कठफोड़वा, उसका शिकार और शत्रु से संघर्ष

कठफोड़वा, उसका शिकार और शत्रु से संघर्ष

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान में स्थित एक प्रसिद्ध पक्षी अभयारण्य है। यहाँ विभिन्न प्रकार के पक्षी तथा उनके बीच कई रोचक व्यवहार देखने को मिलते हैं और ऐसा ही एक दृश्य इस चित्र कथा में दिखाया गया है। एक कठफोड़वे (Lesser golden-backed woodpecker (Dinopium benghalense)) ने एक छिपकली का शिकार किया और उसे खाने के लिए पास ही एक पेड़ पर बैठ गया।

तभी बगल के पेड़ पर बैठे एक श्वेतकंठ (White Breasted Kingfisher (Halcyon smyrnensis) ने कठफोड़वे को देख लिया।

आसानी से भोजन मिलने के इस अवसर को श्वेतकंठ ऐसे ही नहीं जाने दे सकता था तथा उसने तुरंत कठफोड़वे पर हमला कर दिया।

उसने लगातार अपनी चोंच से कठफोड़वे पर हमला किया और उसका शिकार छीनने की कोशिश करने लगा वहीँ दूसरी ओर कठफोड़वा अपने भोजन को बचाने लगा।

कुछ पलों के संघर्ष के बाद कठफोड़वा अपना भोजन बचाने में सफल रहा और श्वेतकंठ को खाली हाथ लौटना पड़ा।

बाघों के जीवन के कुछ अनछुए पहलु

बाघों के जीवन के कुछ अनछुए पहलु

बाघों के मध्य होने वाले संघर्ष के बारे में तो सभी जानते हैं परन्तु कई बार कुछ तनाव की स्थिति में संघर्ष को टालते हुए देखा गया हैं जैसे कि, इस चित्र कथा में दर्शाया गया है।

एक शाम रणथम्भोर में एक बाघिन माँ (T19) ने अपने दो शावकों के साथ सांभर हिरन का शिकार किया और एक जल श्रोत के पास बैठ कर उसे खाया और फिर पानी पीकर वहीँ बैठ आराम करने लग गए। कुछ समय बाद वहाँ एक अन्य नर बाघ (T104) आया जिसे पानी पीना था।

काफी समय तक खड़े रहने के बाद नर बाघ वहीँ पास में लेट गया परन्तु बाघिन और उसके शावक, नर बाघ और अपने भोजन पर सतर्क नज़र रहे वहीँ बैठे रहे व पानी से बाहर नहीं निकले।

प्यास से व्याकुल बाघ कई बार कोशिश करता रहा पानी में जाने की परन्तु बाघिन और शावकों ने उसे डरा कर दूर कर दिया।

यह संघर्ष पूरी रात चला और प्यास से परेशान बाघ समझ चूका था कि, यहाँ उसे पानी नहीं मिलेगा इसीलिए अंत में वो वहां से चला गया और लगभग दो किमी दूर एक अन्य जल श्रोत पर जाकर उसने अपनी प्यास बुझाई।

फॉल्कन में क्षेत्रीय संघर्ष

फॉल्कन में क्षेत्रीय संघर्ष

स्तनधारी जीवों की तरह पक्षी भी अपनी क्षेत्र सीमा (Territory) बनाते हैं और यदि किसी अन्य पक्षी द्वारा क्षेत्र में दखल दिया जाए तो इनमें भी संघर्ष होता है। ऐसे ही संघर्ष की एक घटना इस चित्र कथा में दिखाई गई है। जिसमें एक तरफ है “पेरीग्रीन फॉल्कन” जो न सिर्फ भारत बल्कि पुरे विश्व का सबसे तेज गति से उड़ने वाला पक्षी है वहीँ दूसरी ओर है एक दुर्लभ पक्षी ‘साकेर फॉल्कन” जो भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाला सबसे बड़ा फॉल्कन है।

साम्भर झील के किनारे एक पेरीग्रीन फॉल्कन अपने क्षेत्र में बैठा होता है, कुछ पल बाद उसे पास में एक साकेर फॉल्कन दिखाई देता और पेरीग्रीन फॉल्कन तुरंत उसकी तरफ बढ़ता है।

खतरे से अनजान साकेर फॉल्कन पहले तो खुद को बचाने की कोशिश करता है और फिर पेरीग्रीन फॉल्कन द्वारा लगातार हमला किये जाने पर दोनों में एक संघर्ष शुरू हो जाता है।

लगभग पांच मिनट तक संघर्ष करने के बाद पेरीग्रीन फॉल्कन साकेर फॉल्कन को ज़मीन पर गिरा देता है और साकेर फॉल्कन हार मान कर वहां से उड़कर दूर चला जाता है।

इस प्रकार के संघर्ष अधिकतर प्रजनन काल में देखे जाते है ताकि एक सुरक्षित स्थान और भरपूर मात्रा में भोजन की व्यवस्था को बनाये रखा जा सके।
बुलफ्रॉग का जीवन और मृत्यु का संघर्ष

बुलफ्रॉग का जीवन और मृत्यु का संघर्ष

यह चित्र कथा है “धामन (Rat Snake Ptyas mucosa)” और “बुलफ्रॉग (Rana tigerina)” के एक दुर्लभ जीवन-और-मृत्यु संघर्ष की।

एक धामन सांप ने एक बुलफ्रॉग को पकड़ लिया था परन्तु जैसे ही सांप ने मेंढक को निगलने की कोशिश की, मेंढक ने अपने शरीर को फुला लिया ताकि खुद को सांप के मुँह में जाने से रोक सके।

धामन सांप के दांत तेज तो होते हैं परन्तु इतने लम्बे नहीं जो एक बड़े बुलफ्रॉग के शरीर से आरपार हो पाए। अतः सांप उसे निगलने की कोशिश में लगा रहा। लगभग 10 मिनट तक यह संघर्ष चला और मेंढक के शरीर से कुछ जगहों से खून निकलने लगा।

लग रहा था की अब मेंढक जीवित नहीं बचने वाला है, तभी अचानक मेंढक, सांप की पकड़ से छूट कर पानी में गायब हो गया।

अक्सर मेंढक साँपों की पकड़ से बचने के लिए अपने आगे के पैरों की मदद से बाहर की तरफ धक्का लगाते हैं और बच निकलते हैं। धामन जैसे बड़े आकार के आक्रामक शिकारी की पकड़ से बच निकलना काफी हैरान करने वाला था। निःसंदेह, मेंढक की जीवित रहने की इच्छा धामन की भूख से मजबूत रही होगी।

ऊदबिलाव और कुत्तों के बीच संघर्ष

ऊदबिलाव और कुत्तों के बीच संघर्ष

स्मूद कोटेड ओटर (Lutrogale perspicillata), एशिया में पाए जाने वाला सबसे बड़ा ऊदबिलाव जो नदी के स्वच्छ जल में निवास करते हैं। परन्तु आजकल वन क्षेत्रों के आसपास बढ़ती मानव आबादी के कारण आवारा कुत्तों की संख्या और इनके द्वारा न सिर्फ वन्यजीवों बल्कि जलीय स्तनधारियों पर भी हमले की घटनाएं भी बढ़ रही है क्योंकि उनका काफी समय किनारों पर धुप सेकते और खेलते हुए बीतता है तथा इनकी मांदे/गुफ़ा भी नदी के किनारे चट्टानों के पास ही होती है जहाँ ये बच्चे देते हैं। इसी बीच कई बार इन्हें कुत्तों के साथ मुठभेड़ का सामना करना पड़ता है ऐसी ही एक संघर्ष की घटना इस चित्र कथा में दर्शाई गई है।

चम्बल नदी में कुछ ऊदबिलाव नदी में मछलियों का शिकार कर उन्हें खा रहे थे। वहीँ दूसरी ओर किनारे पर दो कुत्ते आपस में खेल व भोंक रहे थे। कुत्तों की आवाज सुन कर ऊदबिलाव किनारे की तरफ जाने लगे।

जैसे ही वे किनारे पर पहुंचे उन कुत्तों ने ऊदबिलावों के ऊपर भोंकना व हमला करने की कोशिश शुरू कर दी। परन्तु ऊदबिलाव समझ रहे थे कि, कुत्ते पानी में नहीं आ सकते इसीलिए वे आसपास फ़ैल गए और कुत्ते इधर-उधर भाग कर परेशान होने लगे।

ऊदबिलावों और कुत्तों के बीच यह संघर्ष कुछ 10-15 मिनट तक चला और फिर वे वापिस नदी में चले गए।

कुत्तों के साथ भिड़ने से ऊदबिलाव घायल भी हो सकते है परन्तु फिर भी उनके पास जाना और ऐसा व्यवहार काफी दिलचस्प घटना है।

इंडियन कोर्सर और उसके चूज़ों का व्यवहार

इंडियन कोर्सर और उसके चूज़ों का व्यवहार

इंडियन कोर्सर (Cursorius coromandelicus), एक जमीन पर रहने वाला पक्षी है तथा यह मिट्टी उथल कर सीधा जमीन पर ही अपना घोंसला बनाता है।

आसपास किसी की मौजूदगी महसूस होने पर यह झूठे घोंसले का नाटक करता है यानी जहाँ घोंसला होता ही नहीं है वहां ज़मीन पर बैठ जाता है ताकि देखने वाले का ध्यान इसकी तरफ रहे और असली घोंसला सुरक्षित बचा रहे।

शरुआती समय में माता-पिता ही चूजों को छोटे कीट उपलब्ध करवाते हैं जिनको वे खुले मैदानों में कभी आहिस्ता चलकर तो कभी दौड़-दौड़ कर पकड़ते हैं

माँ और चूजों में एक अनोखा ही जुड़ाव और संपर्क होता है जिसमें माँ जब दूर कहीं कोई कीट पकड़ती है तो चूजों को मालूम पड़ जाता है और वे दूर घोंसले में शोर मचाना शुरू कर देते हैं। और तब तक चुप नहीं होते जब तक माँ उस कीट को लेकर आ नहीं जाती। वैज्ञानिक भाषा में चूज़ों द्वारा खाने के लिया शोर मचाने के इस व्यवहार को बैग्गिंग (Bagging) कहा जाता है।