जल संरक्षण का सूक्ष्मता से अध्ययन के लिए आप शेखावाटी के अद्धभुत जोहडों और कुंडो की संस्कृति को आधार बना सकते हो …

राजस्थान के चूरू जिले के गाँवो में जब भी काले बादल छाते है, यहाँ के निवासी अपनी छत्तों की सफाई करने लग जाते हैं, ताकि बारिश की हर एक बून्द को शुद्धता के साथ पीने के लिए बचाया जा सके। सीकर, झुंझुनूं और चूरू जिले जो शेखावाटी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं, के ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग हर घर और खेत में एक बड़ा पानी का टांका पारंपरिक रूप से बनाया हुआ होता हैं, जिसमें स्थानीय लोग वर्षा जल को शुद्ध पेयजल के रूप में संरक्षित करते आये हैं, जो स्थानीय भाषा में कुंड कहलाते हैं। रेगिस्तान के इस शुष्क इलाके में यह परम्परा सदियों से है। पानी का उपयोग भी घी की तरह बड़ी मितव्यता से करते थे, कुछ दशक पहले तक तो बिना साबुन से नहाया और कपड़े धोया हुआ पानी भी पेड़ पौधों में डाल कर उसका अंतिम उपभोग किया जाता था,और बारिश के अलावा घरों से पानी का नाला न के बराबर बहता था।
कुण्डों का संचित पानी घर में सिर्फ पीने के लिए काम में लिए जाता है।

सोमासी (चूरू, राजस्थान) गांव का दृश्य जिसमें गहनता से देखने पर हर घर में एक कुंड (टांका) देखा जा सकता है। यह पानी पुरे साल पीने के काम में लिया जाता है, जो फ्लोराइड से भी मुक्त होता है। (फोटो: श्रीमती. दिव्या खांडल)

इस परम्परा को नजदीक से जानने वाले सोमासी गांव (चुरु) के निवासी श्री मनोज गोरसिया के अनुसार पालतू पशुओं के साथ साथ वन्य प्राणियों को भी पानी की उपलब्धता हो, इसके लिए जोहड़ का निर्माण एक लम्बी परंपरा रही है। अक्सर खेतो, गोचर या ओरण में जोहड़ का निर्माण उन स्थानों पर होता था जहाँ मिटटी में जिप्सम की अधिकता हो जो जल को लम्बे समय तक जमीन में रिस कर नीचे जाने से रोके रखने में सक्षम हो। बलुई टीलों के मध्य जिप्सम के इन मैदानों के मध्य में बनाये गए हल्के गहरे गड्ढे में बारिश की हर बून्द को करीने से सुरक्षित किया जाता रहा है। हर एक जोहड़ के चारों तरफ जलग्रहण के लिए स्थान को सुरक्षित रखना सबसे बड़ी कवायद और चुनौती होती है। इस स्थल को जिसे पायतान के नाम से भी जाना जाता है को साफ-सुथरा रखने के लिए गांव की तरफ एक रखवाला भी रखा जाता है जो ये सुनिश्चित करता है कि जोहड़ पायतान में कोई मृत पशु डालने का कार्य, व शौच क्रिया ना हो साथ ही बच्चों को भी जोहड़ में नहाने से रोकना होता है ताकि उनके साथ होने वाली किसी दुर्घटना को टाला जा सके,,

फतेहपुर कस्बे (सीकर, राजस्थान) की गोचर भूमि में स्थित जोहड़I (फोटो: श्रीमती. दिव्या खांडल)

फतेहपुर (सीकर , राजस्थान) के जोहड़ का अनूठा निर्माण शिल्प I (फोटो: श्रीमती. दिव्या खांडल)

जल ही जीवन है शायद इसीलिए इन स्थानों को मंदिरो की तरह आदर भाव से देखा गया, जिनका लाभ इंसानो, पशुओ एवं वन्यजीवन ने भरपूर उठाया। समाज का हर एक व्यक्ति इस से जुड़े अलिखित संरक्षण के नियमो का पालन करता था, जिसमें इन स्थानों में शौच आदि न जाना, यहाँ की मिट्टी को अन्यत्र नहीं ले जाना शामिल है। श्री गोरसिया कहते है इन छोटे और आसान नियमो में बंधे समाज ने रेगिस्तान में पशु , वन्यजीव एवं इंसानो के मध्य एक साम्य बना कर रखा। वर्ष के तय दिनों में इनके जलग्रहण क्षेत्र में उगने वाले झाड़ झंकाड़ को हटाया जाता था एवं जल का प्रवाह तय स्थान तक पहुंचे इसके लिए मिट्टी को समतल भी किया जाता था। राजस्थान के शेखावाटी के समृद्ध स्थानों में तो धनाढ्य वर्गों ने जोहड़ो को चूना पत्थर से पक्का निर्माण करवादिया। साथ ही जोहड़ निर्माण को अपनी प्रतिष्ठा एवं सम्मान से जोड़ना शुरू कर दिया एवं इनके निर्माण को उच्च स्तर पर ले गए। यह पक्के जोहड़ आज भी उस शानदार इतिहास की एक झलक दिखाते है।

इस जल कुंड के पास पगडंडिया बताती है की, इनका आज भी कितना अधिक उपयोग होता है, यह जल कुंड रोलसाबसर (चूरू जिला ) गांव के पास स्थित है I (फोटो: श्रीमती. दिव्या खांडल)

रामगढ कस्बे के पास स्थित जोहड़ के पास सेंकडो चिंकारा एवं अन्य वन्यजीव रहते है, जो इसके जल को उपयोग में लेते है। (फोटो: श्रीमती. दिव्या खांडल)

अक्सर यह वर्गाकार आकृति के होते है जिनमें चारो कोनो पर सूंदर गुम्बंद वाली छतरीयां और हर ओर मध्य में पानी तक जाने के रास्ते होते है। कच्चे जोहड़ में अधिकतम छह माह तक ही पानी संरक्षित रखा जा सकता था पर पक्के और चूने से बने इन खूबसूरत जोहड़ में बारह मास पीने का शुद्ध और मीठा पानी मिलता रहता ह। पक्के जोहड़ सीढ़ी नुमा गहराई में होते हैं, गहराई के साथ पानी के अलग अलग सीढ़ी नुमा तल को चौपड़ कहते है। जोहड़ की बाहरी सीमा उंची बनाई जाती है, ताकि  पशु आदि  उसे गन्दा नहीं करे, पालतू पशु और वन्य जीवो के पानी पीने के लिए, जोहड़ से जुड़ा हुआ एक अलग से स्थान बनाया जाता था,  जिसे गऊघाट कहते है।

पीथलाना गांव (चूरू जिला) के जोहड़े का उपयोग पशुओ की जलापूर्ति करता है, यह स्थान एक अच्छा पिकनिक स्पॉट भी है। (फोटो: श्रीमती. दिव्या खांडल)

शेखावाटी के एक कस्बे रामगढ के जोहड़ संरक्षण में लगे श्री ओम प्रकाश कलावटीया कहते है, के वर्तमान में अत्यधिक दोहन एवं जलवायु परिवर्तन के कारण जब जल संकट गहराता जा रहा है, तब इन जोहड़ो के महत्व को नकारते हुए खुद सरकार इनके संरक्षण की बजाय इनको समाप्त करने में लगी हुई है । श्री कलावटिया ने कहा के जोहड़ बिना इसके जल ग्रहण स्थल के बेमानी है, रामगढ के एक जोहड़ का उदाहरण देते हुए वह कहते है- सरकार ने अपने चार विभागों को इसकी जल ग्रहण की जमीन आवंटित कर इसमें भवन निर्माण भी करदिये है एवं कई और विभाग इस श्रंखला में लगे है। जबकि कानूनन जोहड़ पायतान में किसी भी तरह के निर्माण  की इजाजत नहीं है,,,

चूरू के वनक्षेत्र में स्थित गोल जोहड़ कई महीनो तक वन्यजीवन के लिए जीवन का आधार बनता है, मुख्यतया जब माइग्रेशन कर सुदूर देशो से कई प्रकार के पक्षी यहाँ आते है। (फोटो: श्रीमती. दिव्या खांडल)

चारणवासी गांव (चूरू जिला) के सामुदायिक कुंड (टांके) जहाँ से ग्रामीण अपने सभी तरह के उपयोग का पानी काम में लेते थे। सामुदायिक जुड़ाव कम होने से इनके रख रखाव में निरंतर गिरावट आयी है। (फोटो: श्रीमती. दिव्या खांडल)

जोहड़ की वर्तमान परिपेक्ष्य में उपयोगिता के सवाल पर श्री कलावटिया कहते है की इंसानो ने अपने लिए हर सुविधा का इंतजाम करलिया पर वन्यजीवों के लिए इनकी उपयोगिता कल्पनातीत है, इसी तरह रेगिस्तान में पशुपालन करने वाले लोगों से पूछोगे तो पता लगेगा के, उनके पशुओ के लिए यह कितने उपयोगी है। सुप्रीम कोर्ट के सपष्ट आदेशों के बाद भी खुद सरकार जल संचय के इन स्थानों के संरक्षण में अत्यंत लापरवाह एवं यदि यह कहे के नष्ट करने में खुद शामिल है। जहाँ तहाँ पक्के मार्गो के निर्माण ने पायथन समाप्त करदिये अथवा इन जोहड़ों को कस्बे के गंदे पानी ने बर्बाद कर दिया।

चूरू शहर का जोहड़ जिसे सेठानी का जोहड़ नाम से जाना जाता है। सरकार ने इसकी निरंतर मरमत्त करवा कर इसे अच्छे स्थिति में रखा है। (फोटो: श्रीमती. दिव्या खांडल)

रही सही कसर मनरेगा जैसी योजना ने पूरी कर दी, बिना किसी कारण मनरेगा कर्मियों से सरकार जोहड़ पायतान की पक्की और सपाट जमीन को खोद खोद कर बर्बाद कर दिया, 100 तक कार्य देने की मज़बूरी के कारण अक्सर अवांछनीय कार्य करवाना पड़ता है जिसे करवाने के लिए मानो सरकार के पास इन स्थलों के अलावा कुछ बचा ही नहीं।
हम इन्हे अपने इतिहास की धरोहर के रूप में ही नहीं बल्कि उपयोगी स्थलों के रूप में संरक्षित करना होगा।

 

 

 

 

 

Mrs. Divya Khandal is the director of Dhonk Crafts in Ranthambhore Tiger reserve and she is a wildlife enthusiast.