राजस्थान मे वानिकी साहित्य सृजन के तीन बडे स्त्रोत है – वन अधिकारीयों द्वारा स्वतंत्र लेखन, विभागीय स्तर पर दस्तावेजीकरण एवं वन विभाग के बाहर के अध्येताओं द्वारा लेखन। वन विभाग राजस्थान में कार्य योजनाऐं (Working plans), वन्य जीव प्रबन्ध योजनाऐं (Wildlife management plans), विभागीय कार्य निर्देशिकायें, तकनीकी निर्देशिकायें, प्रशासनिक प्रतिवेदन, वन सांख्यिकी प्रतिवेदन (Forest statistics), ब्रोशर, पुस्तकें, लघु पुस्तिकायें, न्यूज लेटर, पत्रिकाएं, सामाजिक-आर्थिक सवेंक्षण (Socio-economic surveys) आदि तैयार की जाती है। या प्रकाशित की जाती है। इन दस्तावेजों/वानिकी साहित्य से विभिन्न सूचनाओं, योजनाओं एवं तकनीकों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
वन विभाग मुख्य रूप से वन एवं वन्यजीवों के प्रबन्धन एवं विकास कार्यों के संपादन से संबंध रखता है लेकिन अपनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अनुसंधान एवं सर्वेक्षण कार्य भी संपादित करता है। वन कर्मी अपने अनुभव, अनुसंधान एवं सर्वेक्षण कार्यों को कई बार अनुसंधान पत्रों एवं पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित करते रहे है। यह कार्य राज्य सेवा के दौरान या सेवानिवृति के बाद भी किया जाता है। प्रस्तुत लेख मे वर्ष 1947 से 2019 तक 73 वर्षों में राजस्थान वन विभाग के अधिकारीयों-कर्मचारीयों द्वारा लिखित, प्रकाशित एवं संपादित पुस्तक/ पुस्तिकाओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है जो नीचे सारणी में प्रस्तुत हैः
सारणी 1: राजस्थान के कार्मिकों द्वारा लिखित पुस्तकों की सूची
क्र.सं. | लेखक | वन/विभाग में अंतिम पद/ वर्तमान पद | लिखित पुस्तक मय प्रकाशन वर्ष | भाषा |
1 | श्री वी.डी.शर्मा’ (श्री राजपाल सिंह के साथ प्रथम लेखक के रूप में सहलेखन किया) | प्रधान मुख्य वन संरक्षक | Wild Wonders of Rajasthan (1998) | अंग्रेजी |
2 | डॉ. डी. एन. पान्डे* | प्रधान मुख्य वन संरक्षक | 1000 Indian Wildlife Quiz (1991) | अंग्रेजी |
अरावली के वन्यवृक्ष (1994) | हिन्दी | |||
Beyond vanishing woods (1996) | अंग्रेजी | |||
साझा वन प्रबन्धनःजल और वन प्रबंध में लोग ज्ञान की साझेदारी (1998) | हिन्दी | |||
Ethnoforestry: Local knowledge for sustainable forestry and livelihood security (1998) | अंग्रेजी | |||
वन का विराट रूप: वन के उपयोग, दुरूपयोग और सदुपयोग का संयोग (1999) (श्री आर.सी.एल.मीणा के साथ द्वितीय सहलेखक के रूप में लेखन) | हिन्दी | |||
3 | श्री पी.एस.चैहान* (श्री डी.डी.ओझा के साथ द्वितीय सहलेखक के रूप में लेखन) | प्रधान मुख्य वन संरक्षक | मरूस्थलीय परितंत्र में वानिकी एवं वन्यजीव (1996) | हिन्दी |
4 | श्री सम्पतसिंह* | उप वन संरक्षक | राजस्थान की वनस्पति (1977) | हिन्दी |
5 | श्री आर.सी.एल. मीणा* | मुख्य वन संरक्षक | अरावली की समस्यायें एवं समाधान (2003) | हिन्दी |
जल से वन: पारंपरिक जल प्रबंध से वानिकी विकास (2001) | हिन्दी | |||
वन का विराट रूप: वन के उपयोग, दुरूपयोग और सदुपयोग का संयोग (1999) (श्री डी.एन. पाण्डे के साथ प्रथम सह लेखक के रूप में लेखन) | हिन्दी | |||
6 | श्री एस.के.वर्मा* | प्रधान मुख्य वन संरक्षक | राजस्थान का वन्यजीवन (1991) | हिन्दी |
Reviving wetlands: Issues and Challenges (1998) | अंग्रेजी | |||
7 | श्री अभिजीत घोष* | प्रधान मुख्य वन संरक्षक | सही विधि से कैसे करें पौधारोपण? (2005) | हिन्दी |
8 | श्री एस.के.जैन* (डी.के.वेद, जी.ए.किन्हाल,के.रविकुमार, एस.के.जैन, आर. विजय शंकर एवं आर. सुमती के संयुक्त संपादकत्व में प्रकाशित) | मुख्य वन संरक्षक | Conservation, Assessment and Management prioritization for the medicinal plants of Rajasthan (2007) | अंग्रेजी |
9 | श्री कैलाश सांखला* | मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक | National Parks (1969) | अंग्रेजी |
Wild Beauty (1973) | अंग्रेजी | |||
Tiger (1978) | अंग्रेजी | |||
The story of Indian Tiger (1978) | अंग्रेजी | |||
Garden of God (1990) | अंग्रेजी | |||
Return of Tiger (1993) | अंग्रेजी | |||
10 | डॉ.. जी.एस. भारद्वाज* | अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक | Tracking Tigers in Ranthambhore | अंग्रेजी |
11 | यू.एम.सहाय* | प्रधान मुख्य वन संरक्षक | Tennis the menace: 1000 Tennis quiz (1998) | अंग्रेजी |
12 | श्री पी.आर सियाग* | वन संरक्षक | Afforestaiton Manual (1998) | अंग्रेजी |
13 | श्री एस. एस चौधरी | प्रधान मुख्य वन संरक्षक | Ranthambhore beyond tigers (2000) | अंग्रेजी |
14 | श्री फतह सिंह राठौड* | उप वन संरक्षक | With tigers in the wild (1983) (श्री तेजवरी सिंह एवं श्री वाल्मिक थापर के साथ प्रथम लेखक के रूप में लेखन) | अंग्रेजी |
Wild Tiger of Ranthambhore (श्री वाल्मिक थापर के साथ द्वितीय लेखक के रूप में लेखन) | अंग्रेजी | |||
Tiger Portrait of Predators (श्री वाल्मिक थापर एवं श्री जी. सिजलर के साथ तृतीय लेखक के रूप में लेखन) | अंग्रेजी | |||
15 | श्री वी. एस. सक्सेना* | मुख्य वन संरक्षक | Afforestation as a tool for environmental improvement (1990) | अंग्रेजी |
Tree nurseries and planting practices (1993) | अंग्रेजी | |||
Useful trees, shrubs and grasses (1993) | अंग्रेजी | |||
16 | श्री एच.वी. भाटिया** | उप वन संरक्षक | राजस्थान की आन-बान-शान (2011) | हिन्दी |
पुण्यात्मा दानी वृक्ष (प्रकाशन वर्ष अंकित नहीं) | हिन्दी | |||
17 | डॉ. सतीश कुमार शर्मा** | सहायक वन संरक्षक | Ornithobotany of Indian weaver birds (1995) | अंग्रेजी |
लोकप्राणि-विज्ञान (1998) | हिन्दी | |||
वन्यजीव प्रबन्ध (2006) | हिन्दी | |||
Orchids of Desert and Semi-arid Biogeographic zones of India (2011) | अंग्रेजी | |||
वन्य प्राणी प्रबन्ध एवं पशु चिकित्सक (2013) | हिन्दी | |||
Faunal and floral endemism in Rajasthan (2014) | अंग्रेजी | |||
Traditional techniques used to protect farm and forests in India(2016) | अंग्रेजी | |||
वन विकास एवं परिस्थितिकी (2018) | हिन्दी | |||
वन पौधशाला-स्थापना एवं प्रबन्धन (2019) | हिन्दी | |||
वन पुनरूद्भवन एवं जैव विविधता संरक्षण (2019) | हिन्दी | |||
18 | डॉ. भगवान सिंह नाथवत** | सहायक वन संरक्षक | वन-वन्यजीव अपराध अन्वेषण (2006) | हिन्दी |
पर्यावरण कानून बोध (2010) | हिन्दी | |||
19 | डॉ. रामलाल विश्नोई** | उप वन संरक्षक | सामाजिक वानिकी से समृद्धि (1987) | हिन्दी |
भीलवाडा जिले में वन विकास (1997) | हिन्दी | |||
Prespective on social forestry (2001) | अंग्रेजी | |||
20 | श्री भागवत कुन्दन*** | वनपाल | रूँखड़ा बावसी नी कथा (1990) | हिन्दी |
21 | डॉ. सूरज जिद्दी*** | जन सम्पर्क अधिकारी | रणथम्भौर का इतिहास (1997) | हिन्दी |
Bharatpur (1986) | अंग्रेजी | |||
वनः बदलते सन्दर्भ में (1985) | हिन्दी | |||
Museum and art galleries of Rajasthan (1998) | अंग्रेजी | |||
Step well and Rajasthan (1998) | अंग्रेजी | |||
मानव स्वास्थ्य (2003) | हिन्दी | |||
अजब गजब राजस्थान के संग्रहालय (2005) | हिन्दी | |||
राजस्थान के जन्तुआलय (2005) | हिन्दी | |||
राजस्थान के मनोहारी वन्यजीव अभयारण्य (2005) | हिन्दी | |||
राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्य | हिन्दी | |||
कचरा प्रबन्ध (2009) | हिन्दी | |||
वनमित्र योजना (2010) | हिन्दी | |||
A guide to the Wildlife parks of Rajasthan (1998) | अंग्रेजी | |||
22 | श्री संजीव जैन*** | क्षेत्रीय वन अधिकारी | विद्यालयों में बनावें ईको क्लब (2005) | हिन्दी |
प्रकृति प्रश्नोत्तरी (2003) | हिन्दी | |||
23 | डॉ. राकेश शर्मा*** | क्षेत्रीय वन अधिकारी | साझा वन प्रबन्ध (2002) | हिन्दी |
पर्यावरण प्रशासन एवं मानव पारिस्थितिकी (2007) | हिन्दी | |||
पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण (2012) | हिन्दी | |||
राजस्थान फोरेस्ट लॉ कम्पेडियम (2012) | हिन्दी | |||
24 | श्री दौलत सिंह शक्तावत** | उप वन संरक्षक | My encounters with the big cat and other adventures in Ranthabhore (2018) | अंग्रेजी |
25 | श्री सुनयन शर्मा* | उप वन संरक्षक | Sariska (2015) | अंग्रेजी |
*भारतीय वन सेवा का अधिकारी, **राजस्थान वन सेवा को अधिकारी, ***अन्य स्तर के अधिकारी – कर्मचारी, 1-वर्ष 2019 तक सेवा निवृत हो चुके कार्मिक, 2- वर्तमान में भी विभाग में कार्यरत कार्मिक
सारणी 1 से स्पष्ट है कि राजस्थान के वन कार्मिकों ने राज्य से सम्बन्धित वानिकी साहित्य के सृजन हेतु आजादी के बाद यानी 1947 के बाद ही स्वतंत्र लेखन किया है। 1947 से 2019 तक 26 वन विभाग लेखकों ने कुल 70 पुस्तकें प्रकाशित की जिनमें 37 हिन्दी भाषा में एवं 33 अंग्रेजी में लिखी गई। भारतीय वन सेवा के 17 अधिकारीयों ने एवं राजस्थान वन सेवा के 5 अधिकारीयों ने अपनी लेखनी चलाई। श्री कैलाश सांखला (1973 से 1993) ने मुख्यतया बाघ (Tiger-Panthera tigris) पर मोनोग्राफ तर्ज पर विश्व प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं। उन्होंने बाघ के रहस्यमय जीवन का जो दिग्दर्शन कराया वह अनूठा है। श्री वी,डी, शर्मा (1998) द्वारा अपने सेवाकाल के प्रेक्षणों को बेजोड़ रूप में पुस्ताकाकार प्रस्तुत किया गया। उनकी पुस्तक ’’वाइल्ड वन्डर्स ऑफ़ राजस्थान” में विषय व छायाचित्रों की विविधता देखने लायक है। डॉ. जी.एस.भारद्वाज (1978), श्री फतह सिंह राठौड़ (1983,2000), श्री तेजवीर सिंह (1983) एवं श्री सुनयन शर्मा (2015) ने अपने लेखन कौशल द्वारा श्री सांखला की बाघ संरक्षण संबंधी लेखन विरासत को और आगे बढाया है। श्री आर.सी.एल.मीणा (1999,2001,2003) ने ग्रामीण परिवेश से जुडे पर्यावरणीय एवं वानिकी मुद्दों को छूआ है। डॉ. डी. एन. पाण्डे (1991, 94, 96, 98, 99) ने पारम्परिक देशज ज्ञान व लोक वानिकी की अहमियत को रेखंकित कर इसके उपयोग को बढावा देकर वन समृद्धि लाने पर जोर दिया है। श्री वी.एस.सक्सेना (1990, 93) ने पौधशाला एवं वृक्षारोपण विषयों पर लिखा है। श्री एस.के.वर्मा (1991, 98) ने वन्यजीवन की विविधतापूर्ण झाँकी प्रस्तुत की है एवं नमक्षेत्र की समस्याओं व संरक्षण उपायों को प्रकट किया है। श्री पी.एस.चैहान (1996) ने थार मरूस्थल की समस्याओं व जुड़े मुद्दों पर प्रकाश डाला है एवं विषम क्षेत्र की परिस्थितियों में वानिकी एवं वन्यजीवन संरक्षण-प्रबन्धन प्रद्धतियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है।
श्री सम्पतसिंह (1977) ने राजस्थान के विभिन्न महत्वपूर्ण पौधों की जानकारी प्रस्तुत की है। श्री अभिजीत घोष (2005), डॉ. भगवान सिंह नाथावत (2006, 2010), डॉ. सूरज जिद्दी (1977 से 2010) एवं श्री संजीव जैन (2005) ने वानिकी से सम्बन्धित अलग-अलग विषयों पर सरल भाषा में सचित्र पुस्तिकायें प्रकाशित की हैं। डॉ. जिद्दी द्वारा लिखित विभिन्न पुस्तिकायें बच्चों हेतु बहुत उपयोगी हैं जो विद्यालय – महाविद्यालयों के छात्र-छात्राओं के लिये बहुत ज्ञान वर्धक हैं एवं एक हद तक वानिकी क्षेत्र के बाल साहित्य की कमी पूरी करती हैं। श्री यू.एम.सहाय (1996) ने टेनिस खेल संबंधी प्रश्नोत्तरी पर पुस्तक लिखी है। हालांकि इस पुस्तक का वन से संबंध नहीं है तथापि वनाधिकारी की लेखन कुशलता का प्रमाण है। वानिकी से संबंधित प्रश्नोत्तरी डॉ. डी.एन.पान्डे (1991) एवं श्री संजीव जैन (2003) ने पुस्तककार प्रस्तुत की हैं। डॉ. राकेश शर्मा (2002,07,12) ने वानिकी के क्षेत्र में जनता की भागीदारी, प्रशासनिक पहलुओं एवं नियामवली जैसे विषयों पर प्रकाश डाला है। श्री एस.के.जैन (2007) ने राज्य के औषधीय पौधों पर हुई कैम्प कार्यशाला (Camp Workshop) के आधार पर तैयार रेड डेटा बुक के संपादन में भाग लिया है। डॉ. सतीश कुमार शर्मा (1995 से 2019) ने राजस्थान की जैव विविधता, तथा वन एवं वन्यजीवों के वनवासियों से संबंध की झलक के साथ- साथ संरक्षित क्षेत्रों एवं चिडियाघरों में वन्यप्राणी संरक्षण-संवर्धन एवं प्रबन्धन विषयों पर सविस्तार प्रकाश डाला है। श्री एच.वी. भाटिया (2011) ने रजवाडों के समय एवं आजादी के तुरन्त बाद की वानिकी पर प्रकाश डाला है। उन्होंने जन – जागरण हेतु भी कलम चलाई है। श्री भागवत कुन्दन (1990) ने डूंगरपुर- बांसवाडा की स्थानीय वागडी बोली में वनों-वृक्षों की महिमा को काव्य रूप में प्रस्तुत कर वन संरक्षण हेतु जनजागृत में योगदान दिया है। जब वे राजकीय सेवा में थे, उन्होंने अपने काव्य को आमजन के समक्ष गेय रूप में भी प्रस्तुत कर जागरण अभियान चलाया। लेखक ने 1986 में उनके काव्य पाठ स्वयं सुने हैं।
वन कार्मिकों के लेखन में एक बात सामने आई है, वह है उनके द्वारा अनुभवों एवं संस्मरणों का भी वैज्ञानिकता के साथ प्रस्तुतिकरण। फील्ड में निरन्तर होने वाले प्रेक्षणों एवं अनुभवों से हम अच्छे निष्कर्ष निकाल सकते हैं तथा नये सिरे से ऐसी चीजों पर अनुसंधान की ज्यादा जरूरत नहीं होती।
आजादी के बाद राजस्थान वन विभाग में श्री सी.एम. माथुर पहले ऐसे वन अधिकारी हुऐ हैं जिन्होने 1971 मे पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वनअधिकारीयों में पीएच.डी. उपाधि लेने की प्रवृति प्रारंभ हुई और वन अनुसंधान को गति मिलने लगी। श्री कैलाश सांखला ने 1970 के आसपास फील्ड में प्रेक्षण लेकर उसे आधार बना कर वैज्ञानिक लेखन की नींव प्रारंभ की। राजस्थान में वैज्ञानिक प्रेक्षण-लेखन को आधार मानकर पुस्तकें लिखने का युग डॉ. सी.एम. माथुर एवं श्री कैलाश सांखला जैसे वन अधिकारियों ने प्रारंभ किया। उनके बाद यह प्रवृति और बढती गयी। माथुर – सांखला के लेखन युग से प्रारंभ कर अगले 45 सालों में 26 वनकर्मी पुस्तक -लेखक के रूप में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं।
वन कार्मिकों के लेखन में विविधता है। वन, वन्यजीव, पर्यावरण, जैव विविधता आदि विषयों पर अत्याधिक लेखन हुआ है लेकिन अभी वन – इतिहास (थ्वतमेज भ्पेजवतल) एवं आत्मकथा लेखन का कार्य किसी ने नहीं किया है। राजकीय स्तर पर हाँलांकि “विरासत” नामक पुस्तक में इतिहास लेखन की तरफ कदम उठाया गया हैं लेकित यह शुरूआत भर है। आने वाले समय में इन क्षेत्रों में भी लेखन होगा, ऐसी आशा है।
Cover photo Credit: Mr. Abhikram Shekhawat
वन विभाग के लेखकों को हम दिल से प्रणाम करतें हैं
मै कुछ पुस्तके मगाना चाहता हूँ