“सरिस्का टाइगर रिजर्व में “भामर मधुमक्खी” द्वारा छत्ता बनाने के लिए बरगद कुल के बड़े एवं पुराने पेड़ों को प्राथमिकता दिया जाना पुराने पेड़ों की महत्वता पर प्रकाश डालती है।”
हमारी प्रकृति में विभिन्न प्रकार के जीव “परागणकर्ता (पोलिनेटर)” की भूमिका निभाते हैं जो न सिर्फ पर-परागण (Cross pollination) को बढ़ावा देते हैं बल्कि आनुवंशिक विविधता को बढ़ाने, नई प्रजातियों के बनने और पारिस्थितिकी तंत्र में स्थिरता लाने में भी योगदान देते हैं। यह परागण, सहजीविता पर आधारित पारिस्थितिक तंत्र प्रक्रिया का एक ऐसा उदाहरण है जो उष्णकटिबंधीय स्थानों पर रहने वाले मानव समुदायों को एक सीधी सेवा प्रदान करता है और इसीलिए सभी परागणकर्ता पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण हैं। परन्तु, परागणकर्ताओं की बहुतायत, विविधता और स्वास्थ्य को मानव गतिविधियों जैसे मानवजनित जलवायु परिवर्तन, निवास स्थान के विनाश और पर्यावरण प्रदूषकों से खतरा है।
ऐसी ही एक परागणकर्ता है, “बड़ी मधुमक्खी” जिसका वैज्ञानिक नाम “एपिस डोरसाटा (Apis dorsata)” है और राजस्थान में इसे “भामर” नाम से जाना जाता है। भामर, एशिया भर के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों और कृषि क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण शहद उत्पादक है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में उष्णकटिबंधीय वनों का विखंडन बहुत तेजी से हुआ है, फिर भी ऐतिहासिक रूप से मधुमक्खियों पर निवास स्थान के विखंडन के प्रभावों पर बहुत कम अध्ययन किये गए हैं और जो किये गए हैं वो सिर्फ नवोष्ण-कटिबंधीय क्षेत्रों पर आधारित हैं।
हाल ही में राजस्थान के वन अधिकारी श्री गोविन्द सागर भरद्वाज एवं साथियों द्वारा अलवर जिले में स्थित “सरिस्का बाघ परियोजना” में भामर “Apis dorsata” के छत्तों के स्वरूप एवं वितरण पर एक अध्ययन किया है, जो की “Indian Forester” में प्रकाशित हुआ है, इसमें भामर द्वारा पसंदीदा पौधे व वृक्ष प्रजातियों की पहचान और विखंडित एवं घने वन क्षेत्रों में बामर के छत्तों की बहुतायत की तुलना भी की गई (Bhardwaj et al 2020)।
भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है जो विविध पारिस्थितिक तंत्रों से युक्त है जिनमें विभिन्न प्रकार की वनस्पति प्रजातियां पायी जाती हैं तथा विभिन्न मधुमक्खी प्रजातियों के लिए अनुकूल निवास स्थान प्रदान करती है। इन सभी प्रजातियों के बीच, भामर मूल रूप से एक जंगली मधुमक्खी प्रजाति हैं क्योंकि यह वन क्षेत्रों में अपना छत्ता बनाती हैं। यह एपिस जीनस में सबसे बड़ी मधुमक्खियों में से एक है जिसकी कुल लंबाई 17 से 20 मिमी तक होती है। यह बड़े एवं घने पेड़ों की शाखाओं, चट्टानों और पानी के टैंकों जैसी मानव निर्मित संरचनाओं पर बड़े आकार के छत्तों का निर्माण करते हैं।
भामर, दक्षिण और दक्षिणी-पूर्वी एशिया के अधिकांश हिस्सों में पायी जाती है। एशिया में उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों और कृषि क्षेत्रों में एक जंगली परागणकर्ता और शहद उत्पादक के रूप में इसकी भूमिका व्यापक रूप से सराहनीय मानी जाती है। यह एक संगठित रक्षा प्रतिक्रिया या हमला करने के लिए जानी जाती है तथा इसकी एक कॉलोनी हर साल लगभग 100-200 किमी दूरी तक प्रवास करती है, और इनका प्रवास सूखे और बरसात के मौसम पर निर्भर करता है। इनकी प्रत्येक कॉलोनी में आमतौर पर एक रानी, कई नर और हज़ारों कार्यकर्ता मधुमक्खियां होती हैं। यह अपने छत्तों का निर्माण एकल या फिर कई बार एक ही बड़े पेड़ पर 10- 25 छत्तों तक निर्माण करते हैं तथा छत्ते जमीन से लगभग 6 मीटर तक की ऊंचाई तक होते है।
इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने अगस्त 2018 में भामर कॉलोनियों के लिए सरिस्का बाघ परियोजना क्षेत्र का सर्वेक्षण किया। हर क्षेत्र सम्बंधित चौकी के फ्रंटलाइन स्टाफ (बीट ऑफिसर) के अनुभव के आधार पर भामर कॉलोनियों को खोजा गया तथा उनकी गणना की गई। जिन पेड़ों पर भामर कॉलोनियां पायी गई उन सभी की परिधि का माप दर्ज किया गया, नामों की सूचि बनायी गई, कॉलोनियों की तस्वीर ली गई तथा जीपीएस लिया गया। कॉलोनी के आवास सम्बंधित अन्य सूचनाएं भी दर्ज की गई।
अध्ययन के लेखकों ने सम्पूर्ण सरिस्का क्षेत्र का सर्वेक्षण कर कुल 242 भामर कॉलोनियां पाई जिनमें से 161 कॉलोनियां पेड़ों पर, 78 चट्टानों, 2 झाड़ियों और 3 मानव निर्मित इमारतों पर बानी हुई थी। दर्ज की गई सभी सूचनाओं की समीक्षा से ज्ञात हुआ की सबसे अधिक 102 कॉलोनियां बरगद कुल के पेड़ों पर बनाई जाती हैं तथा इनमें से 80.12% कॉलोनियां 100 सेमी से अधिक परिधि वाले पेड़ों पर देखी गई। बरगद कुल के पेड़ों पर अधिक कॉलोनियां बनाने का कारण इन पेड़ों का बड़ा आकार हो सकता है। परन्तु यदि पेड़ का बड़ा आकार और उसके तने की परिधि ही मायने रखती है तो ढाक (Butea monosperma) के पेड़ की औसतन परिधि सालार (Boswellia serrata) के पेड़ से ज्यादा होती है। अब क्योंकि ढाक सरिस्का क्षेत्र में बहुतायत में मौजूद है, परिणामस्वरूप ढाक के प्रत्येक पेड़ पर छत्ता मिलना चाइये था, परन्तु सालार पेड़ पर अधिक कुल 14 छत्ते पाए गए और ढाक पर सिर्फ 3 छत्ते ही देखे गए। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि ढाक का पेड़ ग्रामीणों द्वारा मवेशियों को खिलाये की वजह से लगातार कांटा जाता है तथा भामर के लिए यह शांतिपूर्वक स्थान नहीं है।
इनके अलावा 34 कॉलोनियां चट्टानों पर भी देखी गई। अध्ययन के दौरान एक बरगद का पेड़ ऐसा भी देखा गया जिसकी परिधि 425 सेंटीमीटर की थी और उसपर 15 भामर कॉलोनियां बानी हुई थी। घने वन क्षेत्र में प्रति वर्ग किलोमीटर में 0.25 कॉलोनियां और विखंडित वन क्षेत्र में 0.15 कॉलोनियां दर्ज की गई।
भामर के 80% छत्तों का एक मीटर से अधिक परिधि वाले पेड़ों पर पाया जाना, वनों में बड़े पेड़ों की भूमिका व महत्वता को दर्शाता है और ये केवल तभी संभव है जब ऐसे परिदृश्यों को संरक्षण दिया जाता है।
मधुमक्खी कॉलोनियों की स्थिति का आकलन करने के लिए अतीत में बहुत कम अध्ययन किए गए हैं, और ऐसे में वर्तमान अध्ययन से निकली किसी भी जानकारी की तुलना व टिप्पणी करने की गुंजाइश बहुत कम है। हालांकि इस डेटा को आधार मान कर मानवजनित हस्तक्षेप और जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली चुनौतियों के संबंध में मधुमक्खियों पर गहन अध्ययन एवं उनकी स्थिति की निगरानी की जा सकती है। जैसे बाघ परियोजना क्षेत्र के लिए बाघ को संकेतक माना जाता है वैसे ही मधुमक्खियों के छत्तों की स्थिति को वन पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य का सूचक माना जा सकता है।
सन्दर्भ:
- Bhardwaj, G.S., Selvi, G., Agasti, S., Singh, H., Kumar, A. and Reddy, G.V. 2020. A survey on demonstrating pattern of Apis dorsata colonization in Sariska Tiger Reserve, Rajasthan. Indian Forester, 146 (8) : 682-587, 2020 DOI: 10.36808/if/2020/v146i8/154146