गुलाब रोजेसी कुल के रोज़ा वंश (Rosa Genus) की एक जानी पहचानी झाडी है। यूँ तो सार्वजनिक उद्यानों से लेकर लोगों  के घरों तक में तरह – तरह के गुलाब लगे मिल जायेंगे लेकिन राज्य में केवल माउन्ट आबू में ही जंगली गुलाब उगे मिलते हैं। जंगली अवस्था में ये गुलाब आबू पर्वत के उपरी ठंडे व अधिक नमी वाले भागो मे वन क्षेत्र, खेतों/उद्यानों  एवं प्लान्टेशनों की जैविक बाड़ में ’’हैज फ्लोरा’’ के रूप में उगते हैं। कुल मिलाकर यहाँ मुख्य रूप से गुलाब की तीन प्रजातियाँ उगती हैं। जिनकों रोजा ब्रुनोई (रोजा मस्काटा), रोजा मल्टीफ्लोरा तथा रोजा इन्वोल्यूक्रेटा (रोजा ल्येलाई, रोजा नोफिल्ला) नाम से जाना जाता है।

वैसे तो हर प्रजाति अपने में विशिष्ट है लेकिन जंगली गुलाब की रोजा इन्वोल्यूक्रेटा कुछ खास है क्योंकि राजस्थान की यह प्रजाति ’’रैड डेटा बुक’’ में दर्ज प्रजाति है। माउन्ट आबू क्षेत्र मे इसे कूजा गुलाब के नाम से जाना जाता है। इस प्रजाति को माउन्ट आबू क्षेत्र में ऊँचाई पर बहुत सी जगह देखा जा सकता है।

रोजा इन्वोल्यूक्रेटा की पहचान

यह एक झाडी स्वभाव का सीधा बढने वाला या दूसरी वनस्पतियों का सहारा लेकर खडा रहने वाला पौधा है। इसके काँटे सीधे होते हैं। इस गुलाब की पत्तीयाँ अन्य गुलाबों की तरह पिच्छकीय रूप से संयुक्त प्रकार की होती हैं तथा 3-4 जोडे पत्रकों सहित कुल 7-9 पत्रक एक पत्ती में पाये जाते हैं। पत्रकों के किनारे सूक्ष्म दांतेदार होते हैं। शाखाओं के शीर्ष पर अकेला एक फूल या कुछ ही संख्या में फूलों का गुच्छा पैदा होता है। फूलों का रंग सफेद या गुलाबी होता है। तीनों प्रजातियों को निम्न गुणों से पहचाना जा सकता है:

क्र.सं. विभेदक गुण रोजा ब्रुनोई रोजा मल्टीफ्लोरा रोजा इन्वोल्यूक्रेटा
1. पत्रकों की संख्या 5-9 5-9 7-9
2. काँटों के गुण हुक की तरह घुमावदार सीधे या लगभग सीधे सीधे
3. फूलों का रंग  सफेद सफेद या गुलाबी सफेद या गुलाबी
4. फूल लगने ढंग शाखाओं के शीर्ष पर बडे गुच्छों में शाखाओं के शीर्ष पर बडे गुच्छों में पिरामिडाकार रूप में शाखाओं के शीर्ष पर एक फूल या गिनी चुनी संख्या में छोटे गुच्छों में
5. फूलों की गंध भीनी-भीनी भीनी-भीनी भीनी-भीनी
6. पुष्पकाल सर्दी सर्दी कमोबेश पूरे साल
7. आवास  वन्य उद्यान व घर के अहाते वन्य

माउन्ट आबू पर उद्यानों व घरों मे रोजा इन्डिका नामक गुलाब भी सुन्दर फूलों हेतु उगाया जाता हैै लेकिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण रोजा इन्वोल्यूक्रेटा प्रजाति है। यह गुलाब बंगाल व नेपाल का मूल निवासी है जो हिमालय की तलहटी से लेकर उत्तरप्रदेश, बंगाल, कर्नाटक, गुजरात से लेकर म्यांमार तक फैला हुआ है। आजादी से पूर्व अंग्रेजों द्वारा आबू पर्वत में 1909 मे इस प्रजाति को उद्यानिकी पौधे के रूप में उगाना प्रारम्भ किया गया था। उद्यानों में कटाई – छंटाई कर फैंकी टहनियों एवं संभवतः बीजों द्वारा भी यह जंगल में जा पहुँचा एवं स्थापित होकर समय के साथ अपना प्राकृतिकरण कर लिया। आवास बर्बादी एवं आवास बदलाव के कारण यह प्रजाति संकट में घिर गई एवं आई. यू. सी. एन. द्वारा इसे रेड डेटा प्रजाति घोषित करना पड़ा।

इस प्रजाति को बचाने के लिये राजस्थान वन विभाग के वन वर्धन कार्यालय वन अनुसंधान केन्द्र बाँकी, सिसारमा, जिला उदयपुर में कटिंग रोपण से इसकी संख्या बढाने हेतु प्रयास किये गए। यह खुशी की बात है कि कटिंग रोपण द्वारा रोजा इन्वोल्यूक्रेटा की संख्या बढाने का प्रयोग सफल रहा। उदयपुर, गोगुन्दा, जरगा, कुम्भलगढ, गढबोर (चारभुजा) आदि उदयपुर एवं राजसमंद जिलों में ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ रोजा इनवोल्यूक्रेटा को पौधशालाओं में पनपाया जा सकता है तथा रोपण कर इस प्रजाति का जीनपूल भी बचाया जा सकता है। लेकिन सबसे अच्छा प्रयास यह रहेगा की वन्य अवस्था में उगने वाली गुलाबों को माउन्ट आबू क्षेत्र में ही बचाये रखने के प्रयास किये जायें क्योंकि यहाँ की जलवायु इनके लिये सर्वाधिक उपयुक्त है एवं वर्षों से ये यहाँ के पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा बन चुकी हैं।

माउन्ट आबू क्षेत्र मे विदेशी झाडी लेन्टाना का प्रसार, प्राकृतिक आवासों का विघटन तथा आग की घटनायें जंगली गुलाबों के बडे दुश्मन हैं। इन दोनों कारकोें को उचित प्रबन्धन द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। इसमे न केवल जंगली गुलाब बल्कि अनेक दूसरी प्रजातियों को भी संरक्षित करने में मदद मिलेगी।

गुलाब की कुछ किसमें राजस्थान में कृषि क्षेत्र में भी उगाई जाती हैं। जयपुर जिले के जमवारामगढ क्षेत्र में गंगानगरी गुलाब उगाया जाता है जिसके फूल जयपुर मंडी में बिकने आते हैं। उदयपुर जिले मे हल्दीघाटी क्षेत्र के आस-पास ’’चैतीया गुलाब’’ की खेती की जाती है। चैत्र माह में जब यहाँ खेेतों में गुलाब फूलता है तो नजारा ही कुछ और होता है। चैतीया गुलाब की पंखुडियों से गुलकंद बनाया जाता है जिससे किसानों को अच्छी आय मिलती है। लेकिन सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था न होने से हल्दीघाटी में गुलाब फूल उत्पादन घटता जा रहा है।

झीलों की नगरी उदयपुर शहर का ’’गुलाब बाग’’ या सज्जन निवास उद्यान भी अपने गुलाबों के कारण विख्यात है। यहाँ अनेक किस्मों के गुलाब रोपित किये गये हैं। इनके नाना रंगो  के फूलों को देखना हर किसी को आनंदित करता है।

An expert on Rajasthan Biodiversity. He retired as Assistant Conservator of Forests, with a Doctorate in the Biology of the Baya (weaver bird) and the diversity of Phulwari ki Nal Sanctuary. He has authored 650 research papers & popular articles and 12 books on nature.