यह मार्मिक आलेख ऑसप्रे प्रजाति के पक्षी पर हुई शोध से सम्बंधित है, इस अध्ययन  ने जहाँ कई सवालों के जवाब दिए हैं, वहीँ कई नए सवाल हमारे सामने खड़े कर दिए हैं।

हसीना एक मच्छीमार शिकारी पक्षी है, जो सुदूर रूस के साइबेरिया प्रान्त में रहती है, यह ऑसप्रे Osprey (Pandion haliaetus) प्रजाति के शिकारी पक्षी की एक मादा है। असल में रूस में  इसका नाम है, उसीना है, जिसे भारत में हसीना नाम दे दिया गया है। भारत से इस ऑसप्रे का एक गहरा नाता है, यह हर बार जब साइबेरिया में सर्दी अधिक बढ़ जाती है, और पानी के तालाब और नदियों में बर्फ जम जाती है, इनको मछलिया मिलना अत्यंत मुश्किल हो जाता है, क्योंकि यह आकाश से पानी में नजर रखते हुए नदी अिध पर उड़ते है और एक गोता लगाते हुए और तैरती हुई मछली को अपने मजबूत पंजो से पकड़ कर ले उड़ते हैं। अपने घर को छोड़ लगभग 5000 कम उड़कर भारत में प्रवास पर आते है।

राजस्थान के भिंडर नामक कस्बे में हसीना (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)

वर्ष 2019 में, कुछ पक्षीविदो ने रूस स्थित सयानो-शुशेन्स्की स्टेट नेचर रिज़र्व में रहने वाले एक ऑसप्रे के एक जोड़े पर सैटलाइट टैगस लगाए। इसमें एक थी उसीना जिसे हम हसीना के नाम से जानते है, दूसरा नर ऑसप्रे था शेर्जिक। इसका टैगिंग का मकसद यह था के रूस के अल्ताई-सायन नामक क्षेत्र में किस वजह से ऑसप्रे की संख्या में निरंतर गिरावट हो रही है। जबकि यह रूस का एक दुरस्त एवं मानवीय दबावों से दूर वन क्षेत्र है।  फिर ऐसे क्या कारन है की इनकी संख्या में गिरावट आरही है।

नर ऑसप्रे “शेर्जिक” को टैगिंग करते विशेषज्ञ।

यह टैगिंग का कार्यक्रम रूस के प्रमुख पक्षीविद डॉ मिरोस्लाव बाबुश्किन,  डॉ इगोर कार्याकिं, एलविरा निकोलेंको, एलेना  शिकलोवा , उरमस सेल्लीस एवं गुन्नार सेइन ने सम्पादित किया था।  इस कार्यक्रम को वित्तीय सहारा जान करनेर नामक एक उदार व्यक्ति ने दिया।

मादा ऑसप्रे हसीना।

मादा ऑसप्रे हसीना ने अपनी यात्रा 14 सितम्बर 2019 को शुरू किया वहीँ नर ऑसप्रे लगभग 2 सप्ताह बाद 28 सितम्बर 2019 को भारत की ओर अपनी उड़ान भरता है। सैटलाइट से प्राप्त हुए डाटा के अनुसार यह पक्षी प्रतिदिन 300 से 400  किलोमीटर उड़कर 15 -16  दिनों में 3500  किलोमीटर (मादा) – 5000 किलोमीटर (नर)  यात्रा कर भारत आ गए।

हसीना और शेर्जिक द्वारा तय की गयी दुरी।

नर ऑसप्रे शेर्जिक भारत के दक्षिण हिस्से कर्नाटक चला गया परन्तु मादा ऑसप्रे हसीना राजस्थान के भिंडर नामक कस्बे में ही ठहर गयी। भिंडर दक्षिण राजस्थान का एक छोटा सा क़स्बा है। यहाँ तीन बड़े नालों को रोक कर, उन्हें लम्बे तालाबों में तब्दील कर दिया गया है। यह तालाब कस्बे के एक दम नजदीक है एवं मादा ऑसप्रे हसीना इन तीनो तालाबों में पुरे दिन कई बार विचरण करती है।

दुर्भाग्यवश नर शेर्जिक कर्नाटक राज्य के इलकल कस्बे के पास एक बिजली के टॉवर के नजदीक जाकर गायब हो गया और वहां से उसकी उपस्थिति के संकेत मिलने बंद हो गये। रूस से डॉ. इगोर कार्याकिं एवं एलविरा निकोलेंको दोनों भारत आये एवं उस स्थान पर पहुंचे जहाँ से शेर्जिक के अंतिम संकेत मिले थे। परन्तु उन्हें उस बिजली के टॉवर के पास नर ऑसप्रे शेर्जिक के पंखो के कुछ अवशेष ही मिले, इसके अलावा शायद बाकि हिस्सा कोई प्राणी वहां से उठा करउसे खाने के लिए ले गया। यह एक अत्यंत दुखद अंत था एक साथी नर ऑसप्रे का एवं साथ ही यह जवाब था इस रिसर्च का की ऑसप्रे की संख्या में गिरावट क्यों आ रही है।

नर ऑसप्रे शेर्जिक कर्नाटक राज्य के इलकल कस्बे के पास एक बिजली के टॉवर के नजदीक जाकर गायब हो गया।

हसीना का हाल जानने के लिए मैं श्री नीरव भट्ट के सुझाव पर नवंबर 2019 में भिंडर कस्बे में गया एवं हसीना को देखा। श्री भट्ट गुजरात राज्य के एक जाने माने पक्षीविद हैं जिनकी शोध का मुख्य विषय शिकारी पक्षी हैं। उस सुबह मादा ऑसप्रे हसीना एक गर्ल्स स्कूल के पास स्थित तालाब में लगे बिजली के खम्बे पर बैठी थी। कुछ फोटोग्राफ लेने के बाद में खुस था की हसीना सुरक्षित है। लेकिन उस समय, वह अनजान थी की उसका साथी शेर्जिक अब इस दुनिया में नहीं रहा है। मैं हसीना की जीविषा पर अचंभित था और एक विचार मेरे मन में आया की लेकिन सर्दी का पूरा मौसम बिता कर हसीना भारत से जब पुनः रूस जाएगी, परन्तु इस बार उसके लिए शेर्जिक का इंतजार ही रहेगा। इसी तरह ना जाने कितने ऑसप्रे भारत हज़ारों किलोमीटर दूर भारत कितनी आशाओं के साथ आते जाते हैं और यदि हम इनके आवासों को सुरक्षित नहीं बना पाए तो यह इन परिंदो का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।

राजस्थान के भिंडर नामक कस्बे में हसीना (फोटो: डॉ. धर्मेंद्र खांडल)

हसीना 22 अप्रैल 2020 की शाम को पुनः रूस स्थित सयानो-शुशेन्स्की स्टेट नेचर रिज़र्व पहुँच गयी। इस तरह हसीना 222 दिन तक ब्रीडिंग क्षेत्र से दूर रही। ध्यान देने वाली बात यह है की, हसीना ने रूस के ब्रीडिंग क्षेत्र में मात्र 143 दिन गुजारे एवं इस से दूर 222 दिन। साथ ही यदि हसीना ने मानो 30 दिन आने और जाने में गुजारे तो राजस्थान के भिंडर में 192 दिन गुजारे है। रूस से लगभग 2 महीने भारत में अधिक रहना शायद यह तय करता है, की वह रूस के लिए एक प्रवासी पक्षी है ओर हमारे लिए एक स्थानीय पक्षी जो मात्र ब्रीडिंग के लिए रूस जाता है। इसलिए हसीना हमारी है।

रूस में हसीना का ब्रीडिंग क्षेत्र।

 

रूस में हसीना का घोंसला।

खैर इस बार हसीना फिर भिंडर कस्बे में है, और उन्ही तालाबों में फिर विचरण कर रही है, परन्तु न जाने कब तक  हम इन तालाबों को सुरक्षित रख पाएंगे। और चूँकि हसीना हमारी है, इसलिए हमें इसकी सुरक्षा के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे और इन परिंदो की जिम्मेद्दारी लेनी होगी।

 

Dr. Dharmendra Khandal is working as a conservation biologist with Tiger Watch - an organisation based in Ranthambhore, for two decades. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.