कांठल प्रदेश में सागवान वनों से आच्छादित, तीन विभिन्न भूमि संरचनाओं (अरावली, विंध्यन और मालवा) के संगम पर भव्य हरी-भरी घाटियों, नदियों और विशिष्ट वन्यजीवों को संरक्षित करता सीतामाता शुष्क राजस्थान का एक अन्वेषित अभयारण्य है…
वागड़, मेवाड और मालवा की प्राकृतिक सुंदरता और जीवन शैली से आच्छादित कांठलप्रदेश आज प्रतापगढ़ के नाम से जाना जाता है। अरावली और विंध्यन पर्वतमालाओं के मध्य मालवा के पठार पर सागवान वनों की उत्तर पश्चिमी सीमा बनाता यह जैव विविधताओं से समृद्ध एक विशिष्ट स्थान है। राजस्थान सरकार ने यहाँ 422.95 वर्ग किलोमीटर के वन क्षेत्र कि जैव विविधता एवं भू संरचना के महत्व को ध्यान में रखते हुए 2 जनवरी 1979 को सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया। इस अभयारण्य में रियासत कालीन “भेनवा शिकारागह” शामिल है, यहाँ प्रतापगढ़ के महाराज शिकार के लिए आया करते थे। इसी तरह अभयारण्य का आरामपुरा-कुंठारिया इलाका धरियावद के जागीरदारों के लिए और रानिगढ़-धार वनक्षेत्र, बांसी के जागीरदारों के लिए शिकारगाह था। यह क्षेत्र उन दिनों वन्यजीवों से समृद्ध था और बाघ, सांभर और चीतल के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन बाद में इनकी संख्या में भारी कमी आई और बाघ विलुप्त हो गए लेकिन आज भी यह अभयारण्य असाधारण विविधता और आवासों के प्रतिच्छेदन के लिए जाना जाता है, जिसमें सागवान के वन, आर्द्र भूमि, बारहमासी जल धाराएं, सौम्य अविरल पहाड़, प्राकृतिक गहरे घाटियां और सागवान के मिश्रित वन शामिल हैं।
सीतामाता कहलाने का कारण
लोगों का मानना है कि रामायण काल के दौरान जब राम ने सीता को वनवास दिया तो देवी सीता ने अपने वनवास के दिनों को इस जंगल में स्थित ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में व्यतीत किया। इस वनवास के दौरान माता सीता ने लव और कुश को जन्म दिया। आज भी वाल्मीकि आश्रम के बाहर विशाल बरगद के अवशेष साक्ष्य के रूप में देखे जा सकते हैं, जो कभी 12 बीघा के क्षेत्र फैला हुआ था। राज-पुरोहित बताते हैं कि इसी स्थान पर लव और कुश ने अश्वमेध के घोड़ों को पकड़ा था और राम को युद्ध के लिए ललकारा था। ये अवधारणा है कि वह पेड़ जिस पर हनुमान जी को बांधा गया था, आज भी यहां पर मौजूद हैं। यहां पहाड़ी पर स्थित सीता मंदिर उस प्राचीन मान्यता का द्योतक है जिस समय माता सीता धरती में समाई तब यह पहाड़ दो हिस्सों में फट गया। लोग इस स्थान को युगों से पवित्र मानते आ रहे हैं और यहाँ मंदिर परिसर (सीता बाड़ी) में प्रतिवर्ष ‘ज्येष्ठ माह की अमावस्या’ को मेला आयोजित होता है। यहां पर स्थित वाल्मीकि आश्रम में आज भी लोग लव-कुश पालने को झूला झुलाते हुए देखे जा सकते हैं। सीता बाड़ी दुनिया का एकमात्र मंदिर है जिसमें हिंदू देवी सीता माता की एकल प्रतिमा है। इतने सारे पौराणिक स्थानों के होने के कारण इस इलाके का नाम सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य रखा गया है।
अभयारण्य के वन
सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य के वन को पांच प्रमुख वन प्रकारों, सघन शुष्क पर्णपाती वन (dense dry deciduous), छितराए हुए शुष्क पर्णपाती वन (sparse dry deciduous forest), नम पर्णपाती वन (moist deciduous forest), बांस के मिश्रित वन (Bamboo Mixed Forest) और घास के मैदान (grasslands) में वर्गीकृत किया गया है। तटवर्ती वनस्पतियों के साथ बारहमासी नदियों ने अभयारण्य में कई सूक्ष्म और समष्टि पर्यावास बनाए हैं। इस अभयारण्य की मुख्य विशेषता सागवान (Tectona grandis) और बांस (Dendrocalamus strictus) के वनों के बेहतरीन हिस्से हैं। सागवान वनों की नायाब संपदा से धनी इस अभयारण्य में ऐसे स्थान भी है जहां सूरज की किरण आज तक जमीन पर नहीं पड़ी।
सागवान और बांस के अलावा यहाँ आम (Mangifera indica), महुआ (Madhuca indica), सफेद धोंक (Anogeissus latifolia) और चिरौंजी (Buchanania lanzan) के वृक्ष यहाँ घने वन बनाते हैं। इस वन की विशेषता यह है इसको देवता का निवास स्थान माना जाता है और इसकी पवित्रता को गाँव के लोगों द्वारा संरक्षित किया जाता है।
राजस्थान कि जैव विविधता के विशेषज्ञ डॉ सतीश शर्मा बताते है कि,दक्षिण भारत मूल कि कई वनस्पतियाँ सीतामाता अभयारण्य में पाई जाती हैं। राजस्थान में बीज धारी केलों कि दो वन्य प्रजातियों में सेएकजंगली केला (Musa rosacea) यहाँ पाया जाता है। यहाँ मरुआदोना (Carvia callosal) भी अच्छी संख्या में पाया जाता है जो कि मूलतः दक्षिण भारत के नीलगिरी पहाड़ियों पर पाया जाता है, राजस्थान में यह माउंटआबू और फुलवारी कि नाल अभयारण्य में ही अभी तक देखा गया है। यहाँ जंगली काली मिर्च (peperomia pellucida) भी अच्छी संख्या में पाई जाती है जिसकी राजस्थान में अन्यत्र उपस्थिति केवल झुंझुनू जिले के लोहार्गल धाम पर ज्ञात है। डॉ शर्मा के अनुसार लीया (Leea macrophylla) नामक एक कंदीये पौधा, जो उपेक्षाकृत बहुत कम ही देखने को मिलता है, सीतामाता के जंगलों में नमी एवं गहरी मिट्टी वाली घाटियों में वर्ष में आसानी से जगह-जगह देखा जा सकता है। इसको यहाँ सामान्य भाषा में हस्तिकर्ण (हाथी के कानों जैसा) नाम से जाना जाता है। अपने नाम को चरितार्थ करती इसकी बड़ी पत्तियों का फैलाव 45 सेमीx60 सेमी तक पहुच जाता है।
सीतामाता औषधीय पौधों के लिए भी जाना जाता है। मुख्य औषधीय पौधों में चिरौंजी (Buchanania lanzan), अर्जुन (Terminalia arjuna), बहेड़ा (Terminalia bellirica), जामुन (Syzygium cumini), ज्योतिष्मति (Celastrus paniculate), इन्द्रजौ/दूधी (Wrightia tinctorial), मूसली (Chlorophytum tuberosum), कड़ाया (Sterculia urens), और झारवाद (Lagascea mollis) यहाँ पाए जाते हैं। राजस्थान सरकार ने चिरौंजी के पेड़ों को बचाने के लिए अभयारण्य को मेडीसिनल प्लांट्स कान्सर्वैशन एरिया (MPCA) घोषित किया हुआ है।
अभयारण्य के अन्य पेड़ों में (Anogeissus pendulla), खैर (Acacia catechu), सालर (Boswellia serrata), असान (Terminalia tomentosa), तेंदू (Diospyros melanoxylon), गुर्जन (Lanneacoro mandelica), गूलर (Ficus glomerata), बरगद (Ficus benghalensis), कदम (Mitragyna parvifolia), बिल (Aegle marmelos), आंवला (Emblica officinalis), लसोड़ा (Cordia dichotoma), बीजपत्ता (Pterocarpus marsupium), खिरनी (Wrightia tinctoria), इमली (Tamarindus indica), बैर (Zizyphus spp.), आदि शामिल हैं।
अभयारण्य में उपरारोही (epiphytes) भी अच्छी संख्या में पाए जाते हैं जिनमें कई सारे फर्नस और ऑरकिड्स शामिल हैं। यहाँ सिलेजिनेला (Selaginella) कि 3 प्रजातियाँ पाई जाती है,आद्रता के कारण कई ब्रायोफाइट्स भी यहाँ पाए जाते हैं।
अभयारण्य के वन्यजीव
सीतामाता वन्यजीवों के दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण अभयारण्यों में से एक है, यहाँ स्तनधारियों की लगभग 50 प्रजातियाँ, पक्षियों की 325 से अधिक प्रजातियाँ, सरीसृपों (reptiles) की 40 प्रजातियाँ, उभयचरों (amphibians) की 9 प्रजातियाँ, और मछलियों की 30 प्रजातियाँ को सूचीबद्ध किया गया है। यहाँ खाद्य श्रृंखला में तेंदुआ सबसे ऊपर है, अन्य जीवों में यहाँ रैटल, लोमड़ी, पंगोलीन आदि मौजूद हैं।
यह अभयारण्य उड़न गिलहरी (Petaurista philippensis) और चौसिंघा (Tetracerus quadricornis) के लिए जाना जाता है। उड़न गिलहरियों को स्थानीय भाषा में “आशोवा” नाम से जाना जाता है जिसको आरामपुरा के जंगल में सूर्यास्त के आसपास महुआ के एक पेड़ से दूसरे पर जाते हुए देखा जा सकता है। दिन के समय यह पेड़ों के खोखले हिस्सों के अंदर अपने स्थायी घरों में आराम करता है। इनको देखने का सबसे अच्छा समय फरवरी और मार्च के बीच का होता है जब अधिकांश पेड़ों के पत्ते झड़ चुके होते हैं जिससे इनका शाखाओं में छिपना आसान नहीं होता।
चौसिंघा, जिसे स्थानीय भाषा में “भेडल” भी कहा जाता है, सीतामाता के पंचगुड़ा, अद्यघाटा, अंबारेठी, और पाल वन खंडों में देखने को मिलता है। इन वन खंडों में बांस के घने समूह अच्छी संख्या में हैं जो चौसिंगा के पक्षधर हैं। चौसिंगा खतरे में होने पर बांस की मोटी झाड़ियों के पीछे छिप सकता है।
अभयारण्य में उड़न गिलहरी के अलावा और दो प्रकार कि गिलहरियाँ पाई जाती हैं, इंडियन पाल्म स्क्वरल / तीन-धारीदार पाल्म गिलहरी (Funambulus palmarum) और पाँच-धारीदार गिलहरी। इंडियन पाल्म स्क्वरल अभयारण्य के घने जंगल में पाई जाती है।
सरीसृपों में मगर, वृक्षारोही मेंढक (tree frog), पैनटेड फ्राग (painted frog), बिल खोदने वाले मेंढक (Burrowing frog), वृक्षारोही सर्प (tree snake) और ग्रीन कीलबैक का मिलना उल्लेखनीय है।
जंगल आउलेट, क्रेस्टेड हॉक ईगल, हरियल, गागरोनी तोता, स्टॉर्क-बिल किंगफिशर, पिट्टा, ब्लैक हेडेड ओरियोल, इंडियन पैराडाइज फ्लाईकैचर, ब्लैक लोरड टिट,पर्पल सनबर्ड, मोनार्क, सारस हंस,अल्ट्रा-मरीन वर्डाइटर फ्लाईकैचर आदि जैसे पक्षी सीतामाता के जंगलों में देखे जा सकते हैं। लेसर फ्लोरिकंस अभयारण्य के पूर्वी इलाके में मानसून के दौरान देखने लायक हैं। यहाँ तीन प्रकार के फेयसेन्ट पाए जाते हैं, ग्रे जंगल फाउल, अरावली रेड स्पर फाउल,पैनटेड स्पर फाउल। जाखम बांध के पास गिद्धा मगरा नाम कि पहाड़ी पर लॉंग बिल्ड वल्चर के घोंसले पाए जाते हैं।
सदावाही नदियों और झरनों का अभयारण्य
अभयारण्य कि तीन प्रमुख नदियां हैं कर्ममोई, जाखम और सीतामाता। कर्ममोई (कर्म मोचनी) नदी का उद्गम सीता बाड़ी से होता है जो कि अभयारण्य का कोर क्षेत्र है। कर्ममोई नदी धारियावाद में जाखम नदी से मिलती है। जाखम नदी छोटी सादड़ी के जखामिया गाँव की पहाड़ियों के दक्षिण-पश्चिम में निकलती है। जाखम सीतामाता अभयारण्य कि जीवनरेखा है। अभयारण्य के अंदर जाखम, लव और कुश नाम के नालों में विभाजित होकर अपना पानी वितरित करता है और अभयारण्य से गुजरने के बाद फिर से मिलकर जाखम नदी में परिवर्तित हो जाता है। यह नदी अभयारण्य के अंदर तेरह मोड़ बनाती है। पूरे वर्ष इन नालों के प्रवाह से अभयारण्य के मैदानी क्षेत्रों में जंगल हरे-भरे रहते हैं। इस नदी पर जाखम परियोजना के अंतर्गत बांध निर्माण किया गया जो कि एक बड़े वन क्षेत्र के जलमग्न होने का कारण बना। जलमग्न क्षेत्र में शामिल उधरी माता के आसपास घने जंगल मीणाओं के लिए पवित्र उपवन थे। भेनवाएक अन्य स्थान था, जो अपने वनों के लिए जाना जाता था, हालाँकि जब ये बाँध का निर्माण हुआ तो ये जंगल जाखम बांध के पानी में डूब गए।
जाखम बांध के बाद 12 किलोमीटर आगे नदी पर नांगलिया बांध बनाया गया है जहाँ से नहर प्रणाली की उत्पत्ति होती है। नांगलिया बांध अभयारण्य कि परिधि पर बना हुआ अप्रवासी पक्षियों, धूप सेकते मगर और कछुओ को देखने के लिए उत्तम जगह है। सीतामाता अभयारण्य में टांकिया भूदो, सुखली तथा नालेश्वर नामक नदियां भी बहती है। नदियों के अलावा यहाँ जगह जगह कई झरने देखने को मिलते हैं।
अभयारण्य के अन्य आकर्षण
आरामपुरा अतिथि गृह – बंसी और धरियावद कस्बों के मध्य में स्थित वन विभाग द्वारा संचालित यह स्थान अभयारण्य के प्रवेश द्वारों में से एक है, यह उड़न गिलहरी को देखने के लिए राजस्थान के सबसे अच्छे स्थानों में से एक है। यह विशाल महुआ, सागवान और विभिन्न प्रकार के बड़े वृक्षों से ढाका हुआ क्षेत्र है जहां उड़न गिलहरी का एक सुनिश्चित दृश्य शाम 7 बजे से सुबह 5:30 बजे के दौरान हो सकता है।
कुन्थरिया हिल साइड–यह एक पहाड़ी क्षेत्र का नाम जहां कर्मोचिनी नदी ऊंचाई से गिरते हुए एक झरने का एहसास देती है। अभयारण्य में विभिन्न रैप्टर और पक्षियों को देखने के लिए बहुत अच्छे स्थानों में से एक है।
भौगोलिक स्थिति
सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य समुद्र तल से औसतन 280 से 600 मीटर कि ऊँचाई पर स्थित है। इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 756 मिमी होती है। सर्दियों के दौरान तापमान 6 से 14 डिग्री सेल्सियस और गर्मियों में 32 से 45 डिग्री के बीच होती है। सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यह अभयारण्य उदयपुर-प्रतापगढ़ राज्य राजमार्ग पर उदयपुर और चित्तौड़गढ़ से क्रमशः 100 और 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन चित्तौड़गढ़ है, जबकि निकटतम हवाई अड्डा 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित महाराणा प्रताप (डबोक) हवाई अड्डा उदयपुर है। इन सभी स्थानों से अभयारण्य तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।
मातासीता से जुड़ी आस्था, उड़न गिलहरी और चौसिंघा जैसे विशिष्ट वन्य जीवों के पर्यावास होने के कारण सीतामाता अभयारण्य को राजस्थान के विशिष्ट वन्यजीवों का पवित्र उपवन कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी I
Please include some more images of evidences. Like you have mentioned the presence cradle swing, tress where Lord Hanuman was tied etc.
Thank you.
Sorry, mythological Hanuman is not important. But you can enjoy Hanuman Langoor’s jump and swing on trees all along the wild tracks of Sita Mata sanctuary.
Very good information I think majority of people don’t know about it.
बेहतरीन आलेख
I have seen this Sanctuary with you to some extent and the way you have described it is amazing.
It’s really appreciated. I have never visited this Sanctuary, but surely I will visit this place as you have explained it’s glory in very beautiful words.
Thank You, Ma’am, let’s plan a visit soon.
Very well written article about a lesser known WLS of rajasthan. Thanks for sharing
Informative article , if you get other information on available birds ,animals ,etc then please add.
ajayparikh2019@gmail.com
Here also present rare type spider in this Diwali time,must need research,