से निगरानी की जाती है (फोटो: श्री हिमांशु शर्मा)
मुख्यत: राजस्थान के अर्ध-शुष्क एवं अरावली पर्वत श्रृंखला का भाग सरिस्का बाघ परियोजना जो कि अलवर जिले में स्थित हैं इसका कुल क्षेत्रफल 1213.31 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ मुख्यरूप से उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन हैं, जिसमें धोक (Anogeissus pendula) सबसे ज्यादा पायी जाने वाली वृक्ष प्रजाति है। इसके अलावा सालार (Boswellia serrata), Lannea coromandelica , कत्था (Acacia catechu), बेर (Zizyphus mauritiana), ढाक (Butea monosperma) और केर (Capparis separia) आदि पाई जाने वाली अन्य प्रजातियां हैं। वन्यजीवों में बाघ यहाँ का प्रमुख जीव है इसके अलावा यहाँ तेंदुआ, जरख, भालू, सियार, चीतल, सांबर, लोमड़ी आदि भी पाए जाते हैं।
सरिस्का में स्थित सूरज कुंड बाउरी (फोटो: श्री हिमांशु शर्मा)
वर्ष 1978 में सरिस्का को बाघों की आबादी के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान समझते हुए “बाघ परियोजना (Project Tiger) का हिस्सा बनाया गया था। परन्तु वर्ष 2004 में, अवैध शिकार के चलते सरिस्का में बाघों की पूरी तरह आबादी ख़त्म सी हो गयी थी उसके बाद 2008 में राष्ट्रीय बाघ सरंक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority (NTCA) द्वारा एक निर्णय लिया गया कि सरिस्का में वापस से बाघों को लाया जाएगा।
सरिस्का में दुबारा बाघों को लाने के लिए, सरिस्का से 240 किलोमीटर दूर राजस्थान के एक और सबसे प्रसिद्ध बाघ अभयारण्य “रणथम्भौर” का चयन किया गया तथा 28 जून 2008 को भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर विमल राज (wing commander Vimal Raj) द्वारा रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान से सरिस्का टाइगर रिज़र्व में पहली बाघ (ST-1) विस्थापन की प्रक्रिया को Mi-17 हेलीकॉप्टर की मदद से सफल बनाया गया।
उस समय अलग-अलग चरणों में रणथम्भौर से कुल 5 बाघ (2 नर व 3 मादाएं) सरिस्का लाए गए थे। बाघों की इस छोटी आबादी को सरिस्का लाने का केवल एक यही उद्देश्य था, इनका प्रजनन करवा कर सरिस्का में फिर से बाघों की आबादी को बढ़ाना और यह निर्णय काफी हद्द तक सही भी साबित हुआ क्योंकि आज सरिस्का में कुल 21 बाघ हैं।
बाघिन ST9 (फोटो: श्री हिमांशु शर्मा)
आज सरिस्का में बाघों की आबादी निरंतर बढ़ तो रही है परन्तु अभयारण्य गंभीर रूप से मानवीय दंश भी झेल रहा है क्योंकि सरिस्का के अंदर और इसके आसपास कुल 175 गाँव स्थित हैं जिनमें से 26 गाँव (पहले 29 , तीन गाँवों के स्थानांतरण हो गया) क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (कोर क्षेत्र/Core Area) में हैं, और बाकी 146 गाँव वन क्षेत्र की सीमा से सटे व नज़दीक हैं इन 175 गाँवों में लगभग 14254 परिवार (2254 परिवार कोर क्षेत्र में और 12000 परिवार बाहरी सीमा) रहते हैं और इस प्रकार यह क्षेत्र गंभीर रूप से मानवीय व्यवहार के दबाव में है।
पिछले कुछ वर्षों में यह भी देखा गया है कि, बाघों की बढ़ती आबादी के कारण कुछ शावक अपना क्षेत्र स्थापित करने हेतु अभयारण्य की सीमा को पार कर गाँवों के आसपास चले गए थे ऐसे में बाघों के मानव बस्तियों के आसपास जाने के कारण बाघ-मानवीय संघर्ष की घटनाएं भी हो उतपन्न हो जाती हैं
बाघों की बढ़ती आबादी व इनकी गतिविधियों को देखते हुए, विभाग द्वारा सभी बाघों की क्षेत्र सीमाओं को समझने की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है ताकि यह अनुमान लगाया जा सके की वन क्षेत्र बिना किसी संघर्ष घटनाओं के सफलतापूर्वक कितने बाघों को रख सकता है तथा बढ़ती आबादी के अनुसार उचित उपाय ढूंढे जा सके।
जीवित रहने के लिए आवश्यक भोजन, आराम, प्रजनन के लिए साथी, रहने के स्थान की तलाश और अन्य कारणों से जुड़ी गतिविधियों के दौरान बाघ इन इलाकों को पार कर दूसरे बाघ के इलाके में चले जाते हैं (फोटो: श्री हिमांशु शर्मा)
बाघ, पुरे विश्व में बिल्ली परिवार का सबसे बड़ा सदस्य है जो विभिन्न प्रकार के पर्यावासों में रहने के लिए अनुकूल है। इन आवासों में पर्यावरणीय विविधताओं के कारण शिकार की बहुतायत में भी अंतर देखे जाते हैं और इसी कारण बाघों की वितरण सीमा में भी भिन्नता देखी गई है। बाघ एक अकेला रहने वाला जीव है साथ ही प्रत्येक बाघ का अपना एक निर्धारित क्षेत्र (इलाका/Territory) होता है।
वहीँ दूसरी ओर जब हम प्रकाशित सन्दर्भों को देखते हैं तो विभिन्न तरह की बाते सामने आती हैं जैसे कि, जीवित रहने के लिए आवश्यक भोजन, आराम, प्रजनन के लिए साथी, रहने के स्थान की तलाश और अन्य कारणों से जुड़ी गतिविधियों के दौरान बाघ इन इलाकों को पार कर दूसरे बाघ के इलाके में चले जाते हैं।
सरिस्का के बाघों की वंशावली:
क्र स
बाघ ID
लिंग
माँ का नाम
जन्म स्थान
वर्तमान स्थिति
इलाके का क्षेत्रफल (वर्ग किमी )
1
ST1
नर
–
रणथम्भौर
मृत
2
ST2
मादा
–
रणथम्भौर
जीवित
19.34
3
ST3
मादा
–
रणथम्भौर
जीवित
172.75
4
ST4
नर
–
रणथम्भौर
मृत
85.4
5
ST5
मादा
–
रणथम्भौर
मृत
51.91
6
ST6
नर
–
रणथम्भौर
जीवित
79.94
7
ST7
मादा
ST2
सरिस्का
जीवित
16.59
8
ST8
मादा
ST2
सरिस्का
जीवित
43.04
9
ST9
मादा
–
रणथम्भौर
जीवित
85.24
10
ST10
मादा
–
रणथम्भौर
जीवित
80.1
11
ST11
नर
ST10
सरिस्का
मृत
57.63
12
ST12
मादा
ST10
सरिस्का
जीवित
50.87
13
ST13
नर
ST2
सरिस्का
जीवित
61.39
14
ST14
मादा
ST2
सरिस्का
जीवित
36.58
15
ST15
नर
ST9
सरिस्का
जीवित
47.67
16
ST16
नर
–
रणथम्भौर
जीवित
–
कई विशेषज्ञों के शोध यह भी बताते हैं कि, नर बाघ का इलाका उसकी ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने से भी काफी ज्यादा बड़ा होता है और ये इसीलिए हैं ताकि बाघ अपने प्रजनन के अवसरों को अधिकतम कर सके। इसी प्रकार के कई तर्क एवं तथ्य संदर्भो में देखने को मिलते हैं।
मौजूदा अध्ययन के शोधकर्ताओं ने पुरे एक वर्ष (2017 -2018) तक सभी बाघों (उस समय मौजूद कुल 16 बाघों) की गतिविधियों (Movement Pattern) का अवलोकन किया। जिसमें स्थानांतरित किये गए रेडियो कॉलर्ड बाघों की निगरानी को प्राथमिकता दी गई तथा अन्य बाघों की निगरानी उनके पगचिन्हों के आधार पर की गई। इसके अलावा सभी बाघों को उनकी उम्र के आधार पर तीन भागों में बांटा गया; शावक (<1.5 वर्ष), उप-वयस्क (1.53 वर्ष) और वयस्क (> 3 वर्ष)। इसके पश्चात सभी बाघों के मूवमेंट क्षेत्रो को मानचित्र पर दर्शाने के साथ तुलना भी की गई।
रेडियो-टेलीमेट्री के महत्त्व को देखते हुए सरिस्का में अब तक नौ बाघ रेडियो कॉलर किये गए हैं जिनमे सात बाघ वे हैं जो रणथम्भोर से लाये गए थे और दो नर बाघ (ST11 और ST13) जो सरिस्का में ही पैदा हुए थे।
ST11 और ST13 के अलावा आज तक सरिस्का में पैदा होने वाले किसी भी बाघ को रेडियो-कॉलर नहीं लगाया गया है क्योंकि ये दोनों बाघ अपना क्षेत्र स्थापित करने के दौरान काफी बड़े इलाके और अभयारण्य की सीमा के बाहरी छोर पर घूम रहे थे। ऐसे में इनकी सुरक्षा को देखते हुए इनको रेडियो कॉलर लगाया गया।
इन नौ बाघों के अलावा बाकी सभी बाघों की पगचिन्हों और कैमरा ट्रैप के आधार पर ही निगरानी की जाती है।
अध्ययन द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़ों की जांच से पता चलता है कि, सरिस्का में बाघिनों की क्षेत्र सीमा न्यूनतम 16.59 किमी² से अधिकतम 172.75 किमी² तक हैं, जिसमें से सबसे छोटा क्षेत्र बाघिन ST7 (16.59 किमी²) का तथा सबसे बड़ा क्षेत्र ST3 (172.75 किमी²) का देखा गया है। अन्य बाघिनों जैसे ST9 का क्षेत्र 85.24 किमी², ST10 (80.10 किमी²), ST5 (51.91 किमी²), ST12 (50.87 किमी²), ST8 (43.04 किमी²), ST14 (36.58 किमी²) और ST2 (19.34 किमी²) तक पाए गए।
पिछले वर्षों में सरिस्का के अलावा अन्य अभयारण्यों में हुए कुछ अध्ययनों की समीक्षा से ज्ञात होता है कि, अमूर बाघों के क्षेत्र अपर्याप्त शिकार और आवास की गुणवत्ता की कमी के कारण बड़े होते हैं वहीँ दूसरी ओर भारतीय उपमहाद्वीप में वयस्क मादाओं के क्षेत्र पर्याप्त मात्रा में शिकार उपलब्ध होने के कारण छोटे होते हैं। इस अध्ययन में भी कुछ ऐसा ही देखा गया है जहाँ बाघिन ST7, ST2, ST14, और ST8 के क्षेत्र, शिकार की बहुतायत होने के कारण छोटे (50 किमी² से छोटे) हैं।
परन्तु सरिस्का के बाघों की वंशावली को ध्यानपूर्वक देखा जाए तो बाघिन ST2 इन सभी बाघिनों (ST7, ST14 और ST8) की माँ है तथा इनके ये क्षेत्र “female philopatry” का परिणाम है जिसमें, ST2 के क्षेत्र में उसकी बेटियों को जगह मिल गई है तथा ST2 का क्षेत्र 181.4 किमी² से कम होकर 19.34 किमी² रह गया है। इस तरह की female philopatry को कई मांसाहारी प्रजातियों में भी देखी गई है, जिसमें उप-वयस्क मादाओं को अक्सर अपनी माँ के क्षेत्र में ही छोटा हिस्सा प्राप्त हो जाता है और नर शावकों को लम्बी दुरी तय कर अन्य स्थान पर जाकर अपना क्षेत्र स्थापित करना पड़ता है।
कई अध्ययन इस व्यवहार के लिए एक ही कारण बताते हैं और वो है बेटियों की प्रजनन सफलता बढ़ाना। हालाँकि ST2 की केवल एक ही बेटी (ST14) ने सफलतापूर्वक दो मादा शावकों जन्म दिया व पाला है।
वहीँ दूसरी ओर अन्य बाघिनों जैसे ST3 (172.75 km²), ST9 (85.25 km²) और ST10 (80.10 km²) के क्षेत्र काफी बड़े थे क्योंकि इनके इलाके सरिस्का में ऐसे स्थान पर हैं जहाँ मानवजनित दबाव अधिक होने के कारण शिकार की मात्रा कम है तथा इसके पीछे एक और कारण प्रतीत होता है कि, अलग वंशावली के होने के कारण, इन बाघिनों को अन्य बाघिनों द्वारा कम शिकार और अपेक्षाकृत अशांत क्षेत्रों में बसने के लिए मजबूर किया गया है।
यदि नर बाघों की क्षेत्र सीमाओं की तुलना की जाए तो, बड़ी उम्र और पहले स्थान घेरने के कारण पहले सरिस्का भेजे गए नर बाघों के इलाके नए पैदा हुए नरों से बड़े हैं। सबसे बड़ा क्षेत्र ST11 (646.04 km²) का देखा गया है। परन्तु यदि वर्ष के सभी महीनों की औसत निकाली जाए तो सबसे बड़ा क्षेत्र ST4 (85.40 km²) का और सबसे छोटा क्षेत्र ST15 (47.67 km²) का दर्ज किया गया है। इसके अलावा अन्य बाघों के इलाके ST6 (79.94 km²), ST13 (61.39 km²) और ST11 (57.63 km²) तक पाए गए।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि, वर्ष 2017 में, बाघिन माँ ST9 से अलग होने के शुरुआती महीनों के दौरान ST15 का क्षेत्र अधिकतम (189.5 किमी²) हो गया था, लेकिन सरिस्का के दक्षिणी भाग में बस जाने के बाद इसका क्षेत्र धीरे-धीरे कम हो गया था। इसी प्रकार शुरुआत में ST13 (687.58 वर्ग किमी) का क्षेत्र भी काफी बड़ा था जो की बाद में कम हो गया था।
मार्च 2018 में, नर बाघ ST11 की किसी कारण वश मृत्यु हो गई और शोधकर्ताओं का यह अनुमान था कि, इसके बाद अन्य नरों के क्षेत्रों में वृद्धि होगी परन्तु यह अनुमान गलत साबित हुआ और बाघों की क्षेत्र सीमाओं में गिरावट देखी गई।
बाघों के इलाके पूर्ण रूप से अलग-अलग होते हैं या कहीं-कहीं एक दूसरे में मिलते भी हैं इस प्रश्न को हल करने के लिए सभी बाघों के प्रत्येक माह और पुरे वर्ष के इलाकों को मानचित्र पर दर्शाया गया। जब सभी नर बाघों की प्रत्येक माह की क्षेत्र सीमाओं को देखा गया तो वे पूर्णरूप से अलग-अलग थी। परन्तु, पुरे वर्ष की क्षेत्र सीमाएं कुछ जगहों पर एक-दूसरे से मिल रही थी, जिसमें सबसे अधिक ओवरलैप ST4 व ST11 और ST4 व ST13 के बीच में देखा गया।
ऐसा इसलिए था क्योंकि नर बाघ ST11 और ST13 युवा हैं और उस समय वे अपना क्षेत्र स्थापित करने के लिए अभयारण्य में अधिक से अधिक क्षेत्र में घूम रहे थे। परन्तु ST11 की मृत्यु के बाद यह ओवरलैप कम हो गया।
कई अध्ययन यह भी बताते हैं कि, नर बाघ की मृत्यु के बाद अन्य बाघ उस क्षेत्र को कब्ज़ा कर अपने क्षेत्र को बड़ा कर लेते हैं परन्तु इस अध्ययन में किसी भी बाघ की सीमाओं में बदलाव नहीं देखे गए तथा यह पहले से बसे नर बाघों के गैर-खोजपूर्ण व्यवहार के बारे में संकेत देता है।
रेडियो-टेलीमेट्री एक महत्वपूर्ण तकनीक है तथा बाघों की निगरानी के लिए इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। (फोटो: श्री हिमांशु शर्मा)
अध्ययन में यह भी पाया गया कि, नर बाघों का क्षेत्र कुछ मादाओं के साथ लगभग पूरी तरह से ओवरलैप करता है और कुछ मादाओं के साथ बिलकुल कम। युवा बाघ ST15 के अलावा बाकि सभी नरों के क्षेत्र मादाओं के साथ ओवरलैप करते हैं। अपना क्षेत्र स्थापित करने के दौरान ST11 का संपर्क सभी मादाओं के क्षेत्रों के साथ रहा है। इसके अलावा वर्ष के अलग-अलग महीनों में लगभग सभी बाघों की क्षेत्र सीमाओं में थोड़ी बहुत कमी, विस्तार और विस्थापन भी देखा गया है जिसमें सबसे अधिक मासिक विस्थापन युवा बाघ ST15 के क्षेत्र में (4.23 किमी) देखा गया और एक स्थान पर बस जाने के बाद यह कम हो गया। इसके बाद ST4 (2.04 किमी), ST13 (1.88 किमी), ST6 (1.69 किमी), और न्यूनतम विस्थापन ST11 (1.51 किमी) के क्षेत्र में दर्ज किया गया। परन्तु सभी बाघों की सीमाओं में ये बदलाव सरिस्का जैसे मानव-बहुल पर्यावास में एक ज़ाहिर सी बात है।
इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि, सभी बाघों की क्षेत्र सीमायें (Territories) अलग-अलग तो होती हैं लेकिन विभिन्न कारणों की वजह से यह वर्ष के किसी भी समय में बदल सकती हैं तथा पूर्णरूप से निर्धारित कुछ भी नहीं है। सरिस्का जैसे अभयारण्य में जहाँ मानवजनित दबाव बहुत है बाघों की बढ़ती आबादी के साथ-साथ मानव-वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ सकते हैं और ऐसे में रेडियो-टेलीमेट्री (radio-telemetry) एक बहुत ही महत्वपूर्ण तकनीक है तथा बाघों की निगरानी के लिए इसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल कर भविष्य में होने वाले मानव-वन्यजीव संघर्षों को कम किया जा सकता है तथा बहार निकले वाले बाघों को वापिस से संरक्षित क्षेत्र के अंदर स्थानान्तरण किया जा सकता है।
सन्दर्भ:
Bhardwaj, G.S., Selvi, G., Agasti, S., Kari, B., Singh, H., Kumar, A., Gupta, R. & Reddy, G.V. (2021). The spacing pattern of reintroduced tigers in human-dominated Sariska Tiger Reserve, 5(1), 1-14
लेखक:
Meenu Dhakad (L) has worked with Tiger Watch as a conservation biologist after completing her Master’s degree in the conservation of biodiversity. She is passionately involved with conservation education, research, and community in the Ranthambhore to conserve wildlife. She has been part of various research projects of Rajasthan Forest Department.
Dr. Gobind Sagar Bhardwaj (R), IFS is APCCF and Nodal officer (FCA) in Rajasthan. He has done his doctorate on birds of Sitamata WLS. He served in the different ecosystems of the state like Desert, tiger reserves like Ranthambhore and Sariska, and protected areas of south Rajasthan and as a professor in WII India. He is also a commission member of the IUCN SSC Bustard Specialist Group.