हम सब ने कहीं न कही पेड़ों पर पक्षियों को बैठे देखा है जो हमारा ध्यान आकर्षित करते है, खासतौर पर बड़े पक्षी। जैसे- चील, कौआ, बगुला, जांघिल, चमचा, जलकाग, कालाबाजा, धनेश इत्यादि। उपरोक्त पक्षियों में से हमें ग्रामीण और शहरी परिवेश के बाहर सबसे ज्यादा बगुले दिखाई देते हैं।
आम का पेड़ और सफेद बगुलों की मीठी दोस्ती (फ़ोटो: लीलाधर सुमन, सोनू कुमार)
भारत में बगुलों की छ: प्रजातियाँ पाई जाती है जिनमें से सबसे ज्यादा दिखाई देने वाला बगुला है, बगुले से यहां तात्पर्य मवेशी बगुले से है जिसे अंग्रेजी भाषा में कैटल एगरेट (Bubulcusibis) तथा हिंदी में सफेद बगुला / गाय बगुला / मवेशी बगुला कहा जाता है। इसे संस्कृत में “बकः” कहा जाता है। विद्यार्थी जीवन में हम सब ने कहीं न कहीं एक श्लोक जरूर सुना या पढ़ा होगा –
उपरोक्त श्लोक में अच्छे विद्यार्थी के पांच गुण बताए गए हैं जिनमें से एक बको ध्यानम है, जिसका अर्थ बगुले जैसे ध्यान से है। बगुले अक्सर घंटों तक एक स्थान पर ध्यान लगाए बैठे देखे जा सकते हैं।
बगुले अक्सर घंटों तक एक स्थान पर ध्यान लगाए बैठे देखे जा सकते हैं (फ़ोटो: प्रवीण)
मवेशी बगुला अपने भोजन के रुप में सर्वाधिक कीड़े-मकोड़ों को खाता है, लेकिन नदी, तालाबों और झीलों के आस पास केंचुआ, मेंढक, मछलियां भी खा सकता है। इस बगुले को ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में मवेशी जानवरों के साथ उनके शरीर से टिक (चिचड़े), जो मवेशियों में बाह्य परजीवी के रूप में चिपके रहते है और उनके शरीर से रक्त चूसते रहते हैं, को छुड़ाकर खाते हुए देखना आम दृश्य है।
मवेशी बगुले को सामान्यत: मवेशियों के साथ खेत खलिहानो और चरागाह में अधिक देखा जाता है इसी लिए इसे मवेशी बगुला नाम दिया गया है। (फ़ोटो: सोनू कुमार)
मवेशी बगुले को आमतौर पर छोटे समूहों में खेतों या किसी अन्य प्रकार के चरागाह क्षेत्रों में भोजन तलाशते देखा जा सकता है। ये अवसरवादी शिकारी होते हैं, और आमतौर पर चरने वाले जानवरों या हकाई जुताई के दौरान ट्रैक्टर के आगे-पीछे दौड़ते रहते है। मवेशी बगुलो के लिए यहां कीड़ों की संख्या अत्यधिक होती है और उन्हें पकड़ना भी आसान होता हैं। सर्दियों और बारिश के मौसम में ये किड़ो की तलाश में तालाब और खेतों में अधिक देखे जाते है, लेकिन बसंत और गर्मी के मौसम में मवेशी बगुलो को शहरी क्षेत्रों के निकट खासतौर पर जहां बगीचे हो, वहां अधिक देखा जाता है।
गर्मी के मौसम में शहरों के आस पास आम के पेड़ों में अच्छी मात्रा में फूल लगते है और इन फूलों की और कीड़े आकर्षित होते है। कीड़ों का इन फूलों पर मंडराने का मुख्य उद्देश्य उनका रस चूसना होता है। एक आम के पेड़ पर हजारों की संख्या में कीड़े या मक्खियां भिनभिनाती रहती है जो मवेशी बगुलो को अपनी ओर आकर्षित करते है।
कीड़ों का इन फूलों पर मंडराने का मुख्य उद्देश्य उनका रस चूसना होता है (फ़ोटो: लीलाधर सुमन, सोनू कुमार)
आम के पेड़ पर कुल लगना फरवरी माह मे शुरू हो जाते है और अप्रैल तक रहते है। आम के पेड़ पर फूलों के गुच्छों को ‘बौर या मौर’ कहा जाता हैं। जब आम के पेड़ो पर पूरी तरह से पुष्पन शुरू हो जाता है तो पूरा पेड़ पीला दिखाई देने लगता है। इसे आम के पेड़ो का “बौरना” भी कहा जाता है। इन गुच्छों में अधिकांश फूल नर होते है, बाकी के कुल उभ्यलिंगी होते है। आगे चलकर उभ्यलिंगी फूलों से ही फल बनते हैं।
आम के पुष्प कीट-पतंगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और ये कीट पतंग फूलों का रस चुसने के साथ साथ पराग स्थानांतरण का भी कार्य करते हैं (फ़ोटो: लीलाधर सुमन, सोनू कुमार)
हमें आम के पेड़ों पर असंख्य पुष्पगुच्छ नजर आते है इन गुच्छों में पीले व नारंगी रंग की धारियों वाले पुष्प लगे होते है जो कीट-पतंगों को अपनी ओर आकर्षित करते है। और ये कीट पतंग फूलों का रस चुसने के साथ साथ पराग स्थानांतरण का भी कार्य करते है इसलिए आम के पेड़ों को सामान्यतः कीट-परागित माना जाता है। लेकिन आम में स्व-परागण भी संभव हैं।
ये बगुले आम के इन पेड़ों पर छोटे छोटे झुण्ड बना कर बैठ जाते है और आम के फूलों का रस चुसने आए इन कीड़ों को खाते रहते हैं। इन कीड़ों को बगुले अपना भोजन बना कर कुछ सीमा तक जैविक कीट नियंत्रण का भी कार्य करते है। (फ़ोटो: लीलाधर सुमन, सोनू कुमार)
सामान्यत: आम के पेड़ों पर इन बगुलो को सुबह व शाम को हल्की धूप में कीड़ों को अधिक खाते देखा जाता है। इस समय आम के पेड़ों पर फूलों और पत्तियों पीला हरा रंग बगुलो के सफेद रंग के नीचे दब सा जाता है। (फ़ोटो: लीलाधर सुमन, सोनू कुमार)
Portia spiders are small jumping spiders that belong to the Salticidae family. They are among the most intelligent arthropods because they hunt other hunters. This is possible because Portia spiders are skilled at creating and executing complex hunting strategies. While some spiders wait for prey in their silk webs, Portia spiders are active hunters. They stalk their prey and then pounce on them.
It has been observed that when this spider needs to kill another spider that builds webs, it tricks it by creating vibrations that mimic the struggles of trapped prey. The web-building spider thinks that something is caught in its web and comes out to investigate, giving Portia the opportunity to attack. Moreover, Portia spiders are known to exhibit social behaviors, which is not common among Salticidae spider species. I encountered this spider at Sawai Madhopur (Rajasthan).
Portia spiders are active hunters. They stalk their prey and then pounce on them.
पोर्टिया मकड़ियाँ एक छोटी जंपिंग स्पाइडर है। जो साल्टिसिडे परिवार से संबंधित हैं। ये मकड़ी सबसे बुद्धिमान आर्थ्रोपॉड में से एक हैं। क्योंकि पोर्टिया मकड़ियाँ शिकारी का शिकारी करती हैं। वह तभी संभव है जब आप जटिल शिकार रणनीतियों की योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने माहिर हो। कुछ मकड़ियां अपने रेशम का जाला बनाकर इंतज़ार करती है, परंतु यह पोर्टिया मकड़ियाँ सक्रिय शिकारी होती हैं जो अपने शिकार का पीछा करती हैं और उस पर झपट्टा मारती हैं। देखा गया है की जब इस मकड़ी को एक जाला बनाने वाली मकड़ी मारनी होती है, तो वह उसे झांसा देकर अपने पास बुलाती है। यह उसके जाले में अपनी पतली टांगों से एक कंपन पैदा करती है, यह जाले वाली मकड़ी को लगता है कोई कीट उसके जाले में फंसा है।जाले वाली मकड़ी छिपे स्थान से बाहर आती है और फिर यह उस पर हमला कर देती है। इसके अलावा पोर्टिया प्रजातियाँ सामाजिक व्यवहार प्रदर्शित करने के लिए जानी जाती हैं जो आमतौर पर इन साल्टिसिडे मकड़ियों में नहीं देखी जाती हैं। यह मकड़ी मुझे सवाई माधोपुर (राजस्थान) में देखने को मिली।
सबसे बुद्धिमान आर्थ्रोपॉड में से एक मकड़ी (फोटो: धर्मेन्द्र खांडल)
पोर्टिया मकड़ियाँ सक्रिय शिकारी होती हैं जो अपने शिकार का पीछा करती हैं और उस पर झपट्टा मारती हैं (फोटो: प्रवीण)
राजस्थान एक सूखा क्षेत्र है परन्तु कुछ सुंदर दिखने वाले नम क्षेत्रों के अनोखे पौधे भी यदा कदा इधर उधर मिल जाते है। इसी तरह का एक खूबसूरत ऑर्किड – ईस्टर्न मार्श हेलेबोरिन (एपिपैक्टिस वेराट्रिफ़ोलिया- Epipactis veratrifolia) राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में मिलता है। इस के अलावा राजस्थान में यह कहीं और से अभी तक देखा नहीं गया है। इस तरह के पौधे कैसे अपने लायक उपयुक्त स्थान तलाश लेते है एक शोध का विषय है । यद्यपि यह पूरे भारत में कई अन्य स्थानों पर पाया जाता है। यह एक स्थलीय आर्किड है।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में पाए जाने वाला ईस्टर्न मार्श हेलेबोरिन (Epipactis veratrifolia)
परन्तु इस ऑर्किड के परागण की प्रक्रिया अत्यंत रोचक है – यह होवरफ्लाइज़ नामक कीट को धोखा देकर परागण प्रक्रिया को संपादित करता है। होवरफ्लाइज़ एक छोटी मक्खी नुमा कीट है जो फूलों के आस पास मंडराते है। यह आर्किड इसके लिए एक रणनीति का उपयोग करते है जो अत्यंत जटिल है, यह एक अन्य कीट एफिड के अलार्म फेरोमोन की नकल करते हुए गंध को छोड़ते है। यानी ऐसी गंध जो एफिड खतरे के समय छोड़ता है।
होवरफ्लाइज़, अपने लार्वा के लिए एफिड्स को भोजन के रूप में पसंद करते है। चूँकि यह ऑर्किड भी एफिड द्वारा छोड़ी गई अलार्म गंध के समान ही गंध छोड़ता है, तो मादा होवरफ्लाइज़ को आभास होता है की, कोई एफिड समूह ऑर्किड के फूल के पास है, और यह होवरफ्लाईस उस ओर आकर्षित होती हैं।
होवरफ्लाइज़ अनजाने में अपने अंडे इस ओर्किड के फूल को एफिड समझ कर फूल पर ही जमा कर देते हैं
ये होवरफ्लाइज़ अनजाने में अपने अंडे एफिड समझ कर इस आर्किड के फूल पर ही जमा कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अंडे से निकले उनके लार्वा का भूख से दुखद अंत होता है। हालांकि यह विश्वासघात न केवल होवरफ्लाइज़ के लिए जोखिम पैदा करता है बल्कि आर्किड के पौधे को भी खतरे में डालता है यदि वे अपने स्वयं के परागणकर्ताओं को ही मार देते हैं।
फिर ऐसा क्यों होता है ?
दिलचस्प बात यह है कि शोधकर्ताओं ने देखा है कि यह पौधा एफिड्स से मुक्त रहता है। नतीजतन, वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि ऑर्किड एक ऐसी गंध का उत्सर्जन करता है जो एफिड्स को उनसे दूर रखता है, अनजाने में स्वयं होवरफ्लाइज़ को धोखा देता है। अतः इसका पहला उद्देश्य है एफिड को दूर रखना और दूसरा स्वार्थ परागण करवाना अपने आप सिद्ध हो जाता है।
शायद आपने इतने कलिष्ट परागण प्रक्रिया को कभी नहीं सुना हो।
स्मूद कोटेड ओटर (Lutrogale perspicillata), एशिया में पाए जाने वाला सबसे बड़ा ऊदबिलाव है जो नदी के स्वच्छ जल में निवास करते हैं। वहीँ दूसरी ओर मग्गर क्रोकोडाइल (Crocodylus palustris) जिसे मग्गर और मार्श क्रोकोडाइल के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप में मीठे पानी के आवासों का मूल निवासी है, जहां यह दलदल, झीलों, नदियों और कृत्रिम तालाबों में रहता है। राजस्थान में चम्बल नदी में इन दोनों ही जीवों की एक अच्छी आबादी पायी जाती है।
मछलियां खाने वाले ऊदबिलाव की तुलना में देखें तो मगरमच्छ निसंदेह एक खतरनाक शिकारी होता है परन्तु फिर भी मगरमच्छ संग इन ऊदबिलाव का व्यवहार बड़ा ही अजीब व दिलचस्प है। जिसे इस चित्र कथा में दर्शाया गया है तथा इस घटना को चम्बल नदी (कोटा) के किनारे पर शरद ऋतू की एक सुबह 11 बजे के आसपास दर्ज किया गया है।
सुबह की नर्म धुप में जब सभी मगरमच्छ पानी के आसपास चट्टानों पर लेटे हुए धुप सेक (Basking) रहे होते हैं उसी समय ऊदबिलाव भी धुप में यहाँ वहां घूमते व खेलते हैं।
और इसी बीच ये सभी ऊदबिलाव जानबूझ कर इन मगरमच्छों के आसपास घूमते हैं। कुछ ऊदबिलाव मुँह की तरफ तो कुछ पूँछ की तरफ खड़े हो जाते हैं और बारी बारी के मगरमछ को छूते हैं। जैसे ही मगरमच्छ आक्रामक होते है तो ऊदबिलाव तुरंत दूर भाग जाते हैं। ये सिलसिला यूँ ही चलता रहता है।
उदबिलावों के इस व्यवहार से कुछ छोटे मगरमच्छ तो जल्दी ही पानी में वापिस लौट जाते हैं तो कुछ पानी से काफी दूर चले जाते हैं।
उदबिलावों का यह व्यवहार कुछ अजीब सा ही है क्योंकि मगरमच्छ उनके लिए खतरनाक हो सकते है तथा एक झटके में उनको मार सकते हैं परन्तु फिर भी ये ऐसे खतरनाक शिकारी के आसपास घूम उसे परेशान करते हैं।
आखिर ये क्या है ? क्या ये मोब्बिंग है या फिर सिर्फ एक खेलने का तरीका ?
वन्यजीव जगत में भोजन/शिकार की चोरी एक आम बात है और ऐसी चोरियों के दौरान कई बार शिकारी और चोर के बीच संघर्ष भी देखने को मिलते है। परन्तु कई बार कुछ जीव बड़े ही साहसी तरीके से चोरी करते हैं। ऐसी ही एक घटना इस चित्र कथा में दर्शाई गई है।
एक शाम एक नेवला (Indian grey mongoose (Urva edwardsii) घास में आसपास कुछ तलाश रहा था मानो अपना पेट भरने के लिए वो कुछ छोटे कीड़े और चूहों की तलाश में था। लेकिन तभी अचानक नेवला लकड़ी के एक बड़े लट्ठे की ओर चला गया और पेड़ के तने के नीचे से एक कोबरा (Indian cobra (Naja naja) निकला और उसने अपना फन खोलकर इस बात का संकेत दिया जैसे वह लड़ने के लिए तैयार है। लेकिन नेवला कोबरा को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए उसके सामने लट्ठे के नीचे चला गया।
कुछ पल बाद नेवला लट्ठे की दूसरी तरफ दिखाई देता है और उसके मुंह में आधा मरा हुआ ट्रिंकेट (Trinket snake (Coelognathus helena) सांप था।
दरअसल उस ट्रिंकेट का शिकार कोबरा ने किया था और वह अपनी आखिरी सांस ले रहा था। परन्तु नेवले ने उसे पूरी तरह जान से मारा और फिर अपने जबड़े में दबा कर कोबरा की आँखों के सामने से चुरा कर ले गया।
इस प्रकार का व्यवहार एक जीव अपना समय और मेहनत बचाने के लिए करते हैं।