आकल जीवाश्म उद्यान (Akal Fossil Park or Akal Wood Fossil Park)  राजस्थान का एक दर्शनीय स्थान है। यह उद्यान जैसलमेर-बाडमेर रोड पर जैसलमेर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित है तथा 21 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ जुरैसिक काल के प्रारंभिक चरण में कोई 180 मिलियन यानी 18 करोड वर्ष पूर्व डायनासोरों के युग में समुद्र में बने जीवाश्म इधर -उधर छितरी  अवस्था में देखे जा सकते हैं। वन विभाग, राजस्थान इस पार्क की देखभाल करता है। वैसे तो यहाँ भूमि की सतह पर वृक्षों के तने, फल, बीज, घोंघों आदि के जीवाश्म बिखरे पडे हैं लेकिन यहाँ 25 वृक्षों की तने की लकडी के जीवाश्म विशेष रूप से दर्शनीय हैं जिनमे 10 बहुत स्पष्टता से नजर आते हैं। उनमे एक तो 7.0 मी लंबा व 1.5 मी चौडा है।

कुछ जीवाश्मों को जो अधिक अच्छी स्थिति में हैं तथा आकार में बडे हैं, इनको सुरक्षा देने हेतु उन्हें चारो तरफ व ऊपर जाली से ढक कर अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान की गई है। कुछ जीवाश्म खुले भी रखे गये हैं। यहाँ बडे जीवाश्मों को यथास्थिती (मूल स्थिती) में प्रदर्शित किया गया है लेकिन छोटे जीवाश्मों व बडे जीवाश्मों के टुकडों को एक ‘‘जीवाश्म म्यूजियम’’ में प्रदर्शित किया गया है। बडे वृक्षों के तने के जीवाश्म भूमि पर लेटी अवस्था में विद्यमान हैं। ऐसा माना जाता है कि राजस्थान के पश्चिमी भाग में प्राचीन समय मे टैथिस महासागर था जिसमें अनेक नदियां गिरती थी। नदियों के तटों तथा जलग्रहण क्षेत्र में सघन वन थे जिनमें चीड, देवदारू आदि के रिश्तेदार जिम्नोस्पर्म वर्ग के ऊँचे – ऊँचे वृक्षों की काफी बहुतायतता थी। इसी वर्ग का एक पौधा ऑरोकैरियोक्सीलोन बीकानेरेन्स बीकानेर जिले में मिला है। तेज वर्षा के समय भूमि कटाव व बाढ की स्थिति में खडे वृक्ष उखड जाते थे तथा क्षैतिज पडी अवस्था में बहते-बहते समुद्र में पहुँच जाते थे। उनके नर्म भाग जैसे पत्ते आदि शीघ्र सड जाते थे लेकिन लकडी, फल-बीज आदि दृढकोत्तकों से बने कठोर भाग धीरे- धीरे सडते थे। ऊपर से बहकर आयी गाद में दबे, धीरे -धीरे सडते अनेक वृक्षों के कठोर भाग ’’पैट्रीफिकेशन’’ प्रक्रिया के दौरान अपने शरीर के मूल तत्वों को सिलिका व अन्य लवणों से विस्थापित होने की प्रक्रिया से गुजरे। पर्त-दर-पर्त गाद के नीचे दबने से भारी दबाव के कारण उनके सडने से बचे रह गऐ भाग पत्थरों में बदल गये जो आज जीवाश्मों के रूप में मिलते हैं। इन जीवाश्मों की आन्तरिक सूक्ष्म रचना इनकी मूल संरचना सेे हूबहू मिलती है। जीवाश्मों के अलावा राजस्थान के रेगिस्तान व गुजरात के कच्छ में डीजल-पैट्रोल, गैस एवं कोयला जगह-जगह मिलते हैं जो यहाँ प्राचीन काल में जीवन होने के स्पष्ठ संकेत हैं। ये सब चीजें जीव-जन्तु व पेड-पौधों के समुद्र में गाद की पर्तो के नीचे बहुत गहराई में दबने से बनती हैं। वास्तव में राजस्थान का रेगिस्तान व गुजरात का कच्छ क्षेत्र प्राचीन जीवन के प्रमाणों से भरे पडे हैं।

जीवाश्मों के बनने में समुद्रों की भूमिका बहुत अहम होती है। ऐसा जगह – जगह देखने को मिलता है। टैथिस सागर की तरह ही आज के अरब सागर की एक शाखा गुजरात के दक्षिणी भाग से होती हुई आज के मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी की घाटी में दूर तक फैली हुई थी। सागर की इस शाखा में भी गिरने वाली नदियों में बह कर आये पेड – पौधों व जीव जन्तुओं के जीवाश्म, उसी तरह बने जैसे राजस्थान में बने। यहाँ के जीवाश्मों की एक झलक मध्य प्रदेश के डिन्डोरी जिले में स्थित फॉसिल नेशनल पार्क, घुघुवा में ली जा सकती है। इस उद्यान की देखभाल मध्यप्रदेश वन विभाग द्वारा की जाती है। यहाँ 65 मिलियन वर्षों पूर्व के जीवाश्म देखे जा सकते हैं। लेकिन आकल जीवाश्म उद्यान के जीवाश्म कहीं अधिक प्राचीन हैं, अतः उनका अपना अलग ही महत्व है।