एंडेमिक प्राणी वे प्राणी हैं जो एक स्थान विशेष में पाए जाते हैं । राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है। यह राज्य न केवल वनस्पतिक विविधता से समृद्ध है बल्कि विविध प्रकार के प्राणियों से भी समृद्ध है। इस राज्य में विभिन्न प्रकार के आवास, प्रकृति में हैं जो कि जीव-जंतुओं की विविधता एवं स्थानिकता (Endemism) के अस्तित्व को सुनिश्चित करते हैं। साथ ही कई प्रकार के एंडेमिक प्राणी यहाँ मिलते हैं। अपृष्ठवंशी जीवों से लेकर स्तनधारी जीवों तक कई स्थानिक प्रजातियां एवं उप-प्रजातियां राजस्थान की भौगोलिक सीमा के भीतर पायी जाती हैं। जीव-जंतुओं की स्थानिकता की एक अच्छी झलक अली और रिप्ले (1983), घोष एवं साथी (1996), गुप्ता और प्रकाश (1975), प्रकाश (1973) एवं शर्मा (2014,2015) के शोध द्वारा मिलती है।
कई प्रजातियाँ राजस्थान के थार रेगिस्तान, गुजरात और पाकिस्तान के लिए स्थानिक हैं तो वहीं कई प्रजातियां राजस्थान के अन्य हिस्सों और आसपास के राज्यों के कुछ हिस्सों में स्थानिक हैं। जो प्रजातियां, उप-प्रजातियां एवं किस्में मुख्य रूप से राजस्थान राज्य की भौगोलिक सीमाओं के लिए विशेष रूप से स्थानिक हैं उनको नीचे सारणी में प्रस्तुत किया गया है:
S.No.
Species/sub-species
Taxonomic group
1.
Rogerus rajasthanensis
Porifera (Sponge)
2.
Orentodiscus udaipurensis
Platyhelminthes (Trematode)
3.
Thapariella udaipurensis
Platyhelminthes (Trematode)
4.
Neocotylotretus udaipurensis
Platyhelminthes (Trematode)
5.
Indopseudochinostomus rajasthani
Platyhelminthes (Trematode)
6.
Triops (Apus) mavliensis
Platyhelminthes (Trematode)
7.
Artemia salina
Arthropoda (Crustacea)
8.
Branchinella biswasi
Arthropoda (Crustacea)
9.
Leptestheria jaisalmerensis
Arthropoda (Crustacea)
10.
L. longimanus
Arthropoda (Crustacea)
11.
L. biswasi
Arthropoda (Crustacea)
12.
Sevellestheria sambharensis
Arthropoda (Crustacea)
13.
Incistermes dedwanensis
Arthropoda (Termite)
14.
Microcerotermes laxmi
Arthropoda (Termite)
15.
Micorcerotermes raja
Arthropoda (Termite)
16.
Angulitermes jodhpurensis
Arthropoda (Termite)
17.
Microtermes bharatpurensis
Arthropoda (Termite)
18.
Eurytermes mohana
Arthropoda (Termite)
19.
Tentyria rajasthanicus
Arthropoda (Beetle)
20.
Mylabris rajasthanicus
Arthropoda (Beetle)
21.
Buthacus agarwali
Arthropoda (Scorpion)
22.
Octhochius krishnai
Arthropoda (Scorpion)
23.
Androctonus finitimus
Arthropoda (Scorpion)
24.
Baloorthochirus becvari
Arthropoda (Scorpion)
25.
Compsobuthus rogosulus
Arthropoda (Scorpion)
26.
Odontobuthus odonturus
Arthropoda (Scorpion)
27.
Orthochirus fuscipes
Arthropoda (Scorpion)
28.
O. pallidus
Arthropoda (Scorpion)
29.
Vachonus rajasthanicus
Arthropoda (Scorpion)
30.
Apoclea rajasthansis
Arthropoda (Dipetra)
31.
Oxyrhachis geniculata
Arthropoda (Hemipetra)
32.
Diphorina bikanerensis
Arthropoda (Hemipetra)
33.
Ceroplastes ajmeransis
Arthropoda (Coccid)
34.
Kerria chamberlinii
Arthropoda (Coccid)
35.
Labeo rajasthanicus
Chordata (Fish)
36.
Labeo udaipurensis
Chordata (Fish)
37.
Nemacheilus rajasthanicus
Chordata (Fish)
38.
Aphanius dispar
Chordata (Fish)
39.
Bufoniceps laungwalansis
Chordata (Agama)
40.
Saxicola macrorhyncha
Chordata (Bird)
41
Salpornis spilonotus rajputanae
Chordata (Bird)
विभिन्न स्थानिक वर्गों की एक झलक
S.No.
Taxa /group
Number of species
1.
Sponge
1
2.
Trematoda
4
3.
Crustacea
7
4.
Termite
6
5.
Beetle
2
6.
Scorpion
9
7.
Diptera
1
8.
Hemiptera
2
9.
Coccids
2
10.
Fish
4
11.
Agama
1
12.
Birds
2
Total
41
राजस्थान में किसी भी प्रकार की प्रभावी बाधाएं नहीं हैं, इसलिए राज्य में अधिक स्थानिकवाद विकसित नहीं हुआ है। कोई भी प्राणी वंश यहाँ स्थानिक नहीं पाया गया है।पहले कई प्रजातियों को राजस्थान की एंडेमिक प्रजाति माना जाता है लेकिन समान जलवायु एवं आवासीय परिस्थितियों के कारण उनकी उपस्थिति अन्य भारतीय राज्यों एवं पाकिस्तान के कुछ सुदूर हिस्सों में होने की सम्भावना है। हमें राज्य की एंडेमिक प्रजातियों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए अधिक सटीक सर्वेक्षण और शोध की आवश्यकता है।
References
Ali, S. & S.D. Ripley
(1983): Handbook of the birds of India and Pakistan (Compact edition)
Ghosh, A.K., Q.H. Baqri
& I. Prakash (1996): Faunal diversity in the Thar Desert: Gaps in research.
Gupta, R. & I. Prakash
(1975): Environmental Analysis of the Thar Desert
Prakash, I (1963):
Zoogeography and evolution of the mammalian fauna of Rajasthan desert, India.
Mammalia, 27: 342-351
Sharma, S.K. (2014): Faunal
and Floral endemism in Rajasthan.
Sharma, S.K. (2015): Faunal
and floral in Rajasthan. Souvenir, 18th Birding fair, 30-31 January
2015, Man Sagar, Jaipur
राजस्थान वनस्पतिक विविधता से समृद्ध राज्य है। जहाँ रेगिस्तान,आर्द्रभूमि,घास के मैदान, कृषि क्षेत्र, पहाड़, नमक फ्लैट जैसे कई प्रकार के प्राकृतिक आवास विद्यमान हैं। जिनमे विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों की प्रजातियां भी पायी जाती हैं। यहाँ मुख्य रूप से तीन प्रकार के वन पाए जाते हैं जो उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वन एवं उपोष्ण कटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाले पर्वतीय प्रकार के वन हैं । राज्य के अधिकतर जंगल पहले दो वन प्रकार के ही हैं और उपोष्ण कटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाले पर्वतीय वन सबसे कम जो केवल सिरोही जिले के माउंट आबू के ऊपरी इलाकों तक ही सीमित हैं। इन सभी वनों में कई प्रकार की स्थानिक (endemic) वनस्पतिक प्रजातियां पायी जाती हैं ।
स्थानिक वनस्पतियों के विभिन्न पहलुओं की अच्छी जानकारी अवस्थी (1995), भंडारी (1978), शेट्टी और सिंह (1987,1991और1993) एवं शर्मा (2014, 2015) के कार्य द्वारा भी हुई है।
कई वनस्पतिक प्रजातियाँ राजस्थान के थार रेगिस्तान गुजरात और पाकिस्तान के लिए स्थानिक हैं तो वहीं कई प्रजातियां राजस्थान के अन्य हिस्सों और आसपास के राज्यों के कुछ हिस्सों के लिए स्थानिक हैं। जो प्रजातियां उप-प्रजातियां एवं किस्में मुख्य रूप से राजस्थान राज्य की भौगोलिक सीमाओं के लिए विशेष रूप से स्थानिक हैं उनकी जानकारी नीचे सारणी में प्रस्तुत है:
S.No.
Species
Main Taxa
1.
Rivularia globiceps abuensis
Alga
2.
Gloeotrichia raciborskii kaylanaensis
Alga
3.
Physica abuensis
Lichen
4.
Serratia sambhariana
Bacterium
5.
Riccia abuensis
Bryophyte
6.
R. jodhpurensis
Bryophyte
7.
R. reticulatula
Bryophyte
8.
Asplenium pumilum hymenophylloides
Fern
9.
Seleginella rajasthanensis
Fern
10.
Isoetus tuburculata
Fern
11.
I reticulata
Fern
12.
I rajasthanensis
Fern
13.
Marselia condensata
Fern
14.
M. rajasthanensis
Fern
15.
M. rajasthensis ballardii
Fern
16.
M. minuta indica
Fern
17.
Cheilanthes aravallensis
Fern
18.
Farsetia macrantha
Dicot plant
19.
Cleome gynandra nana
Dicot plant
20.
Abutilon fruticosum chrisocarpa
Dicot plant
21.
A . bidentatus major
Dicot plant
22.
Pavonia arabica glatinosa
Dicot plant
23.
P. arabica massuriensis
Dicot plant
24.
Melhania magniflolia
Dicot plant
25.
Ziziphus truncata
Dicot plant
26.
Alysicarpus monilifer venosa
Dicot plant
27.
Ipomoea cairica semine-glabra
Dicot plant
28.
Anogeissus seriea nummularia
Dicot plant
29.
Pulicaria rajputanae
Dicot plant
30.
Convolvulus auricomus ferrugenosus
Dicot plant
31.
C. blatteri
Dicot plant
32.
Merremia rajasthanensis
Dicot plant
33.
Barleria prionitis subsp. prionitis var. dicantha
Dicot plant
34.
Cordia crenata
Dicot plant
35.
Dicliptera abuensis
Dicot plant
36.
Strobilanthes helbergii
Dicot plant
37.
Euphorbia jodhpurensis
Dicot plant
38.
Phyllanthus ajmerianus
Dicot plant
39.
Anticharis glandulosa caerulea
Dicot plant
40.
Lindernia bracteoides
Dicot plant
41.
L. micrantha
Dicot plant
42.
Oldenlandia clausa
Dicot plant
43.
Veronica anagallis – aquatica bracteosa
Dicot plant
44.
Veronica beccabunga attenuata
Dicot plant
45.
Apluda blatteri
Monocot plant (grass)
46
Aristida royleana
Monocot plant (grass)
47
Cenchrus prieuri scabra
Monocot plant (grass)
48
C. rajasthanensis
Monocot plant (grass)
49
Digitaria pennata settyana
Monocot plant (grass)
50
Ischaernum kingii
Monocot plant (grass)
विभिन्न स्थानिक वर्गों का विश्लेषण
S.No.
Taxa/Group
Number of Species,sub-species and verities
1.
Algae
2
2.
Lichen
1
3.
Bacteriya
1
4.
Bryophyta
3
5.
Petridothyta (fern)
10
6.
Dicot plants
27
7.
Monocot plants
6
Total
50
कई लेखक कॉर्डिया क्रेनाटा को राजस्थान की एक स्थानिक प्रजाति के रूप में मानते हैं लेकिन भारत के बाहर यह मिस्र में खेतों में भी उगाया जाता है। हालाँकि राजस्थान में अरावली एवं थार रेगिस्तानी जैसी प्राकृतिक संरचनाएं विद्यमान हैं लेकिन वे प्रभावी अवरोध नहीं बना पाते हैं। इसलिए राज्य में अधिक स्थानिकवाद विकसित नहीं हुआ है। कोई भी वनस्पति वंश यहाँ स्थानिक नहीं पाया गया है। कभी-कभी कुछ प्रजातियों एवं उप प्रजातियों की स्थिति को स्थानिक नहीं माना जाता है क्योंकि उनकी उपस्थिति अन्य भारतीय राज्यों और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में समान प्रकार के निवास स्थानों की निरंतरता के कारण संभव है। हमें राज्य की स्थानिक प्रजातियों की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए अधिक सटीक सर्वेक्षण और शोध की आवश्यकता है।
References
Awasthi, A. (1995): Plant geography and flora of Rajasthan.
Bhandari, M.M. (1978): Flora of the Indian desert.
Sharma, S.K. (2014): Faunal and Floral endemism in Rajasthan.
Sharma, S.K. (2015): Faunal and floral in Rajasthan. Souvenir, 18th
Birding fair, 30-31 January 2015, Man Sagar, Jaipur
Shetty, B.V. & V. Singh (1987, 1991, 1993): Flora of Rajasthan.
Vol. I, II, III
साकेर फाल्कन, भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाला सबसे बड़ा फाल्कन है। एक शिकारी के रूप में यह अपनी ताकत, शिकार करने के तरीके एवं तेज गति के कारण, सदियों से जाना जाता रहा है ।
नवीनतम विश्लेषण के आधार पर इसे IUCN की रेड सूची में लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है जो इसकी संख्या में तेजी से गिरावट का संकेत देता है। आईयूसीएन के अनुसार यह मानवीय गतिविधियों जैसे बिजली लाइनों से करंट लगने, व्यापार के लिए पकड़ने, लगातार घटते पर्यावास और रासायनिक कीटनाशकों के कारण कम हो रहे हैं, यह गिरावट विशेष रूप से मध्य एशियाई प्रजनन मैदानों में अधिक देखी गयी है।
साकेर फाल्कन, बड़े आकार व भूरे रंग का फाल्कन होता हैं। हालांकि भारत में साकेर फाल्कन की कई उप-प्रजातियां हैं, परन्तु हमें 2 ही प्रकार देखने को मिलती हैं। लद्दाख में पायी जाने वाली आबादी को अक्सर अल्ताई साकेर के नाम से जाना जाता है, जिसका रंग गहरा भूरा व ऊपरी पंखो पर दामी रंग की पट्टियां होती हैं। वहीं थार रेगिस्तान में पाए जाने वाला साकेर, नाममात्र प्रवासी उप-प्रजातियां हैं और जो अल्ताई साकेर की तुलना में अधिक भूरे रंग की होती हैं।इस फाल्कन को गहरे रंग के ऊपरी भाग और हल्के रंग के अंदरूनी भाग से आसानी से पहचाना जा सकता है। वहीं बच्चो में अंदरूनी भाग पर भूरे रंग की धारिया तथा वयस्कों में भूरे रंग की बूंदों के निशान होते है। कई बार यह समान दिखने वाली अन्य प्रजातियों जैसे लगर फाल्कन और पेरेग्रीन फाल्कन के बच्चे जैसा प्रतीत होता है। परन्तु निम्नलिखित बातों का ध्यान रख कर इसकी पहचान की जा सकती है।
इसमें लगर और जुवेनाइल पेरेग्रीन फाल्कन की तुलना में कम moustachial stripe होती है।
लगर और जुवेनाइल पेरेग्रीन फाल्कन की तुलना में इसका शरीर अधिक भारी और पंख चौड़े होते हैं
जुवेनाइल पेरेग्रीन में सिर गहरे रंग, अंदरूनी भाग पर समान रूप से खड़ी धारियाँ, मलेर पट्टी और नुकीले व गहरे रंग के पंख होते हैं जबकि साकेर फाल्कन के सिर हल्का पीला व पेरेग्राइन की तुलना में थोड़ा भारी होता है तथा सिर पर गोल व मटमैले रंग के पंख होते हैं।
लगर फाल्कन समान रूप से गहरे भूरे रंग के होते हैं जिसमें पूंछ और ऊपरी पंखो में किसी भी प्रकार की धारियां नहीं होती है जबकि साकेर फाल्कन में पूंछ और ऊपरी पंखो पर धारियां होती हैं ।
भारत में, यह एक दुर्लभ पक्षी माना जाता है, जिसमें एक छोटी सी आबादी लद्दाख क्षेत्र तक सीमित है और कुछ प्रवासी पक्षी कभी-कभी हिमालय के आसपास भी देखने को मिलते हैं तथा गुजरात और राजस्थान के थार रेगिस्तान व इसके आसपास के क्षेत्रों में नियमित रूप से देखे जाते हैं।पिछले कुछ वर्षों में राजस्थान में दिखे जाने की सूचनाएं
जोड़बीड़ – वयस्क मादा – श्री नीरव भट्ट (श्री हीरा पंजाबी द्वारा लगातार 3 सीजन 2014-15 तक देखा गया, 15-16 में श्री नीरव भट्ट द्वारा, 16-17 में श्री नीरव भट्ट द्वारा )
डेजर्ट नेशनल पार्क – वयस्क पक्षी – श्री हेमंत दांडेकर (नवंबर 2014 में केवल एक बार देखा गया)
जोड़बीड़ – जुवेनाइल पक्षी – श्री जे शाह को केवल एक बार जनवरी 2016 में दिखा।
सांभर झील – वयस्क नर को पीले पैर वाले हरे कबूतर के शिकार के साथ – श्री नीरव भट्ट (2019-20 में देखा गया)
साकेर फाल्कन शारीरिक रूप से खुले इलाके में जमीन के करीब शिकार करने के लिए अनुकूलित होते हैं, यह तेज गति व फूर्ति के साथ डेजर्ट जर्ड और बैंडिकूट जैसे मध्य-आकार के स्थलीय चूहों का शिकार करते हैं । हालाँकि वे लार्क से लेकर कबूतर जैसे छोटे से मध्यम आकार के पक्षियों का भी शिकार करते हैं।
साकेर फाल्कन शुष्क आवासों में जीवित रहने के लिए अनुकूलित है और किसी क्षेत्र में साकेर फाल्कन का मौजूद होना एक स्वस्थ रेगिस्तान पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत होता है। जहां तक पक्षीविज्ञान का संबंध है, राज्य में ऐसी दुर्लभ प्रजाति के फाल्कन का बहुत महत्व है। थार रेगिस्तान के व्यापक अध्ययन से साकेर फाल्कन के दिखने की और सूचनाएं भी मिल सकती हैं।
Saker falcon is the largest falcon seen in the Indian Subcontinent. Due to its prowess as a hunter, it has been prized by humans for centuries, particularly by falconers.
Status
It has been uplisted in the IUCN Red List as Endangered because of the latest analysis which indicates rapid decline in the population. IUCN states “This negative trend is a result of a range of anthropogenic factors including electrocution on power lines, unsustainable capture for the falconry trade, as well as habitat degradation and the impacts of agrochemicals, and the rate of decline appears to be particularly severe in the species’s central Asian breeding grounds”
Identification
Saker Falcons are large brown coloured falcons. There are many subspecies of the Saker falcons however in India, we get to see 2 type of birds. The Ladakh population is often referred to as Altai Saker while which are dark brown coloured bird with rufous barring on the upperwings and the ones which we get to see in the Thar Desert are usually the nominate migratory subspecies which are relatively paler brown than the Altai Saker.
Saker falcon can be identified Dark upperparts and pale underparts with brown streaking in juvenile and tear drop markings in adults. It can be confused with similar looking species like Laggar Falcon and Juvenile Peregrine falcon. However by keen observation, following pointers can help in confirmation of the identification of saker.
It has relatively less prominent moustachial stripe in comparison to Laggar& juvenile Peregrine
It is more bulky and has broader body and wings in comparison to laggar and juvenile Peregrine
Juvenile Peregrine has dark head, uniform vertical streaking on the underparts, prominent malar strip and longer more pointed dark wings while the Saker has pale head, more heavier and slightly rounded paler wings in comparison to the Peregrine.
Laggar falcons are uniform dark brown usually with uniform unbarred tail and primaries while saker falcons have barred primaries and tail.
Distribution
In India, it is considered to be a rare bird with a small number of resident breeding population limited to Ladakh region and migratory birds seen ocassionally near the Himalayas and regularly in and around the Thar desert of Gujarat and Rajasthan.
Sightings in Rajasthan in last few years
Jodbeed – Adult female – Mr.Nirav Bhatt ( Seen for 3 consecutive seasons 2014-15 by Mr.Hira Punjabi, 15-16 by Mr.Nirav Bhatt, 16-17 by Nirav Bhatt
Desert National park – Adult bird – Mr.Hemant Dandekar (seen only once in Nov 2014)
Jodbeed – Juvenile bird – Mr.Jay Shah seen only once Jan 2016
Sambar Lake – Adult male with yellow footed green pigeon kill – Mr.Nirav Bhatt (Seen in 2019-20)
Prey
Sakers are physically adapted to hunting close to the ground in open terrain, combining rapid acceleration with high maneuverability, thus specializing on mid-sized diurnal terrestrial rodents like Desert Jird and Bandicoot. However they also predate on small to medium sized birds ranging from Larks to pigeons.
Importance
Saker falcons are adapted to survive in arid habitats and the sightings of Saker falcons in the area is an indicator of healthy desert ecosystem. Occurrence of such rare species of falcons in the state is of a great importance as far as ornithology is concerned. Extensive study of the thar desert can reveal more information of occurrence of more Saker falcons.
मगरमच्छ हमारे पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, परन्तु अब यह हमारे घरों में क्यों आ रहा है ? कही ऐसा तो नहीं हम ही इसके घर में चले गए हैं ? यह सब एक विस्तृत शोध का विषय है। यहाँ बी.बी.सी. न्यूज द्वारा प्रकाशित दिनांक 31.01.2019 की मुख्य पंक्ति मुझे याद आती है जिसमें माना गया है कीभारतीय लोग अपने गाँवों को मगरमच्छ के साथ साझा करते हैं।
भारत में कई राज्य ऐसे भी हैं जहाँ पर अक्सर मानव और मगरमच्छ के बीच संघर्ष होते रहते है, इनमें महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में होकर बहने वाली कृष्णा एव इसकी सहायक नदी के किनारे बसे गाँवो से अक्सर मानव और मगरमच्छ के बीच संघर्ष की खबरें सुर्खियों में रहती हैं, राजस्थान से जाने वाली माही नदी जिसका विलय गुजरात की साबरमती नदी में होता है, के आसपास से अक्सर मानव और मगरमच्छ के बीच संघर्ष की खबरें दस्तक देती रहती हैं।
कोटा वासी भी अपने शहर के कुछ हिस्सों को मगरमच्छ के साथ साझा करते हैं, कोटा बैराज के दायीं और बायीं ओर सिंचाई हेतु नहर है, बायीं नहर कोटा शहर के जिस क्षेत्र से गुजरती है वह क्षेत्र थोड़ी ऊंचाई पर होने के कारण वहां मगरमच्छ के संघर्ष कम होते हैं किन्तु दायीं नहर का क्षेत्र कोटा बैराज से नीचे होने के कारण यहाँ मानव का मगरमच्छ से संघर्ष ज्यादा होता है। पिछले कुछ वर्षो में कृषि भूमि पर जो कॉलोनियां विकसित हुई हैं जैसे थेकडा रोड़ पर बसी कालोनियाँ, नया नोहरा, नम्रता आवास, बजरंग नगर, शिव नगर आदि बोरखेड़ा क्षेत्र में बसी हुई कई कॉलोनियां मानव एवं मगरमच्छ के संघर्ष का केन्द्र बनी हुई हैं।
हम कोटा में मगरमच्छ से संघर्ष की बात करें और “चन्द्रलोई“ नदी का नाम न ले ऐसा नहीं हो सकता, कोटा क्षेत्र की मगरमच्छ की सबसे बड़ी आबादी इसी नदी व इसमें आकर मिलने वाले विभिन्न मलनलों में फलफूल रहीं हैं। यह नदी कोटा से लगभग 21 कि.मी. दूर मवासा से प्रारम्भ होकर मानस गाँव पहुंच कर चम्बल नदी में मिल जाती है इसी नदी में मिलने वाला एक बरसाती नाला है जो अब “मलनल“ हो गया है इसमें अब बरसात का पानी कम और “व्यवसायिक बहिःस्त्राव“ ज्यादा मिलता है जो सीधा चल्द्रलोई नदी में होकर चम्बल नदी में आकर विलय होता है, इस व्यवसायिक बहिःस्त्राव के कारण वर्णित मलनल में जल का प्रदूषण इस स्तर तक बढ़ गया है की इस व्यवसायिक बहिःस्त्राव के कारण मलनल में निवास करने वाले मगरमच्छों पर सफेद रंग के केमिकल की परत चढ़ गयी है और सभी मगरमच्छ सफेद हो गये हैं, कभी कभी हम किसी नये व्यक्ति से यह व्यंग्य कर देते हैं कि सफेद रंग के मगरमच्छ पूरे विश्व में सिर्फ यहीं पाये जाते हैं।
प्रदुषण के कारण मलनल में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होने पर भी मगर के बने रहने से लगता है की कि प्रलय के उपरांत पृथ्वी पर मगरमच्छ आखिरी जीव होगा।
शोध में यह स्पष्ट हो चुका है कि चन्द्रलोई नदी का जल न तो पीने के लिए उपयुक्त है न ही खेती के लिए। ऐसे प्रदूषित जल में हम यदि मगरमच्छ के भोजन की बात करें तो यह कहना बहुत कठिन होगा के उसके भोजन की पूर्ति जलीय जीवों से हो जाती होगी और यही यहाँ मगरमच्छ का मानव से संघर्ष का कारण बनता है , मुझे अच्छे से ध्यान आता है कि जुलाई 19 में चन्द्रेसल मठ के नजदीक एक एनिकट पर नहाते हुये बालक मनीष भील को तीन मगरमच्छ खींच कर नदी में ले गए थे वहीं जुलाई 2018 में एक मगरमच्छ द्वारा अपने खेत में काम कर रहे नसरत उल्लहा खान (40) पर हमला कर दिया गया था किन्तु उनके साथी ने तत्परता दिखाते हुये मगरमच्छ पर कुल्हाडी से वार किये जिसके कारण मगरमच्छ को अपने शिकार को छोडने पर मजबूर होना पडा, इस हमले में नसरत उल्लाह खान गम्भीर रूप से घायल हो गये थे। इस इलाके से गाय, बछडे, सुअर आदि पालतू या आवारा जानवर को मगरमच्छ द्वारा उठा ले जाने की घटनाऐं आम हैं, ऐसा प्रतीत होता है की यहाँ जल में भोजन की मात्रा कम होने के कारण, मगरमच्छ का मुख्य भोजन यही हो गया है।
उपरोक्त कठिन परिस्थितियों में भी वन मण्डल, कोटा के लाडपुरा रेंज की टीम और वन्यजीव मण्डल, कोटा के गश्तीदल की टीम सराहनीय कार्य कर रही है, उन्हें जहाँ कहीं से भी मगरमच्छ के रिहायशी इलाके में होने व मानव और मगरमच्छ के संघर्ष की सूचना मिलती है तो यह टीम तुरन्त वहाँ पहुँच कर मगरमच्छ को रेस्क्यू कर वापस प्राकृतिक निवास चम्बल नदी में व मुकन्दरा हिल्स टाइगर रिजर्व के सावन भादो डेम में छोड़ देती है।
मेरे द्वारा ऊपर कठिन परिस्थितियों शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया क्योंकि मगरमच्छ को रेस्क्यू करने वाले उपरोक्त दोनो मण्डल के कर्मचारी न तो मगरमच्छ रेस्क्यू के लिए प्रशिक्षित हैं और न ही उनके पास रेस्क्यू के लिए उपकरण उपलब्ध हैं।
मगरमच्छ रेस्क्यू के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद मैंने पाया कि विपरीत परिस्थिति में भी दोनो टीमों द्वारा वर्ष 2016 में 30, 2017 में 19, 2018 में 21, 2019 में 67 मगरमच्छ रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थान पर छोड़े गए, वहीं 2016 में 1, 2017 में 1, 2018 में 1, 2019 में 6 मगरमच्छ मृत पाये गए। वर्ष 2019 में मगरमच्छ रेस्क्यू व मृत्यु की संख्या में वृद्वि भविष्य में मानव और “मगर“ बीच संघर्ष का जोखिम तो नहीं बढ़ा देंगी?
कोटा शहर और चन्द्रलोई नदी में मानव से “मगर“ का संघर्ष खत्म हो जाएगा, यह तो कहना बहुत कठिन है किन्तु हम यह प्रयास तो कर ही सकते हैं कि चन्द्रलोई नदी में जल प्रदूषण शून्य हो जाए जिससे मगरमच्छ को जल में भोजन उपलब्ध हो और भोजन के लिए “मगर“ को मानव के साथ संघर्ष न करना पडे़।