छद्मावरण के लिए प्रसिद्ध गिरगिट की भांति क्या प्रेइंग मैंटिस भी अपना रंग बदलता है?
प्रेइंग मैंटिस एक अत्यंत माहिर शिकारी है जो एक स्थान पर लम्बे समय तक बिना हिले डुले एक तपस्वी की भांति बैठ अपने शिकार का इंतजार करता है। यह अक्सर फूलों एवं पत्तों में छिप कर रहता है।
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चूँकि आप जानते हैं फूलों में कीटो का आगमन अधिक होता है, अतः शिकार करना आसान भी होता है परन्तु किस रंग का फूल प्रेइंग मैंटिस के भविष्य में होगा अक्सर यह निर्धारित नहीं होता है। अतः कुछ प्रेइंग मैंटिस की प्रजातियों में देखा गया है कि, यह पृष्ठभूमि के अनुरूप अपना रंग बदल सकते है हालांकि यह बदलाव आंशिक होता है।
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वैज्ञानिक सम्भावना व्यक्त करते हैं कि, प्रकाश , नमी एवं तापमान यह तय करता कि, प्रेइंग मैंटिस का रंग क्या होगा। इन तीन छाया चित्रों में आप स्पष्ट देख सकते कि, किस प्रकार एक ही प्रेइंग मैंटिस की प्रजाति हरा, सफ़ेद एवं पीला रंग को दर्शा रही हैं।
वन्यजीवों की दुनिया में अक्सर आपने लीयूसिस्टिक (Leucistic), एल्बिनो (Albino) और मिलेनेस्टीक (Melanistic) जीव देखे होंगे, जिनका रंग अपनी प्रजाति के बाकि सदस्यों की तरह न होकर बल्कि बिलकुल सफ़ेद यानि रंगहीन या फिर कई बार अधिक काला होता है। सफ़ेद रंग वाले जीवों को लीयूसिस्टिक और एल्बिनो तथा काले रंग वाले जीवों को मिलेनेस्टीक कहते हैं।
परन्तु क्या आपने कभी इरिथ्रिस्टिक (erythristic) जीव देखे हैं ?
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इरिथ्रिस्टिक जीव उनको कहते हैं जो अपनी प्रजाति के बाकि सदस्यों से अलग एक असामान्य लाल रंग के होते हैं और इस प्रभाव को एरिथ्रिज्म (Erythrism) कहते हैं।
एरिथ्रिज्म के मुख्य कारण हैं जेनेटिक म्युटेशन, जो सामान्य रंग को कम या फिर बाकि रंगों को बढ़ा देता है।
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इरिथ्रिस्टिक जीव का एक उदाहरण आप इस चित्रकथा में दी गई तस्वीरों में देख सकते हैं। आम तौर पर हाउस स्पैरो में मादा और युवा पक्षी हल्के भूरे-ग्रे रंग के होते हैं, और नर में काले, सफेद और भूरे रंग के होते हैं, लेकिन इरिथ्रिस्टिक स्पैरो में असामान्य नारंगी-लाल के पंख दीखते हैं। इरिथ्रिस्टिक स्पैरो की यह तस्वीर उदयपुर के बेदला गाँव के पास ली गई है।
ऐसे ही बोत्सवाना (अफ्रीका) में एक इरिथ्रिस्टिक तेंदुआ भी देखा गया है जिसे स्ट्रॉबेरी लेपर्ड (Strawberry leopard) के नाम से जाना जाता है क्योंकि उसका रंग अन्य तेंदुओं से अधिक नारंगी-लाल है।
गहरे हरे रंग के पन्ने की मानिंद चमकीले यह ततैये बड़े झींगुरों (Cricket) को अपने विशेष विष से ज़ोंबी (Zombie) के समान बनाकर अपने गुफा नुमा घर में ले जाते हैं। जहाँ झींगुरो का शरीर कई दिनों तक जिन्दा रहता हैं एवं यह ततैये के लार्वे के लिए ताजा भोजन का स्त्रोत बनता हैं।
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असल में जब यह इन झिंगरो का संग्रहण करता हैं, तब तक ततैये के लार्वे तो छोड़िये, अंडे भी उसने नहीं दिए होते हैं। यह इन झींगुरों के शरीर पर ही अंडे डाल देता हैं, और जब कुछ समय बाद यह अंडो में से लार्वे निकलते हैं, उन्हें झींगुर के रूप में तैयार भोजन मिलता हैं।
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यह ततैये JEWEL WASP (Ampulex sp) कहलाते हैं। इन ततैयों का विष इस प्रकार काम करता हैं कि, झींगुर का तंत्रिका तंत्र पूरी तरह ततैये के प्लान का हिस्सा बन जाता हैं।
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आप इसके विष के असर की सूक्ष्मता को ऐसे समझ सकते हैं कि, झींगुर के मस्तिष्क को विषदंश होने के पश्च्यात वह स्वयं के शरीर को अपने आगे के पैरों से साफ करने लगता है। यह सफाई उसे फफूदी एवं अन्य हानिकारक बीमारियों से रहित बना देती हैं जो ततैये के लार्वा के भविष्य लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। साफ सुथरा जिन्दा भोजन अब ततैये द्वारा एक नए खोजे हुए घर में लेजा कर अंडा देकर रख दिया जाता है।
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ततैये द्वारा झींगुर को कई बार अलग-अलग दंश दिये जाता हैं एवं प्रत्येक बार विभिन्न प्रकार के रसायन छोड़े जाते हैं जो झींगुर पर अलग-अलग तरह से असर करते हैं।
एक जीवन दूसरे जीवन पर किस प्रकार निर्भर रहता हैं, यह हमें भले ही साधारण लगे परन्तु यह वास्तव में एक अत्यंत कलिष्ट प्रक्रिया का हिस्सा होता है।
गुनगुनाते यह कीट भारत के प्रेम गीतों में अक्सर याद किये जाते हैं, इनका फूलों के आसपास मंडराना इन्हें सौन्दर्य काव्य के एक किरदार के रूप में दर्शाता है।
अक्सर हम इन भंवरों को ततैयों के नजदीक का सदस्य समझते हैं परन्तु यह मधुमखियों के अधिक नजदीक हैं। कहते हैं ततैया अपने पैरों को लटकाये हुए उड़ते हैं और मधुमखी उन्हें शरीर के साथ जोड़े हुए उड़ती हैं। साथ ही मधुमखियां एक ही बार डंक मार सकती हैं जबकि ततैया अनेक बार डंक मर सकता हैं। खैर मधुमखी जहाँ एक समूह में रहती हैं और यह समूह समाज विन्यास के उच्चतम स्तर पर अपने जीवन को संयोजित करता हैं वहीँ भंवरों की अधिकांश प्रजातियां एकल जीवन जीते हैं एवं लकड़ी में छेद करके अपने लिए घर बनाते हैं।
इनके लकड़ी में घर बनाने के कारण ही इन्हें “कारपेंटर बी (Carpenter bee)” कहते हैं।
काले रंग के यह तेजी से उड़ने वाले भँवरे कोमल फूलों पर धुप आने पर स्थिरता के साथ उड़ते हैं एवं उड़ते-उड़ते ही उनका रस चूस लेते हैं, जबकि कम धुप में इनके पंख इतनी तेज नहीं हिलते हैं अतः वह अधिक विशाल एवं मजबूत डंठल वाले फूलों पर बैठ कर रस चूसते हैं। धुप से उन्हें तेजी से पंख फड़फड़ाने की ताकत मिलती हैं और इनका गहरा काला शरीर धुप की गर्मी को आसानी से गृहण करता हैं।
लकड़ी में बनाये गये छिद्रों में यह फूलों से एकत्रित परागकण (Pollen grains) के गोल-गोल पिंड या लड्डू बनाते हैं एवं इनपर मादा भँवरे अंडे देते हैं। कीट जगत में इनके अंडो का आकार शरीर की तुलना में सबसे बड़ा होता है। नर भंवरो की आंखे मादा की तुलना में अधिक बड़ी होती हैं ,
यह अनेको पौधों के लिए परागण (Pollination) की प्रक्रिया में सहायक हैं एवं इनकी उपस्थिति प्राकृतिक आवासों को जीवंत बनाती हैं।
किस प्रकार प्रेइंग मैंटिस के निम्फ अपने आपको चींटो से सुरक्षित रखते हैं?
प्रेइंग मैंटिस एक शिकारी कीट है जो बड़ी बेदर्दी से अपने शिकार को आगे के दोनों पैरो में जकड़ कर कुछ समय में खा जाता हैं। परन्तु क्या आप जानते हैं जब वह छोटा होता हैं तो उसके यही शिकार उस के लिए शिकारी का काम करते हैं। यानी जिनको वह वयस्क होने पर आसानी से पकड़ कर अपना भोजन बनालेता हैं वही उसके लिए आफत होते हैं।
प्रेइंग मैंटिस की एक प्रजाति “ओडोन्टोमांटिस प्लानिसेप्स (Odontomantis planiceps)” एक अत्यंत आसानी से मिलने वाला कीट है जो अक्सर हमारे घरों के बगीचे में मिल जाता है। यह तीन मुख्य अवस्थाओं से गुजर कर अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं – अंडे, निम्फ एवं वयस्क कीट के रूप में। अंडा जहाँ एक फोम जैसे पदार्थ से बनी विशेष संरचना जिसे उथिका कहते हैं में सुरक्षित रहते हैं एवं अनुकूल मौसम में इस से निम्फ के रूप में बाहर निकलते हैं। यह इस कीट के लिए अत्यंत मुश्किल दौर होता हैं। इन्हें चींटिया एवं बड़े छींटे अपना शिकार बना सकते हैं।
निम्फ अवस्था में प्रेइंग मैंटिस कई दौर से गुजरता हैं जिन्हें अलग अलग इनस्टार के रूप में जाना जाता हैं। इन्हें 6 इनस्टार में बांटा जा सकता है। शुरुआती दौर के तीन इनस्टार के समय यह अत्यंत कमज़ोर एवं छोटे होते हैं एवं चींटे इनको मार सकते हैं, इस समय यह एक अनोखे अवतार में रहते हैं एवं इस दौर में यह खुद भी चींटों के समान ही लगते हैं। इन हरे रंग के प्रेइंग मैंटिस का सारा शरीर चींटो के समान ही काले रंग का होता हैं, यह चलते भी उन्ही की तरह हैं। यह छ्द्म आवरण उन्हें चींटो के मध्य रहने हुए अपने आपको बचाने में सहयोग करता है।
चौथे इनस्टार के बाद इनके आगे के पैर हरे होने शुरू होते हैं एवं धीरे धीरे यह पुरे हरे होजाते हैं एवं आपने आपको हरे पत्तो में छुपाने लायक एक माहिर शिकारी बना लेते हैं।
इस तरह चींटो की मिमक्री करने वाले यह प्रेइंग मैंटिस अपने शुरुआती दौर में एक अलग अवतार में रहते हैं एवं इन्हे देखना अत्यंत रोचक होता हैं।
एक गीदड़ माँ, अपनी मांद से कुछ दूर ऊंचाई पर बैठ कर आसपास का नज़ारा देख रही थी और उसके पिल्ले नीचे मांद के पास खेल रहे थे। संभवतः माँ ऊपर बैठ कर आसपास किसी शिकार और अन्य गतिविधियों का जायज़ा ले रही थी। तभी, उसका एक पिल्ला वहां ऊपर जा पहुंचा।
उसके हाव भाव से लग रहा था कि जैसे, वह अपनी माँ से कुछ दूध या दुलार पाने के आशा में वहां आया था।
लेकिन माँ को पास में ही कुछ मानवीय गतिविधियां नज़र आ रही थी और उसने तुरंत अपने पिल्ले को मानों “इशारा” कर मांद में बाकी बच्चों के पास जाने का संकेत दिया। पिल्ला लौटते हुए बीच में रुका और वापिस लौट कर माँ के पास आ गया।
संकेत देने के बाद भी पिल्ला वापिस नहीं लौटा यह देख माँ को तेज़ गुस्सा आया और उसने पिल्ले को ज़ोर से डराया।
माँ का गुस्सा देख पिल्ला समझ चुका था कि, उसे तुरंत वहां से लौट जाना चाइये और वह तुरंत मांद में लौट गया।
यह पूरी घटना कुछ ऐसी लगती है जैसे माँ अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए न सिर्फ आसपास होने वाली गतिविधियों का ध्यान रखती है बल्कि अपनी अनुमति के बिना पिल्लों को कहीं भी आने-जाने नहीं देती है मुख्यरूप से मनुष्यों के सामने।