इन पक्षियों का नाम माउंट आबू पर आबूएन्सिस रखा गया था
राजस्थान के माउंट आबू में अंग्रेजो का आना जाना लगा ही रहता था और उनमें से अनेक लोग प्राणी अथवा पेड़ पौधों के बारे में जानने के अत्यंत उत्सुक हुआ करते थे। ऐसे ही यहाँ आये दो अंग्रेजो ने दो पक्षियों की सब-स्पीशीज को खोजा और उन्हें माउंट आबू के नाम पर आबूएन्सिस रखा। जानते हैं कि, वे कौन से पक्षी थे और उनकी खोज कब और किसने की?
जब भी कोई वैज्ञानिक किसी प्राणी या पौधे को पहली बार खोजते हैं तो उन्हें वैज्ञानिक एक नाम देते हैं। यह वैज्ञानिक नाम दो शब्दो से बनता है – जीनस और स्पीशीज। कई बार स्पीशीज में छोटे अंतर देखने को मिलते हैं जो अक्सर भौगोलिक परिस्थिति के कारण आये थोड़े बदल जाते है और वैज्ञानिक उन्हें सब-स्पीशीज का दर्जा देते हैं।
निम्न दोनों पक्षियों की सब स्पीशीज का नाम आबू पर रखा गया है-
- Abu’s Tawny-bellied babbler (Dumetia albigularis abuensis)
- Abu’s Red-whiskered bulbul (Pycnonotus jocosus abuensis)
Abu’s Tawny-bellied Babbler के सिर के ऊपर का रंग कथई एवं गला सफ़ेद रंग का होता है जिस से यह एक टोपी पहने हुए लगती है। जबकि इनकी अन्य सब स्पीशीज के सिर का अग्र भाग ही मात्र कथई रंग का होता है। इनके व्यवहार को भारत में इस्तेमाल किये जाने वाले एक स्थानीय नाम से बखूबी समझा जा सकता है, तेलगु में इन्हे पंडीजित्ता कहा गया है जिसका मतलब होता है सूअर चिड़िया। क्योंकि यह पक्षी सूअर की भांति अपने चोंच से जमीन पर पत्ते एवं तिनके उठा कर उनके निचे कीड़े आदि खोजती रहती है।
माउंट आबू से यह पक्षी हर्बर्ट हास्टिंग्स हैरिंगटोन (Herbert Hastings Harington) नामक एक ब्रिटिश आर्मी अफसर ने खोजी। यह लखनऊ में पैदा हुए थे एवं 48 वर्ष की आयु में मेसोपोटामिया यानि इराक में, वहां की एक मिलिशिया द्वारा प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एक हमले में वर्ष 1916 में मारे गए इस पक्षी की खोज का विवरण वर्ष 1914 -15 में JBNHS में प्रकाशित हुआ था।
Abu’s Red-whiskered bulbul पक्षी जगत की मधुर आवाज में बोलने वाली एक सूंदर बुलबुल है कहते है इसकी आवाज में लगता है मानो यह बोल रही हो ”प्लीज टू मीट यू (please to meet you) ” आप खुद सुने https://www.youtube.com/watch?v=5BFPU1hah-M । शायद इसीलिए करोलस लिंनियस द्वारा इसकी प्रजाति को लैटिन नाम जोकोसस (jocodsus) दिया गया जिसका मतलब होता है “चंचल”। इसी बुलबुल की आबूएन्सिस सब-स्पीशीज को हुग व्हिस्टलर द्वारा वर्ष 1931 में दुनिया के सामने लाया गया था। हुग व्हिस्टलर एक अंग्रेज पुलिस ऑफिस थे और साथ ही वह एक उम्दा पक्षीविद भी थे। भारत में उन्होंने पंजाब में पुलिस के रूप में कार्य किया था। उन्होंने अपने जीवन में १७-१८ हजार पक्षियों का संग्रह किया जो ब्रिटिश नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में रखे गए है। असल में इस बुलबुल का पहला नमूना 29 अप्रैल 1868 में एकत्रित कर ब्रिटिश म्यूजियम में जमा करवा दिया गया था। उन्होंने लिखा था कि, इस सब- स्पीशीज का ऊपरी और पृष्ठ भाग अन्य सब स्पीशीज की तुलना में अत्यंत हलके रंग का होता है। इसके सामने गले के नीचे बने हुए हार नुमा निशान में रंग हल्के होते हैं, यह संकरा होता है एवं मध्य से टुटा हुआ भी होता है।
यदपि इन दोनों सब स्पीशीज को कुछ स्थानीय लोग माउंट आबू की स्थानिक (एंडेमिक) सब स्पीशीज की तरह देखते हैं परन्तु यह दोनों ही गुजरात एवं मध्य प्रदेश में भी देखी गयी हैं। यदपि यह सर्व प्रथम खोजी माउंट आबू से गयी थी एवं इसीलिए इनके साथ नाम भी तो माउंट आबू से जुड़ा है।
सन्दर्भ:
- Harington, H.H. (1914). “Notes on the Indian Timeliides and their allies (laughing thrushes, babblers, &c.) Part III. Family — Timeliidae”. Journal of the Bombay Natural History Society. 23: 417–453.
- Whistler, H. (1931). “Description of new subspecies of the red-whiskered bulbuls from India”. Bulletin of the British Ornithologists’ Club. 52: 40–41.
लेखक:
Dr. Dharmendra Khandal (L) has worked as a conservation biologist with Tiger Watch – a non-profit organisation based in Ranthambhore, for the last 16 years. He spearheads all anti-poaching, community-based conservation and exploration interventions for the organisation.
Mr. Ishan Dhar (R) is a researcher of political science in a think tank. He has been associated with Tiger Watch’s conservation interventions in his capacity as a member of the board of directors.