चींटो के अवतार में “प्रेइंग मैंटिस”

चींटो के अवतार में “प्रेइंग मैंटिस”

किस प्रकार प्रेइंग मैंटिस के निम्फ अपने आपको चींटो से सुरक्षित रखते हैं?

प्रेइंग मैंटिस एक शिकारी कीट है जो बड़ी बेदर्दी से अपने शिकार को आगे के दोनों पैरो में जकड़ कर कुछ समय में खा जाता हैं। परन्तु क्या आप जानते हैं जब वह छोटा होता हैं तो उसके यही शिकार उस के लिए शिकारी का काम करते हैं।  यानी जिनको वह वयस्क होने पर आसानी से पकड़ कर अपना भोजन बनालेता हैं वही उसके लिए आफत होते हैं।

प्रेइंग मैंटिस की एक प्रजाति “ओडोन्टोमांटिस प्लानिसेप्स (Odontomantis planiceps)” एक अत्यंत आसानी से मिलने वाला कीट है जो अक्सर हमारे घरों के बगीचे में मिल जाता है। यह तीन मुख्य अवस्थाओं से गुजर कर अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं – अंडे, निम्फ एवं वयस्क कीट के रूप में। अंडा जहाँ एक फोम जैसे पदार्थ से बनी विशेष संरचना जिसे उथिका कहते हैं में सुरक्षित रहते हैं एवं अनुकूल मौसम में इस से निम्फ के रूप में बाहर निकलते  हैं। यह इस कीट के लिए अत्यंत मुश्किल दौर होता हैं। इन्हें चींटिया एवं बड़े छींटे अपना शिकार बना सकते हैं।

निम्फ अवस्था में प्रेइंग मैंटिस कई दौर से गुजरता हैं जिन्हें अलग अलग इनस्टार के रूप में जाना जाता हैं। इन्हें 6  इनस्टार में बांटा जा सकता है।  शुरुआती  दौर के तीन इनस्टार के समय यह अत्यंत कमज़ोर एवं छोटे होते हैं एवं चींटे इनको मार सकते हैं, इस समय यह एक अनोखे अवतार में रहते हैं एवं इस दौर में यह खुद भी चींटों के समान ही लगते हैं। इन हरे रंग के प्रेइंग मैंटिस का सारा शरीर चींटो के समान  ही काले रंग का होता हैं, यह चलते भी उन्ही की तरह हैं। यह छ्द्म आवरण उन्हें चींटो के मध्य रहने हुए अपने आपको बचाने में सहयोग करता है।

चौथे इनस्टार के बाद इनके आगे के पैर हरे होने शुरू होते हैं एवं धीरे धीरे यह पुरे हरे होजाते हैं एवं आपने आपको हरे पत्तो में छुपाने लायक एक माहिर शिकारी बना लेते हैं।

इस तरह चींटो की मिमक्री करने वाले यह प्रेइंग मैंटिस अपने शुरुआती  दौर में एक अलग अवतार में रहते हैं एवं  इन्हे देखना अत्यंत रोचक होता हैं।

नन्हें गीदड़ को माँ की डांट डपट

नन्हें गीदड़ को माँ की डांट डपट

एक गीदड़ माँ, अपनी मांद से कुछ दूर ऊंचाई पर बैठ कर आसपास का नज़ारा देख रही थी और उसके पिल्ले नीचे मांद के पास खेल रहे थे। संभवतः माँ ऊपर बैठ कर आसपास किसी शिकार और अन्य गतिविधियों का जायज़ा ले रही थी। तभी, उसका एक पिल्ला वहां ऊपर जा पहुंचा।

उसके हाव भाव से लग रहा था कि जैसे, वह अपनी माँ से कुछ दूध या दुलार पाने के आशा में वहां आया था।

लेकिन माँ को पास में ही कुछ मानवीय गतिविधियां नज़र आ रही थी और उसने तुरंत अपने पिल्ले को मानों “इशारा” कर मांद में बाकी बच्चों के पास जाने का संकेत दिया। पिल्ला लौटते हुए बीच में रुका और वापिस लौट कर माँ के पास आ गया।

संकेत देने के बाद भी पिल्ला वापिस नहीं लौटा यह देख माँ को तेज़ गुस्सा आया और उसने पिल्ले को ज़ोर से डराया।

माँ का गुस्सा देख पिल्ला समझ चुका था  कि, उसे तुरंत वहां से लौट जाना चाइये और वह तुरंत मांद में लौट गया।

यह पूरी घटना कुछ ऐसी लगती है जैसे माँ अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए न सिर्फ आसपास होने वाली गतिविधियों का ध्यान रखती है बल्कि अपनी अनुमति के  बिना पिल्लों को कहीं भी आने-जाने नहीं देती है मुख्यरूप से मनुष्यों के सामने।

कठफोड़वा, उसका शिकार और शत्रु से संघर्ष

कठफोड़वा, उसका शिकार और शत्रु से संघर्ष

केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान में स्थित एक प्रसिद्ध पक्षी अभयारण्य है। यहाँ विभिन्न प्रकार के पक्षी तथा उनके बीच कई रोचक व्यवहार देखने को मिलते हैं और ऐसा ही एक दृश्य इस चित्र कथा में दिखाया गया है। एक कठफोड़वे (Lesser golden-backed woodpecker (Dinopium benghalense)) ने एक छिपकली का शिकार किया और उसे खाने के लिए पास ही एक पेड़ पर बैठ गया।

तभी बगल के पेड़ पर बैठे एक श्वेतकंठ (White Breasted Kingfisher (Halcyon smyrnensis) ने कठफोड़वे को देख लिया।

आसानी से भोजन मिलने के इस अवसर को श्वेतकंठ ऐसे ही नहीं जाने दे सकता था तथा उसने तुरंत कठफोड़वे पर हमला कर दिया।

उसने लगातार अपनी चोंच से कठफोड़वे पर हमला किया और उसका शिकार छीनने की कोशिश करने लगा वहीँ दूसरी ओर कठफोड़वा अपने भोजन को बचाने लगा।

कुछ पलों के संघर्ष के बाद कठफोड़वा अपना भोजन बचाने में सफल रहा और श्वेतकंठ को खाली हाथ लौटना पड़ा।

बाघों के जीवन के कुछ अनछुए पहलु

बाघों के जीवन के कुछ अनछुए पहलु

बाघों के मध्य होने वाले संघर्ष के बारे में तो सभी जानते हैं परन्तु कई बार कुछ तनाव की स्थिति में संघर्ष को टालते हुए देखा गया हैं जैसे कि, इस चित्र कथा में दर्शाया गया है।

एक शाम रणथम्भोर में एक बाघिन माँ (T19) ने अपने दो शावकों के साथ सांभर हिरन का शिकार किया और एक जल श्रोत के पास बैठ कर उसे खाया और फिर पानी पीकर वहीँ बैठ आराम करने लग गए। कुछ समय बाद वहाँ एक अन्य नर बाघ (T104) आया जिसे पानी पीना था।

काफी समय तक खड़े रहने के बाद नर बाघ वहीँ पास में लेट गया परन्तु बाघिन और उसके शावक, नर बाघ और अपने भोजन पर सतर्क नज़र रहे वहीँ बैठे रहे व पानी से बाहर नहीं निकले।

प्यास से व्याकुल बाघ कई बार कोशिश करता रहा पानी में जाने की परन्तु बाघिन और शावकों ने उसे डरा कर दूर कर दिया।

यह संघर्ष पूरी रात चला और प्यास से परेशान बाघ समझ चूका था कि, यहाँ उसे पानी नहीं मिलेगा इसीलिए अंत में वो वहां से चला गया और लगभग दो किमी दूर एक अन्य जल श्रोत पर जाकर उसने अपनी प्यास बुझाई।

फॉल्कन में क्षेत्रीय संघर्ष

फॉल्कन में क्षेत्रीय संघर्ष

स्तनधारी जीवों की तरह पक्षी भी अपनी क्षेत्र सीमा (Territory) बनाते हैं और यदि किसी अन्य पक्षी द्वारा क्षेत्र में दखल दिया जाए तो इनमें भी संघर्ष होता है। ऐसे ही संघर्ष की एक घटना इस चित्र कथा में दिखाई गई है। जिसमें एक तरफ है “पेरीग्रीन फॉल्कन” जो न सिर्फ भारत बल्कि पुरे विश्व का सबसे तेज गति से उड़ने वाला पक्षी है वहीँ दूसरी ओर है एक दुर्लभ पक्षी ‘साकेर फॉल्कन” जो भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाला सबसे बड़ा फॉल्कन है।

साम्भर झील के किनारे एक पेरीग्रीन फॉल्कन अपने क्षेत्र में बैठा होता है, कुछ पल बाद उसे पास में एक साकेर फॉल्कन दिखाई देता और पेरीग्रीन फॉल्कन तुरंत उसकी तरफ बढ़ता है।

खतरे से अनजान साकेर फॉल्कन पहले तो खुद को बचाने की कोशिश करता है और फिर पेरीग्रीन फॉल्कन द्वारा लगातार हमला किये जाने पर दोनों में एक संघर्ष शुरू हो जाता है।

लगभग पांच मिनट तक संघर्ष करने के बाद पेरीग्रीन फॉल्कन साकेर फॉल्कन को ज़मीन पर गिरा देता है और साकेर फॉल्कन हार मान कर वहां से उड़कर दूर चला जाता है।

इस प्रकार के संघर्ष अधिकतर प्रजनन काल में देखे जाते है ताकि एक सुरक्षित स्थान और भरपूर मात्रा में भोजन की व्यवस्था को बनाये रखा जा सके।
बुलफ्रॉग का जीवन और मृत्यु का संघर्ष

बुलफ्रॉग का जीवन और मृत्यु का संघर्ष

यह चित्र कथा है “धामन (Rat Snake Ptyas mucosa)” और “बुलफ्रॉग (Rana tigerina)” के एक दुर्लभ जीवन-और-मृत्यु संघर्ष की।

एक धामन सांप ने एक बुलफ्रॉग को पकड़ लिया था परन्तु जैसे ही सांप ने मेंढक को निगलने की कोशिश की, मेंढक ने अपने शरीर को फुला लिया ताकि खुद को सांप के मुँह में जाने से रोक सके।

धामन सांप के दांत तेज तो होते हैं परन्तु इतने लम्बे नहीं जो एक बड़े बुलफ्रॉग के शरीर से आरपार हो पाए। अतः सांप उसे निगलने की कोशिश में लगा रहा। लगभग 10 मिनट तक यह संघर्ष चला और मेंढक के शरीर से कुछ जगहों से खून निकलने लगा।

लग रहा था की अब मेंढक जीवित नहीं बचने वाला है, तभी अचानक मेंढक, सांप की पकड़ से छूट कर पानी में गायब हो गया।

अक्सर मेंढक साँपों की पकड़ से बचने के लिए अपने आगे के पैरों की मदद से बाहर की तरफ धक्का लगाते हैं और बच निकलते हैं। धामन जैसे बड़े आकार के आक्रामक शिकारी की पकड़ से बच निकलना काफी हैरान करने वाला था। निःसंदेह, मेंढक की जीवित रहने की इच्छा धामन की भूख से मजबूत रही होगी।