“टाइगर वॉच द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण में, पार्वती नदी में घड़ियालों की एक आबादी की खोज के साथ ही यह पुष्टि की गयी है की पार्वती नदी घड़ियालों के लिए एक नया उपयुक्त आवास है।”
घड़ियाल, जो कभी गंगा की सभी सहायक नदियों में पाए जाते थे, समय के साथ मानवीय हस्तक्षेपों और लगातार बढ़ते जल प्रदुषण के कारण गंगा से विलुप्त हो गए, तथा आज यह केवल चम्बल तक ही सिमित है। वर्तमान में चम्बल नदी में 600 व्यस्क घड़ियाल ही मौजूद है तथा यह अपने आवास के केवल 2 प्रतिशत भाग में ही सिमित हैं, जबकि सन् 1940 में घड़ियाल कि आबादी 5000-10000 थी। पृथ्वी पर जीवित मगरमच्छों में से सबसे लम्बे मगरमच्छ “घड़ियाल” केवल भारतीय उपमहाद्वीप पर ही पाए जाते है। एक समय था जब घड़ियाल भारतीय उपमहाद्वीप कि लगभग सभी नदियों में पाये जाते थे परंतु आज यह केवल चम्बल नदी में ही मिलते हैं। सन् 1974 में इनकी आबादी में 98 प्रतिशत गिरावट देखते हुए वैज्ञानिकों द्वारा इसे विलुप्तता के करीब माना जाने लगा तथा IUCN कि लाल सूची (red list) में इनको घोर-संकटग्रस्त (Critically Endangered) श्रेणी में शामिल किया गया। स्थिति को देखते हुए सरकार व वैज्ञानिकों ने एक साथ इसके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाये और घड़ियालों के फलने-फूलने के लिए विशेष स्थान उपलब्ध कराने हेतु नए अभयारण्यों की स्थापना की गई। राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (NCS) भारत का पहला और एकमात्र संरक्षित क्षेत्र हैं जो तीन राज्यों में फैला हुआ है तथा मुख्यरूप से मगरमच्छ प्रजाति के संरक्षण के लिए बनाया गया है। आज, चंबल अभयारण्य में गंभीर रूप से लुप्तप्राय घड़ियाल (Gavialis gangeticus) की सबसे बड़ी और विकासक्षम प्रजनन आबादी पायी जाती है। चम्बल नदी की तीन मुख्य सहायक नदियाँ हैं; पार्वती, कालीसिंध व बनास नदी, तथा पार्वती-चम्बल संगम से लेकर 60 किमी तक पार्वती नदी संरक्षित क्षेत्र में शामिल है, परन्तु अन्य दो नदियाँ NCS के बाहर हैं। प्रतिवर्ष चम्बल नदी में घड़ियालों की आबादी के लिए सर्वेक्षण किये जाते हैं तथा हर प्रकार की गतिविधि पर नज़र रखी जाती है, परन्तु इसकी सहायक नदियों में इनकी मौजूदगी व स्थिति का कोई दस्तावेजीकरण नहीं है।
वैज्ञानिकों और प्रकृतिवादियों के लिए बहुत ही ख़ुशी की बात यह है की हाल ही में हुए एक अध्ययन से घड़ियालों की एक बड़ी आबादी की उपस्थिति पार्वती व बनास नदी तथा इनके प्रजनन की पुष्टि पार्वती नदी से की गई है। यह अध्ययन रणथम्भौर स्थित टाइगर वॉच संस्था द्वारा रणथम्भौर के भूतपूर्व फील्ड डायरेक्टर श्री वाई.के साहू के दिशा निर्देशों में वर्ष 2015 से 2017 तक किया गया तथा इसकी रिपोर्ट 17 जनवरी को आईयूसीएन पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। इस अध्ययन के लिए प्रेरणा तब मिली जब वर्ष 2014 में एक घड़ियाल को रणथम्भौर वन विभाग द्वारा बनास नदी से बचाया गया था। इस अध्ययन के अंतर्गत वर्ष 2015 से 2017 तक प्रतिवर्ष सभी तीन सहायक नदियों पर सर्वेक्षण किये गए, ताकि घड़ियाल व मगरमच्छों की उपस्थिति के लिए प्रत्येक सहायक नदी की क्षमता का आकलन किया जा सके। वर्ष 2015 व 2016 में फरवरी माह में सर्वेक्षण किए गए तथा वर्ष 2017 में प्रजनन आबादी की मौजूदगी जानने के लिए जून माह में भी सर्वेक्षण किए गए। प्रत्येक सहायक नदी के बहाव क्षेत्र (पार्वती 67 किमी, काली सिंध 24 किमी, बनास 53 किमी) का सर्वेक्षण किया गया, तथा नदी के किनारे पर सभी प्रकार की मानवीय गतिविधियों को भी दर्ज किया गया।
इस अध्ययन द्वारा यह पता चला की पार्वती नदी में घड़ियालों की एक अच्छी आबादी और बनास नदी में कुछ पृथक घड़ियाल उपस्थिति है, जबकि कालीसिंध नदी में केवल मगर ही पाए जाते हैं।
पार्वती नदी का सर्वेक्षण:
पार्वती नदी में वर्ष 2015 में 14 और 2016 में 29 वयस्क घड़ियाल दर्ज किये गए, तथा सर्वेक्षण के दौरान एक नर घड़ियाल भी पाया गया, जिसके कारण वर्ष 2017 में सर्वेक्षण प्रजनन के समय यानी जून माह में किया और इस वर्ष कुल 48 वयस्क और 203 घड़ियाल के छोटे बच्चे पाए गए। पार्वती नदी (~ लंबाई में 159 किमी) मध्य प्रदेश में विंध्य पहाड़ियों की उत्तरी ढलानों से निकलती है और यह बारां जिले के चतरपुरा गाँव के पास से राजस्थान में प्रवेश करती है, जहाँ यह मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच 18 किलोमीटर की सीमा बनाती है। फिर बहती हुए यह नदी कोटा जिले के पाली गांव के पास चम्बल नदी में मिल जाती है। यह एक सतत बहने वाली नदी है जिसके किनारे रेत, चट्टानों और शिलाखंडों से युक्त होने के कारण अपने आप में ही एक अद्वितीय पारिस्थितिक तंत्र है।
बनास नदी का सर्वेक्षण:
अध्ययन के दौरान बनास नदी में वर्ष 2015 में 1 और 2016 में केवल 5 घड़ियाल ही पाए गए। यह घड़ियाल के कोई स्थायी आबादी नहीं थे, बल्कि वर्षा ऋतु में नदी में पानी बढ़ जाने की वजह से चम्बल नदी से बह कर इधर आ जाते हैं और नदी में पानी कम हो जाने के समय ये कुछ छोटे इलाके जहाँ पानी हो वही मुख्य आबादी से दूर पृथक रह जाते है। बनास नदी (~ 512 किमी) की उत्पत्ति राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ से लगभग 5 किलोमीटर दूर अरावली की खमनोर पहाड़ियों से होती है। यह राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र से उत्तर-पूर्व की ओर बहती है, और सवाई माधोपुर जिले के रामेश्वर गाँव के पास चम्बल में मिल जाती है। इस नदी पर वर्ष 1999 में बीसलपुर बांध के निर्माण के बाद यह सूख गई तथा यह केवल तब ही बहती है जब वर्षा ऋतु में बाँध से अधिशेष पानी निकाला जाता है, और अन्य समय इसके कुछ गहरे कुंडों में ही पानी बचता है, तथा इन कुंडों का आपस में बहुत कम या कोई प्रवाह नहीं होता है।
कालीसिंध नदी का सर्वेक्षण:
अध्ययन के दौरान इस नदी में कोई घड़ियाल नहीं मिला परन्तु इस नदी में मगरों की उपस्थिति पायी गयी। काली सिंध नदी (~ 145 किमी) मध्य प्रदेश के बागली (जिला देवास) से निकलती है और अहु, निवाज और परवन इसकी सहायक छोटी नदियां हैं। यह नदी राजस्थान में प्रवेश कर बारां और झालावाड़ जिलों से होकर उत्तर की ओर बहती है तथा कोटा जिले के निचले हिस्से में चम्बल में मिल जाती है। इस नदी के किनारे मुख्यरूप से सूखे, मोटी रेत, कंकड़-पत्थर और चट्टानों से भरे हुए हैं, परिणाम स्वरूप इसके किनारे कठोर, चट्टानी और बंजर हैं।
पार्वती नदी का 60 किमी का हिस्सा राष्ट्रीय चम्बल घड़ियाल अभयारण्य के अंतर्गत संरक्षित है। पहले, इस हिस्से का घड़ियालों द्वारा इस्तेमाल किये जाने के कोई रेकॉर्ड नहीं थे, परन्तु इस अध्ययन ने दृढ़ता से यह स्थापित किया है की पार्वती नदी का यह संरक्षित खंड चम्बल घड़ियाल अभयारण्य के भीतर घड़ियाल आवास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि घड़ियालों की एक आबादी इस हिस्से का घोंसले बनाने, प्रजनन, छोटे घड़ियालों के लिए उत्तम पर्यावास है। इसके विपरीत, सर्वेक्षण की गई अन्य दो नदियाँ बनास और कालीसिंध घड़ियाल के आवास के लिए बिलकुल भी उपयुक्त नहीं हैं। जहाँ एक तरफ बनास नदी पर बने बीसलपुर बाँध के कारण नदी कुछ छोटे गहरे खंडित कुंडों में बदल दिया है, और नदी केवल मानसून के दौरान बहती है जब बांध के द्वार खुले होते हैं। इस दौरान कभी-कभी, कुछ घड़ियाल चम्बल से बहकर इधर आ जाते है और पानी का स्तर कम होने पर इन्हींखंडों में फँसकर रह जाते हैं। वही दूसरी ओर कालीसिंध नदी मुख्यतः चट्टानी हैं, जिसमें रेतीले क्षेत्र बहुत ही कम हैं। चम्बल अभयारण्य की सीमा के बहार होने और किसी भी प्रकार का संरक्षण नहीं होने के कारण इस नदी के आसपास मानवीय हस्तक्षेप व् दबाव बहुत अधिक है।
मौसमी रूप से कम पानी की अवधि के दौरान, पार्वती और काली सिंध नदियाँ चंबल के लिए पानी का प्राथमिक स्रोत हैं। तीन बड़े बाँध (गांधी सागर, जवाहर सागर, और राणा प्रताप सागर) और कोटा बैराज ने चम्बल की मुख्यधारा में पानी के बहाव को गंभीर रूप से सीमित कर दिया है, जिसके कारण शुष्क मौसम के दौरान जल निर्वहन लगभग शून्य होता है। इस प्रकार पार्वती नदी न सिर्फ चम्बल के लिए प्रमुख जल स्रोत के रूप में अपनी भूमिका निभाती है बल्कि पार्वती नदी के निचले हिस्से घड़ियाल के लिए उपयुक्त अन्य आवास भी प्रदान करती हैं।
घड़ियाल पर्याप्त रेत के साथ स्वच्छ व् तेजी से बहने वाली नदियों को पसंद करते हैं, और उसमें भी विशेष रूप से गहरे पानी वाले स्थान इन्हें ज्यादा पसंद होता है। हाल ही में हुए कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि घड़ियाल मौसमी लम्बी दूरी की यात्रा भी करते हैं, जहाँ यह मानसून में अच्छा भोजन उपलब्ध करवाने वाले प्रमुख संगमों के आसपास रहते हैं तो वहीं मानसून के बाद, सर्दियों, और मानसून के पहले यह अपने प्रजनन व् घोंसला बनाने वाले स्थानों पर चले जाते हैं। मादा घड़ियाल विशेष रूप से रेतीले हिस्सों पर स्थित उपनिवेशों में घोंसला बनाना पसंद करते हैं जो गहरे पानी से सटे हुए हो तथा वहां रेत की मात्रा भी ज्यादा हो। यह भी देखा गया है की घड़ियालों का पसंदीदा क्षेत्र दशकों तक एक ही रहता है परन्तु नदी की स्थानीय स्थलाकृतियों में आने वाले बदलाव के आधार पर यह थोड़ा बहुत बदलते भी रहते हैं। लोगों द्वारा पारंपरिक नदी गतिविधियां घड़ियाल को नदी के आस-पास के आवासों का उपयोग करने से नहीं रोकती हैं, लेकिन घड़ियाल आमतौर पर उन क्षेत्रों में रहने से अक्सर बचते है जहाँ रेत खनन और मछली पकड़ने का कार्य किया जाता है। नदियों में जुड़ाव होना भी बहुत ही आवश्यक है क्योंकि यह घड़ियाल को प्रजनन और घोंसले बनाने के लिए अपनी जगह बदलने के लिए सक्षम बनाता है।
यह अध्ययन न केवल चम्बल अभयारण्य के अपस्ट्रीम खंडों के उपयुक्त घड़ियाल आवास और महत्वपूर्ण जल स्रोत के रूप में महत्व पर प्रकाश डालता है, बल्कि पार्वती सर्वेक्षणों से प्रजनन, वयस्कों और घड़ियालों के घोंसलों की पुष्टि भी करता हैं। परन्तु अध्ययन में इन नदियों के आसपास कई मानवीय गतिविधियां जैसे जल प्रदूषण, मछली पकड़ना, नदी के पानी की निकासी, रेत खनन आदि दर्ज की गई जो इन घड़ियालों और मगरों के अस्तित्व को खतरे में डालती हैं। नदियों में पानी कम होने, मछलियों के कम होने के कारण और कई बार मछलियों के जाल में फंस जाने के कारण भी इनकी संख्या कम हो गई है। इन गतिविधियों के साथ-साथ कई बार मानव-घड़ियाल संघर्ष भी इनके लिए बड़ा खतरा बनजाता है, ऐसा वर्ष 2016 में बनास नदी के पास हुआ था जब कुछ लोगों ने एक नर घड़ियाल की दोनों आँखें फोड़ दी और उसके मुंह के ऊपर वाला जबड़ा भी तोड़ दिया।
आज हम देखे तो सभी मानवीय गतिविधियां (जल प्रदूषण, मछली पकड़ना, नदी के पानी की निकासी, रेत खनन आदि) अभ्यारण्य के पुरे पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर घड़ियालों तथा अन्य जीवों के अस्तित्व को एक बड़े खतरे में डालती हैं और इसीलिए वर्तमान में आवश्यकता है स्थानीय लोगों को जागरूक किया जाए तथा अभ्यारण्य के आसपास अवैध मानवीय गतिविधियों को नियंत्रित किया जाये।
सन्दर्भ:
- Khandal, D., Sahu, Y.K., Dhakad, M., Shukla, A., Katdare, S. and Lang, J.W. 2017. Gharial and mugger in upstream tributaries of the Chambal river, North India. Crocodile Specialist Group Newsletter 36(4): 11.16
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