अक्सर लोग मानते हैं कि, बाघ के मरने के बाद उसके मृत शरीर को खाने कोई भी प्राणी नहीं आता क्योंकि मरने के बाद भी उस से डरते हैं।
दो अल्पवयस्क बाघों के गांव वालों द्वारा जहर देकर मारे जाने पर, वन विभाग के आला अफसर ने कहा की इनके शरीर पर घाव के निशान किसी मृतभक्षी प्राणी के नहीं बल्कि किसी नर बाघ द्वारा काटने से हुए है। यदपि इन दोनों बाघों के शरीर लगभग 24 घंटे बाद मिले थे। उन दोनों के शरीर पर कुछ घाव के निशान थे जो किसी जानवर के खाने से हो सकते हैं। यह मरने के बाद भी हो सकते हैं और मरने से पहले के भी। उनका यह कहना था कि, मृत बाघ को कोई मृतभक्षी प्राणी छूता ही नहीं है, क्योंकि बाघ के मरने के बाद भी उसे देख मृतभक्षी डरते है। जंगल में कई मृतभक्षी प्राणी होते हैं परन्तु मुख्य्तता है – सियार, लड़बघ्घा आदि। यह अदुभुत ज्ञान लगता है और ऐसे प्रतीत होता है कि, कोई गहरी और सूक्ष्म जानकारी रखने वाला ही यह जानता है।
परन्तु मेरे अनुभव के अनुसार मॉनिटर लिज़र्ड , कोयें, गिद्ध, नेवला, जंगली सूअर, रैटल आदि भी मृत बाघ को खाने में कोई भय नहीं दिखाएंगे परन्तु मेरा सियार और लकड़बग्घा के बारे में ज्ञान शून्य है।
परन्तु केसरी सिंह जी ने अपनी पुस्तक – ‘हिंट्स ऑन टाइगर शूटिंग’ १९६५ में एक वाकया लिखा है जो पूरी तस्वीर पूरी तरह साफ कर देता है। उनके अनुसार रामसागर- जयपुर के पास एक नर भक्षी बाघ को मारने के समय एक अमेरिकन पोलो के खिलाडी स्टेफेन ‘लाड्डी’ सानफोर्ड उनके साथ थे। यह उस ज़माने के जाने माने पोलो के खिलाडी हुआ करते थे और जयपुर शहर आज की तरह उस समय भी पोलो का मुख्य केंद्र हुआ करता था। सानफोर्ड एक पोलो प्लेयर होने के साथ साथ जयपुर दरबार के नजदीक भी हुआ करते थे।
लेडी एडविना मौन्टबेटन अमेरिकन पोलो के खिलाडी स्टेफेन लाड्डी सानफोर्ड के साथ
खैर नर भक्षी को मारने के लिए केसरी सिंह जी ने भेंसे के पड्डे को एक पेड़ पर बंधवाया ताकि वह बाघ को उस और आकर्षित कर सके, साथ ही उन्होंने इसके साथ एक मानव नुमा लगने वाले कपडे के पुतले को भी बांधा ताकि यह तय किया जा सके की वह एक नर भक्षी है या सामान्य बाघ। यदि सामान्य बाघ हुआ तो वह भैंस के पड्डे को मारने नहीं आएगा। यह कितना प्रामाणिक है कह नहीं सकते, परन्तु केसरी सिंह जी लिखते है कि, अर्धरात्रि में बाघ वहां आया और उसने सबसे पहले पुतले पर हमला किया और उसके बाद भैंस के पड्डे को मार गिराया। सानफोर्ड ने बड़ी आसानी से बाघ को एक ही गोली से अपना शिकार बना लिया था।
बाघ के सफल शिकार के बाद उन्होंने तय किया की अब रात भर मचान पर ही बिताना पड़ेगा अतः आरामदायक मचान पर वह दोनों सो गये। रात्रि लगभग दो बजे केसरी सिंह जी की आंख खुली और उन्होंने देखा की एक सियार बाघ की एक टांग को खा रहा था, उन्होंने सोचा इसे भगा देने मात्र से काम नहीं होगा क्योंकि यह पुनः आएगा तो उन्होंने उसे भी एक गोली से मार गिराया। सुबह जब उजाला हुआ तो उन्होंने देखा की सियार ने बाघ के पीछे से एक बड़े हिस्से की चमड़ी को खा कर बर्बाद कर दिया है। केसरी सिंह जी अपने मित्र की ट्रॉफी को इस तरह ख़राब होते देख बारे मायुश हुए।
खैर उन्होंने माना की सियार मृत बाघ से डरे बिना उसे खा सकता है, यह पूर्ण तय गलत होगा की खूंखार बाघ के मृत होने पर प्राणी उस से भयभीत होंगे।
लेखक:
Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.
Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.
We can decipher some truly ingenious ways of saving tigers from the archaic world of antiquated hunting methods. One such method is brought to light in the writings of Col. Kesri Singh ji, the famous hunter from Rajasthan.
Col. Kesri Singh was an expert in his craft, and spent years managing the Shikarkhanas of the erstwhile princely states of Jaipur and Gwalior (Madhya Pradesh). The context of that era was very different, hunting tigers and leopards was recognized both by law and societal norms of those states. Therefore, to view such historical episodes with a jaundiced eye would not be correct. Kesri Singh ji has written many books in which he has elaborated on the nuances of tiger hunting in great detail through his own personal experiences. Many of these nuances are still relevant, and can be effectively repurposed to serve the cause of tiger conservation.
His book Hints on Tiger Shooting, published in 1965, includes an account from Band Baretha (Bharatpur district, Rajasthan), where he described how his friend was able to momentarily stop a tiger in its tracks just long enough to be able to shoot it with relative ease.
Maharaja Kishan Singh ji
Kesri Singh ji writes that he and Maharaja Kishan Singh ji of Bharatpur were school friends. Both attended Mayo College in Ajmer. Kishan Singh ji was known to invent ‘new methods’ for given tasks very often. Kesri Singh ji also adds that he had not personally witnessed the tiger hunting method employed by his friend in Band Baretha, perhaps he would not have been so inclined to consider it reliable. Kishan Singh ji is also remembered as a social reformer of his time, and is the grandfather of Sh. Vishvendra Singh, a well known politician in Rajasthan and great-grandfather of young Sh. Anirudh Singh, also a politician. Baretha currently has the status of a wildlife sanctuary and is known as Band Baretha Wildlife Sanctuary. However, Baretha was recently in the news because the Rajasthan Government separated a large part of the sanctuary in order to be able to mine stones for the construction of the Ram Temple in Ayodhya.
Bandh Bareth Wildlife Sanctuary (Photo: Dr. Satya Prakash Mehra)
One of the most popular methods of tiger hunting in those days was beating. A beat entailed beaters following a tiger in a ‘U’ shaped formation all the while making an ungodly racket, thus funneling the frightened tiger towards a predetermined spot where the hunter, already waiting on a machan, could easily shoot it . While the machan itself was usually concealed, the spot the tiger was driven to before the machan was open ground devoid of any cover or concealment. However, at times the tiger would often arrive so fast that if the hunter was not prepared to shoot it at that precise moment, the entire arduous process had to be repeated again.
Bandh Bareth Wildlife Sanctuary (Photo: Dr. Satya Prakash Mehra)
Kesri Singh ji writes that as soon as the tiger arrived on open ground before the machan in Bandh Bareta, the tiger paused and was trying to get something off its paws ! This gave the hunter in the machan just the right amount of time to hunt the tiger with a well aimed shot.
Flies stuck to flypaper
Upon enquiry, Kishan Singh ji explained how he had flypaper placed i.e. paper with adhesive material on one side used to catch flies and insects, on the path the tiger was to take, so that when the tiger trod on the adhesive paper, pieces of the paper got stuck to it’s paws and when the tiger momentarily paused to rid its paws of these pieces, it became an easy target for the hunter.
Today, such a method could be used in special circumstances, such as trapping a straying or man-eating tiger, not for the bullet, but the tranquilisation dart. Here too, shooting at precisely the right moment is of paramount importance and the added fact that the sedative acts relatively slowly. Thus, to be able to momentarily stop a tiger in its tracks without causing it any harm can only be advantageous in capture operations requiring tranquilisation.
Authors:
Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.
Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.
शिकार के अलग अलग तरीके है और इनमें छुपे ज्ञान से, हम बाघों को बचाने के अद्धभूत तरीके ढूंढ सकते हैं, एक वाक्या राजस्थान के विख्यात शिकारी केसरी सिंह जी द्वारा दर्ज किया गया है, जो नरभक्षी और घुमन्तु बाघों को पकड़ने में सहायक हो सकता है।
कर्नल केसरी सिंह राजस्थान के एक माहिर शिकारी थे, जिन्होंने ग्वालियर और जयपुर रियासतों के शिकार खानो के लिए वर्षो तक कार्य किया। उस समय की परिस्थितियाँ अलग हुआ करती थी, बाघ – बघेरों के शिकार को राज्यों के कानून एवं समाज द्वारा मान्यता प्राप्त थी। अतः शिकार की घटनाओं आज के परिपेक्ष्य में भी हेय नजर से देखना ठीक नहीं होगा। केसरी सिंह जी ने कई पुस्तके लिखी है, जिनमें बाघ शिकार के साथ उसके व्यवहार की अनेक बारीकियों का सूक्ष्मता से वर्णन किया है। आज के समय भी उनके द्वारा दर्ज की गयी घटनाये, बाघ संरक्षण में उपयोगी हो सकता है।
उनकी एक पुस्तक – “हिंट्स ऑन टाइगर शूटिंग” 1965 में एक वर्तान्त बांध बरेठा (भरतपुर) से शामिल है, की किस प्रकार वहां उनके एक मित्र ने घबराये हुए दौड़ते बाघ को कुछ क्षण एक स्थान पर रोके रखा, ताकि वह उसका आसानी से शिकार कर सके।
भरतपुर महाराज किशन सिंह जी
केसरी सिंह जी लिखते है कि, भरतपुर महाराज किशन सिंह जी, उनके मेयो कॉलेज, अजमेर के ज़माने से मित्र हुआ करते थे। किशन सिंह जी किसी भी समस्या के लिए हर समय त्वरित रूप से नए हल ईजाद कर लिया करते थे। केसरी सिंह जी लिखते है यदि बरेठा का वह शिकार का वाक्या खुद उन्होंने ने नहीं देखा होता तो शायद वह इस तरह के शिकार के तरीके पर भरोसा ही नहीं करते। किशन सिंह जी राजस्थान के प्रसिद्ध राजनेता श्री विश्वेन्द्र सिंह के दादा एवं नव जवान राजनेता श्री अनिरुद्ध सिंह के परदादा थे। किशन सिंह जी अपने ज़माने के समाज सुधारक के रूप में जाने जाते है। बरेठा को वर्तमान में एक वन्य जीव अभ्यारण्य का दर्जा प्राप्त है जिसे बांध बरेठा नाम से जाना जाता है, एवं इन दिनों में इसलिए चर्चा में रहा था क्योंकि राम मंदिर निर्माण के लिए इस्तेमाल होने वाले पत्थरो के लिए इसके एक बड़े हिस्से को राजस्थान सरकार ने अभ्यारण्य से अलग किया था।
बांध बरेठा वन्यजीव अभयारण्य (फोटो: डॉ सत्य प्रकाश मेहरा)
उस ज़माने में शिकार का एक सबसे अधिक प्रचलित तरीका था – हांका लगाना। हांके में अनेको लोग बाघ के पीछे तेज शोर और हल्ला करते हुए U आकर में उसे घेरते हुए चलते है, और डरा हुआ बाघ एक निश्चित स्थान से दौड़ते हुए गुजरता है, जहाँ पहले से मचान पर तैयार बैठा शिकारी, उसका शिकार कर लेता है। मचान हालाँकि छुपे हुए स्थान पर होता है और उसके सामने एक खुला मैदान रखा जाता है। परन्तु कई बार बाघ इतना तेजी से निकलता है की यदि उस क्षण में शिकारी गोली नहीं चला पाए तो पुनः उतनी ही तैयारी फिर से करनी पड़ती है, जो एक लम्बी प्रक्रिया है।
बांध बरेठा वन्यजीव अभयारण्य (फोटो: डॉ सत्य प्रकाश मेहरा)
वे लिखते है कि, बरेठा में जैसे ही बाघ हांका लगने के बाद खुले मैदान में मचान के पास आया वह अपने पांव से कुछ निकलने की कोशिश कर रहा था। यह क्षण मचान पर बैठे लोगो के लिए आसानी से शिकार के लिए समय दे गया और उन्होंने ने बन्दुक से एक सधा हुआ निशाना मार उसे ख़तम कर दिया।
मक्खी एवं कीट आदि पकड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाला फ्लाईपेपर
किशन सिंह जी जानकारी लेने पर उन्होंने बताया की किस प्रकार उन्होंने फ्लाईपेपर – मक्खी एवं कीट आदि पकड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाले एक तरफ से चिपकने वाले पदार्थ से सने कागज को रास्ते पर बिखेर दिया था, ताकि जब बाघ उसपर से चले तो उसके पांव में वे कागज के टुकड़े चिपक जाये। और जैसे ही वह इनसे अपना पीछ छुड़ाने के लिए रुके, फिर आसान शिकार बना सकते है।
यह तरीका खास परिस्थिति में घुमन्तु एवं मानव भक्षीबाघ को पकड़ने में लिया जा सकता है, एवं गोली की जगह बेहोश करने वाली दवा का इस्तेमाल किया जा सकता है। क्योंकि गोली की बजाय दवा वाला इंजेक्शन धीमी गति से चलती हां एवं सही निशाना भी अत्यंत आवश्यक है।
लेखक:
Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.
Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.
राजस्थान देश का विशालतम राज्य है, जहाँ हर वर्ष हज़ारों लोग सर्प दंश से मारे जाते है। सांपो के बारे में कुछ लोग अज्ञानतावश और कई लोग अपने स्वार्थ के लिए भ्रामक जानकारियां फैला रहे हैं।
पास के एक गांव से मुझे किसी जानकार का फ़ोन आया कि, किसी को सांप ने हाथ में काटा है, मुझे लगा जरूर कोई महिला होगी, क्योंकि महिलाये ही हाथ से अधिकांश काम करती है, पांव में सांप काटता तो पुरुष होने की अधिक सम्भावना रहती है, जो इधर-उधर घूमते फिरते हैं। गांव वाला बोला हाँ महिला ही है और उसे एक देवता के लेकर आये हैं, परन्तु आराम नहीं आया, आप कुछ करो। मेरा सहज सुझाव था, आप डॉक्टर के लेकर जाओ। गांव वाला बोला, यह बहुत मुश्किल है, क्योंकि लोग मानेगे नहीं। अक्सर विभिन्न देवताओं के स्थानों पर सांप काटे के इलाज के लिए सर्प दंश से पीड़ित लोगों को लेकर आते है। यह एक आम परिदृश्य है, जो राजस्थान के सभी जिलों में देखने को मिल जाता है। कुछ दिनों बाद महिला अपने दूध मुहे बालक को छोड़ कर परलोक सिधार गयी।
सॉ स्केल वाईपर Saw-scaled viper (Echis carinatus): इसे स्थानीय भाषा में फुरसा, फोपसिया, अथवा बांडी नाम से जाना जाता है। रक्तसंचार प्रणाली पर असर डालने वाला विष छोड़ते है। शरीर से शल्कों को रगड़ कर आवाज पैदा करता है। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
राजस्थान में सांपो के इलाज से जुड़े अनेक लोक देवता है जैसे – गोगाजी, देलवारजी, हरबूजी, रामदेवजी, तेजाजी, कारिशदेवजी आदि, इन देवताओं में स्थानीय लोगों की अटूट आस्था है। इन देवता में आस्था ने लोगों को सांप काटने के बाद मानसिक रूप से सबल भी किया है। इन देवताओं का यदि इतिहास देखे तो पता चलता है कि, यह योद्धा रहे हैं, जो स्थानीय युद्ध वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये थे। इनके स्थलों पर जिस प्रकार के वाद्य यंत्र आदि बजाये जाते हैं, वह किसी युद्ध के माहौल में बजाये जाने वाले ध्वनि यंत्रो की भांति होते है। सर्प दंश से पीड़ित को जब उत्सावर्धक माहौल मिलता है वह प्लेसिबो इफ़ेक्ट से अपने आप को कुछ हद तक समस्या से उबार लेता है। प्लेसिबो इफ़ेक्ट का मतलब है मानसिक रूप से अपने आप को मजबूत कर बिना दवा और इलाज के अपने कष्ट से लड़ना अथवा कष्ट को नगण्य मानना। इसके लिए इन देव स्थलों पर अनोखा माहौल होता है जहाँ अनेको लोग आप के कष्ट में शामिल होते हैं और उत्तेजक धुन पर लोग नाच गा रहे होते हैं। पीड़ित व्यक्ति को देवताओं के स्थलों पर जाने से जीवित रहने की आशा तो मिलती है, परन्तु यह पर्याप्त नहीं, उसे उचित इलाज मिलना आवश्यक है।
इंडियन कोबरा Indian cobra (Naja naja) : नाग भारतीय मिथको का सबसे अधिक विषमयकारी प्राणी जिसे देवताओं के गले की शोभा बढ़ाने का दर्जा दिया गया है। अत्यंत विषैला परन्तु उतना ही शर्मीला सरीसृप अक्सर अपने सिर के आस पास की त्वचा को फन के रूप में फैला कर और फुफकार कर अपने दुश्मन को दूर रखने की चेष्टा करता है। इस का विष हेमो और न्यूरो टॉक्सिक दोनों प्रकार के गुणों से युक्त होता है। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
असल में सांपो के काटने के बाद उसका सही इलाज होना ही कोई आधी सदी पूर्व से शुरू हुआ है। एन्टीवेनॉम का चलन और उसका निर्माण का इतिहास कोई अधिक लंबा नहीं है, इसी कारण भारत की विशाल अनपढ़ जनसंख्या अपने पारम्परिक तरीके से दूर नहीं हो पायी। हज़ारों वर्षो तक इन देवस्थलों पर पीड़ितों को मानसिक तोर पर सबल बनाकर सांप काटे का इलाज होता रहा है।
रसल्स वाईपर Russell’s viper (Daboia russelii) : चित्ती नाम से जाना जाने वाला बेहद खूबसूरत परन्तु अत्यंत गुसैल सांप, भारत में सबसे अधिक लोगो की मृत्यु का कारण बनता है। इसके विष दन्त बहुत अधिक लम्बे और मजबूत होते है, जो काफी गहराई तक विष छोड़ते है एवं इनके विष की मात्रा भी सिर के बड़े होने के कारण अधिक होती है। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
इन स्थलों पर पीड़ित के बचने के कई कारण थे -कई बार सर्प दंश में विष की मात्रा थोड़ी छोड़ पाता है, कई बार तो सर्प काटने के बाद भी अपना विष छोड़ता नहीं जिसे ड्राई बाईट कहते है, कई बार केवल सांप की फुफकार आदि से व्यक्ति डर जाता है, अनेक बार विषहीन सर्प ही काट लेता है, राजस्थान में 40 सांपो की प्रजातियों में 35 तो विषहीन ही है। इस तरह के मामलो में जब व्यक्ति बच जाते है, तो आस्था के इन स्थलों में और अधिक विश्वास बढ़ता चला जाता है। इन सभी मसलों को गहराई से बिना समझे लोग झाड़ फूंक में लगे रहते हैं और इन देवताओं के स्थलों के संचालक, लोगों को भर्मित कर, अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं, और साथ ही ऐसे लोग सही इलाज से भी लोगो को दूर रखते हैं।
यह तय मान के चलिए की यदि किसी विषैले सांप ने काटा है तो एंटीवेनम के अलावा कोई इलाज नहीं है। आपको ऐसे कई उदहारण मिलेंगे जिसमें व्यक्ति देवता के स्थान पर पहुंचे है और मारे गए, उसके बाद देवता के पुजारी बिना जिम्मेदारी लिए पीड़ित और उसके परिवार को ही लापरवाह बता कर उसी की गलती सिद्ध कर देते हैं।
करैत common krait (Bungarus caeruleus) : पूरणतया रात्रिचर सांप अत्यंत विषैला होता है। इसके अत्यंत छोटे विषदंत लोगो को काटने पर दर्द नहीं होने देते एवं इसका न्यूरोटोएक्सिक विष निद्रा में सोते हुए व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन जाता है। इसी सांप से मिलती जुलती प्रजाति का एक और सांप राजस्थान के मरुस्थली क्षेत्रो पाया जाता है जिसे पीवणा नाम से भी जाना जाता है। तंत्रिका तंत्र पर असर डालने के कारण इस सर्प का विष व्यक्ति को और गहरी नींद में ले जाता है। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
सांपो के सही इलाज का विचार भी भारतीय उपमहाद्वीप की ही देन है, वर्ष 1870, में सर्जन मेजर एडवर्ड निकोल्सोन ने मद्रास मेडिकल जर्नल में एक बर्मा देश के सपेरे के बारे में आलेख प्रकाशित किया की किस प्रकार वह अपने आपको सर्प दंश करवाकर भविस्य में होने वाले सांपो के दंशो से सुरक्षित रखता था। इस तरह के उल्लेख भारतीय मिथको में पढ़ने को भी मिलते रहे है। खैर इसी तरह के कई और शुरुआती पर्यवेक्षण आधार बने एक विशेष शोध के कारण 1896 में पहली बार एक फ्रेंच चिक्तिसक अल्बर्ट कालमेट्टे ने पहले मोनोक्लेड कोबरा सर्प दंश के टीके का निर्माण किया। इन्होने इस टीके का निर्माण वियतनाम में बाढ़ ग्रस्त इलाके में फसे अनेक लोगो के सर्प दंश से मारे जाने के बाद किया था।
100 वर्ष से अधिक पहले विकशित हुए इस इलाज को कई वर्षो तक कोई अधिक मान्यता नहीं मिली परन्तु 1950 के आस पास जाकर ही लोगो ने इसे स्वीकारा एवं पिछले कुछ दशकों से ही इसकी उपलब्धता बढ़ी है। यद्दपि आज भी देश में एंटीवेनम की कमी है।
देश में होने वाले कई सर्प मेला में अनेको सांपो को अवैध रूप से प्रदर्शित किया जाता है एवं सांपो के प्रति वैज्ञानिक सोच की बजाय अन्धविश्वास को जारी रखा जाता है। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
राजस्थान में कितने लोग सर्प दंश से प्रभावित होते है ?
विश्व स्वास्थ्य संघठन (World Health Organization -WHO ) के अनुसार विश्व में 81,000–138,000 लोग सर्प दंश से मारे जाते है और इनसे तीन गुणा लोग स्थायी तौर पर अपने अंगो से विकलांग हो जाते हैं।
मिलियन डेथ स्टडी (MDS) भारत सरकार के द्वारा किया गया ऐसा अध्ययन है, जिसमें अल्पायु में मृत्यु के कारणों पर आंकड़े संगृहीत किये गए थे। यह अनूठा अध्ययन वर्ष 1998-2014 के मध्य संपन्न किया गया। इसी अध्ययन के अनुसार वर्ष 2001 to 2014 के मध्य 14 वर्षो में भारत देश में लगभग 808,000 लोगो की जान सर्प दंश से गयी। यानी एक वर्ष में भारत में 58000 लोग सर्प दंश से मारे जाते है। जिनमें से 94% लोग ग्रामीण इलाको में और उनमेसे 77% अस्पताल नहीं पहुंचे थे।
सर्प दंश से मारे जाने वालों की संख्या के हिसाब से भारत के अन्य राज्यों की तुलना में राजस्थान का शीर्ष से पांचवा स्थान है जो कि, एक अत्यंत चिंता का विषय है। इस अध्ययन के अनुसार 14 वर्षो में राजस्थान में 52,100 लोगों की मृत्यु हुई जिसका प्रतिवर्ष हुई मृत्यु का औसत 3722 होता है।
सांपो को इन मेलो में अनेक प्रकार से सांपो परेशान किया जाता है, एवं कुछ व्यक्ति अपने सांप पकडने के कौशल को देवीय शक्ति के रूप में प्रदर्शित करते है। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
सूरवीरा एवं साथियो 2020 द्वारा प्रकाशित आलेख ”Trends in snakebite deaths in India from 2000 to 2019 in a nationally representative mortality study ” – (https://elifesciences.org/articles/54076) के अनुसार भारत में होने वाले सर्प दंशो में रसल्लस वाईपर (Daboia russelii) द्वारा 43%, करैत द्वारा (Bungarus species) द्वारा 18%, कोबरा द्वारा (Naja species) 12% एवं सर्प प्रजाति की पहचान नहीं हो पायी 21%, अन्य सांप की प्रजातिया ने 6 % लोगो की मृत्यु के कारण बने। इन्होने प्रकाशित शोध एवं अन्य तथ्यों के आधार पर कई प्रकार के अन्य आंकड़े भी जुटाए और पाया की 59 % पुरुषो एवं 41 % महिलाओं की मृत्यु हुई। इनके अनुसार सबसे अधिक जून से सितम्बर के मध्य 48 % सर्पदंश से मारे गए जबकि जनवरी फरवरी में सबसे कम 9 % लोगो को ही सांपो ने द्वारा मारे गए।
चिरंजी लाल के पुत्र ने अपने मृत पिता का चित्र हाथ में लिए उन्हें याद करते है और बताते है की किस प्रकार उनके पिता सर्प दंश से मारे गए जबकि वह सांप के काटे का इलाज भी करते थे। यह अनोखी विडंबना है की जो सर्प दंश का इलाज करता था, उसे सांप की वजह से अपनी जान गवानी पड़ी। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
बचाव और प्राथमिक चिकित्सा आदि:
सर्प दंश से बचने के लिए प्रस्तावित प्राथमिक चिकित्सा के उपायों में अत्यंत भ्रम की स्थिति है, आपको भली प्रकार याद होगा की सर्प दंश के पश्च्यात अक्सर लोग कहते थे, उस स्थान पर “X” अथवा “+” के निशान के चीरे लगाए एवं रक्त के श्राव को होने दे। यह प्राथमिक चिकित्सा की पुस्तिकाओं में भी छपा हुआ मिल जाता है। परन्तु यह तरीका अत्यंत घातक होसकता है एवं पीड़ित अति रक्त स्त्राव से अपनी जान गवां सकता है। अनेक बॉलीवुड फिल्मो में आपने देखा होगा की एक हीरो चाकू से चीरा लगाकर मुँह से विष चूस कर हेरोइन की जान बचा लेता है। यह अत्यंत गलत उपाय है।
इनको रसल्स वाईपर ने काटा, तत्काल घर के लोग इन्हे देवता के यहाँ लेगये, परन्तु पहले मंदिर के मना करने के बाद दूसरे मंदिर में ले गये और बहुमूल्य समय को नष्ट करदिया। इनके द्वारा की गयी देरी के कारण इनके घाव ठीक होने में कुछ माह का टाइम लगा। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
हमें सर्प दंश वाले स्थान पर किसी भी प्रकार का चीरा नहीं लगाना चाहिए – सर्प के विष दो प्रकार के होते है – हेमोटोक्सिक एवं न्यूरोटॉक्सि। दोनों वाईपर प्रजाति के सर्पो में हेमोटोक्सिक विष विद्यमान है एवं यह जब काटते है तो परिसंचरण तंत्र या वाहिकातंत्र बुरी तरह प्रभावित होता है और परिणाम स्वरुप नाक, मुँह, मूत्रमार्ग एवं सर्प द्वारा काटे जाने वाले स्थान पर रक्त का स्त्राव शुरू होजाता है। इस स्थिति में यदि किसी प्रकार का चीरा लगाकर और रक्त निकलने का प्रयास किया जाए तो बिना चिक्तिसक की मदद के रक्त प्रवाह रुकना बहुत दूभर कार्य होजाता है। इस तरह व्यक्ति की मृत्यु विष से पूर्व अति रक्तप्रवाह से ही हो जाती है। अतः याद रखे कभी चीरा नहीं लगाये।
सर्प दंश से पीड़ित महिला को देव स्थान की तेज गति से दौड़ते हुए परिक्रमा दिलवाते स्थानीय लोग, इस से रक्त चाप बढ़जाता है जो हानिकारक है। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
पीड़ित महिला को बेहोशी से जगाने के लिए लोग नारे जयकारे लगते रहते है, कभी थपियाते और हिलाते रहते है। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
दूसरा प्रचलित प्राथमिक चिकित्सा का तरीका है , सर्प के काटे स्थान से थोड़ा ऊपर ताकत के साथ एक रस्सी या कपडे का बंध बांधना। यह तरीका भी पुरानी प्राथमिक चिकित्सा की पुस्तकों में आम तोर पर पढ़ने को मिलता है परन्तु यह तरीका भी पीड़ित के लिए घातक होसकता है। क्योंकि शरीर के एक ही हिस्से में विष का संग्रहण होजाता है और यह उस अंग के लिए अत्यंत घातक होसकता है। रक्त प्रवाह के सम्पूर्ण रुकने से वैसे भी उस अंग को हानि पहुँच सकती है।
इस बालक को सोते हुए सॉ स्केल्ड वाईपर ने मुँह पर काटने के बाद इन्हे देवता के यहाँ लेजाया गया। कई दिन परेशान होने के बाद धीरे धीरे यद्पि बालक ठीक होगया, परन्तु उसके कोनसे शारीरिक अंगो पर विष का लम्बे समय तक प्रभाव रहेगा कोई नहीं जानता। (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
वर्तमान ज्ञान के अनुसार यह अत्यंत प्रचलित प्राथमिक उपचार के दोनों तरीके ही पूर्णतया हानिकारक हो सकते है। तो फिर क्या किया जाए ?
विशेषज्ञ दो प्रकार की रणनीत से चलने की सलाह देते है —- बचाव और उचित इलाज। बचाव –
सबसे अधिक महत्वपूर्ण है सर्प दंश से बचना, सांप आपके घरो के आस पास अधिक नहीं पनपे इसकेलिए उनके साफ सफाई रखे, अक्सर चूहों आदि को खाने के लिए ही सांप आपके घर के नजदीक आते है। कबाड़ आदि रखे स्थानों को साफ सुथरा रखे।
रात्रि में इधर उधर जानेके लिए प्रकाश की उचित व्यवस्ता रखे। रात्रि विचरण के लिए अच्छी टोर्च को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाये।
सांपो की प्रजातियों को पहचानना सीखे ताकि आप उनके व्यव्हार को समझ सके।
सांपो के साथ उचित दुरी बनाये एवं सावधानी बरते, अनेको बार लापरवाही के कारण सांप पकड़ने वाले प्रशिक्षित व्यक्ति भी सर्पदंश के शिकार बन जाते है।
प्राथमिक चिकित्सा एवं इलाज :
बांधना एवं काटना नहीं करे , जिसका जिक्र हम शुरू में कर चुके है। परन्तु सांप के काटे हुए स्थान पर एक साफ कपडा लपेटे , जिसे आप हलके दबाव के साथ बंध सकते है, परन्तु तेज ताकत के साथ कदापि नहीं।
पीड़ित व्यक्ति को शांत रखे एवं उसका होंसला बढ़ाते रहे।
व्यक्ति को बिना दौड़ाये / भगाये चिकित्शालय तक पहुंचाए, इसके लिए वाहन का इस्तेमाल करे। यदि वाहन उप्लंध नहीं हो तो दुपहिया वाहन का इस्तेमाल करे एवं दो जनो के बीच में पीड़ित को बैठा कर अस्पताल लेकर जाना चाहिए ।
अस्पताल में यदि किसी को जानते है तो उनको पीड़ित के पहुंचने से पहले सूचित कर दे, ताकि वह बिना समय गवाए पहले ही संशाधनो की व्यवस्था कर सके।
अधिक सांप पाये जाने वाले क्षेत्र में रहने वाले लोग आस पास के अस्पताल के बारे में जानकारी रखे क्या वाहन एवं सर्प दंश से सम्बंधित इलाज उपलब्ध है।
एंटीवेनम का इस्तेमाल मात्र प्रशिक्षित डॉक्टर ही कर सकता अतः अपने पास इनका अनावस्यक संग्रहण नहीं करे एवं स्वयं इसका इस्तेमाल तो कदापि नहीं करे।
सर्प दंश में जिस एंटीवेनम- पॉलीवालेन्ट स्नेक एंटीवेनम का भारत में इस्तेमाल किया जाता है वह भारत के चार प्रमुख विषैले सांपो के विष के लिए प्रभावी है परन्तु फिर भी सांप की प्रजाति अगर पहचान सकते है तो इलाज आसान होता है। अतः उसे पहचान ने का प्रयास करे एवं डॉक्टर को ठीक से वर्णित करे।
कई बार डॉक्टर को भी सांप के काटे के इलाज का अनुभव नहीं होता है, अतः आस पास के सर्प विशेषज्ञ से मदद लेकर उन्हें अनुभवी डॉक्टर से राय मशविरा करवाया जा सकता है।
अक्सर निजी अस्पताल सांप के काटे का इलाज करते है परन्तु जिले के मुख्य सरकारी अस्पताल में यह पूर्णतया मुफ्त है, चूँकि एंटीवेनम की दवा को लाइफ सेविंग ड्रग की श्रेणी में रखा गया है, अतः वह इनका पर्याप्त स्टॉक भी रखना उनके लिए अनिवार्य है । एंटीवेनम की दवा महंगी होती है अतः आम जनता सरकार की योजना का लाभ भी इन्ही सरकारी अस्पतालों में ही उठा सकती है।
सांप के देवता के मंदिर में आये चढ़ावे आदि को समेटते प्रबंधक और पुजारी (Photo: Dr. Dharmendra Khandal)
इस प्रकार राजस्थान के विशाल भू भाग जहाँ अधिकांश जनता ग्रामीण इलाकों में रहती है, सर्प दंश से प्रभावित होसकती है। आवस्यकता है इसके बाद उचित इलाज लेने की। सांप हमारे पर्यवरण के महत्वपूर्ण घटक है इन्हे बचाना भी आवश्यक है। आप थोड़ी सावधानी से सर्प दंश से बच सकते है इनके शिकार आप नहीं आपका शत्रु चूहा है। असावधानी वश आपका इनसे प्रभावित होसकते है। अंधविश्वास से दूर रहे सही वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर निर्णय लेकर अपनी और अपने मित्रो की जान बचाये एवं सांप की भी जान बचाये।
वन्यजीव जगत में स्थान के लिए संघर्ष सिर्फ बड़े स्तनधारियों में ही नहीं बल्कि पक्षियों में भी देखा जाता है। पक्षियों को भी अधिक भोजन, सुरक्षा, प्रजनन के लिए साथी आदि जैसे सभी संसाधनों को ध्यान में रखते हुए एक बेहतर स्थान की जरूरत होती है तथा पक्षी अपने ऐसे स्थानों की रक्षा भी करते हैं। कई बार इन स्थानों के लिए पक्षियों में अपनी प्रजाति के सदस्यों के साथ संघर्ष भी देखे जाते हैं। ऐसी ही एक घटना इस चित्र कथा में दर्शाई गई है।
चम्बल नदी के जावरा टापू पर पेड़ के एक सूखे ठूठ पर एक रिवर टर्न (River tern (Sterna aurantia) बैठी हुई थी। ये स्थान कुछ ऐसा है जहाँ पक्षियों बैठने के लिए केवल कुछ ही ठूठ हैं ऐसे में इनपर बैठने के लिए पक्षियों एक होड़ सी लगी रहती है। क्योंकि इनपर बैठ आसपास आसानी से मछलियों का शिकार किया जा सकता है।
एक रिवर टर्न ठूठ पर बैठ अपने शिकार के लिए मौका ढूंढ ने में लगी हुई थी कि, तभी एक अन्य टर्न ने उसकी और बढ़ना शुरू किया।
उसके हावभाव स्पष्ट रूप से आक्रामक दिखाई दे रहे थे।
बैठी हुई टर्न तेज़ आवाज कर उसे डराने लगी परन्तु उसका फैसला निश्चित था वो आगे बढ़ी और उसने तुरंत बैठी हुई टर्न पर हमला कर दिया।
और बैठी हुई टर्न को वहां से भगा कर उस स्थान पर अपन कब्ज़ा कर लिया।
निश्चित है कि, यहाँ से जाने वाली टर्न भी शांत नहीं बैठेगी। वो भी एक नए स्थान की तलाश में किसी अन्य पक्षी से संघर्ष करेगी और ये चक्र यूँ ही चलता रहेगा।